पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३०४

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माखन्वरं २६८ शुद्धता जाता था। पी गिवजीने कोई दूभरा उपाय देव मन्दिर नी लालसर राममका मस्तक रक्षा न देव घर उसके कटे हुए मुण्डकी महीमें गाड़ दिया। एषा है। इस स्थानको तथा पालमपुर के मध्ययर्ती जगन दानवका शरीर इतना प्रकाण्ड था कि, उमयी ८ : मय प्रदेशको भालन्धरकी पी सदाशे नामागुमार खन्दा. लिये ३२ कोम जमीनकी जरूरत पड़ी थी। इमीम बन कहत हैं । म रातमका मस्तक धनागमे ५ मीन पाधुनिक मान्नन्धरतीर्थ भी ३२ के म तक फैना दुपा उत्तर-पूर्व कोपमें सुनमोलके मुह पर मन्दिरसे नीचे है। जाम्तन्धर जिले के प्रधान शहरको हिन्दृगण आसन्धर- रक्षा दुपा है। एक हाय नन्दिरमै पोर दूमरा आप पीठ कहते हैं। जालन्धरवामी हिन्दयों का कहना है कि वेदना, स्थापित है। इसके दोनों पर यानामुम्बी नालन्धर दानवको गाड़ी समय उसका मस्तक विपामा दक्षिण विपामा नदी के पायम प्रान्त कानपुर में पयस्थित नदीके उत्तरकी पोर वानामुण्डी नामक स्थान | में रखा गया था। उसका गरोर शतद पोर विपामा ___ गतष्ट्र पोर चन्द्रभागा नदोका मध्ययों प्रग विगतं नदी मध्यवर्ती भूभाग तक फैला था। उमकी पीठ अथवा वैगर्त देश नामसे भी पुकारा जाता है। हम जालन्धर जिलेके तलदेश भोर उमके पैर मुलतान तक प्रदेश में गतदु. विपागा और चन्द्रभागा मामकी तीन पहुंचे थे। इस प्रदेश के मानचित्र के प्रति दृष्टिपात करनेमे । नदियां प्रवाहित हैं, इमीमे प्रमको विगतं कहते हैं। मालूम हो मायगा कि इस कहानी माथ इस प्रदेशको ! महाभारत, पुराण और काग्मीर विधाम राजसती पासतिका मामञ्जस्य है। नदयोन नामक म्यानमे / नामक ग्रन्पमें इसका नाम विग देखा जाता है। गतद्र पौर विपासा नदी २४ मोल पागे बढ़ कर दानव मचन्द्र ने भी 'विगर्स'-को जानन्धरके प्रतिगाद आपमे के पठाकारमें परिणत हो गई हैं। इसके बाद वे पन्लग | व्यवहार किया है। पलग हो कर १८ मील तक यही पौर स्कन्धदेशको मानन्धरका राजा पवना प्राचीन राजवंशीय मृष्ट । भो ये दोनों नदियां फिरोज्पुरमें एक ! गप करते हैं, कि उन्होंने पन्द्रय गमे जन्मग्रमा शिया दूसरेमे मिलती है। किन्तु कई, एक शताब्दीक पहले है। इनके पूर्व पुरुप रागर्मा पामिक मुनसान राय उन नदियोंके १६ मीतसे कुछ अधिक दूर में मा कर करते थे, और उन्होंने कोरय पाण्डवको महाईम दुर्यो. मिलनेमे कटिदेशको राष्टि पोर मुलतान तक ममानार धनका पक्ष लिया था। सारं समापन पर होने रैनाम प्रवाहित होनेमे पाददेशकी उत्पत्ति हुई थी। । सुगर्मा वन्ट्रक अधीन जामवरमें पा कर पपनी गलानी जालन्धरके उत्पत्ति मम्बन्धमें एक दूमरो उत्तम कथा स्थापन को पौर कोटकानडा एकहद दुर्ग बनाया। इस तरह है-मनन्धर नामका एफ राघम था। जब चम्ट्रय मोय होने के कारण ये धन्द धि धारण करते भगवान्ने पावंदी दृष्टि को, सब इस राधमने महुत थे। उनका कहना है, कि हम मोझे पूर्व पुरुप मामा नभम मचाया। बाद भगवान पिणने वामनरूप धारण राजाके समयमे कोई पन्द्र उपाधि धारण करते पार फर इस राससको मारा। रावम पाहत हो कर पोधे हैं।८०४ ई में जालन्धरके राजाशा नाम जयचन्द्र था। मुंश गिर पड़ा भोर उसकी पीठ के ऊपर एक नगर निर्माण काप पहितने सिमा कि, ८ गताम्दी पराम किया गया। यही नगर मानन्धर नाममे प्रमिह । विगराम पृथ्वीचन्द्र गारयमा भयमे भाग गये थे। गमको सम्पाई उमके पृष्ठदेगर्क मध्यस्थनमे दोनो । १0 में इन्दुपन्द्र मानन्धर राजा ए थे। मोर १२ कोम षिमा त यी। पहने मी स्थान पर नगर निगा राशापरि रानी मोमाया प्रगाना बनाया गया : बाट पन्चान्य स्थान पधितत हो गये हैं। यस पाठिम । किमी समय मिस्टगी दषित यर राम शिसनी दूर फैन ग्या था उमका निर्णय प्रदेश राजामि विगतके किमी भाग पर ना करना दु:माध्य । फोई कोई कहते हैं कि निगन अधिकार अमाश पा, पाद पर गिर गाय • नदीले अपर जिन्दाहत नाम र म्यानमें मन्दिर महापाप भागणारेनर या गडाने भारत में प्रोम Vol. VIII.65