पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३०५

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२०. · जालन्धर पर कई एक स्थान अधिकार कर लिये थे, त विगत- | तलाग करने पर भी उनका पता न चला। इसनिये राजगए अपने ममम्स अधिकारी विष्य त न हुए थे । वे | उनके नाई कर्म राजसिंहासन पर बठे । २ या दिन गक पधीन कर राजा थे और जब कभी उन्होंने | बाद किसी व्यापारीने उन्हें कुप'गे बाहर निकाला। सुविधा पाई तभी अपने प्राचीन दुर्ग कोटकाङ्गलाको किन्तु इसके पहले ही उनकी प्रक्रिया हो चुको यो, अधिकार, सानको चेटा को । एक समय महम्मद पतः वे पुनः राज्य अधिकारी न हो मकै, उन्हें गुनार , सुगलकने इम दुर्ग पर पधियार किया था किन्तु यह | नामका एक छोटा रोच्च दे दिया गया। उसो समयमे . फिर राजा रूपचन्दके हाथ पा गया। इसके बाद फिरोज गुलारमें भो जालन्धर राका एक भगज्य करता था गाइने इसे अपने अधिकारमें लाया । पीछे तैमुरके पाक- रहा है। मगके समय विगत गजाने इस दुर्ग को पुनः अपने प्राचीन विगत राज्यमें जालन्धर, पाठामकोट, घर . कायम यर लिया और सम्राट अकबरके ममय तक यह | मेरि, कोटकानाड़ा, वैद्यनाथ पौर ज्वालामुखोका देव दुर्ग उन्होंने प्रधान था। भकवर के समयमें राजा धर्मः। मन्दिर की प्रसिद्ध है। पद्रने दिलीकी अधीनता स्वीकार को । राजा लोक्य. १ प्रभो जा सन्धर कहनेमे पनामका एक राजस्व 'चन्द्र जहांगीरके ममयमै विद्रोहो हो गये थे, किन्तु । विभाग समझा जाता है। इसके अधीन जालन्धर होमिः उन्होंने पराजित हो कर अधीनता स्वीकार को। काल | यारपुर और काडा ये तीन जिला पड़ते हैं। यह पक्षा. कामसे राजा संसारचन्द्र ने कोटकाङ्गा दुर्ग अपने जाय | २८५५ ३० से ३२५८ उ• चौर देगा. ७३५२ में कर सिया पोर समस्त जालन्धर प्रदेशको अधिकारमें / ५२ पूछमें स्थित है। जालन्धरकी निम्न प्रामार मानिकी चेष्टा की। किन्तु अन्तमें उन्होंने गोरखामन्यमे | भूमि मुसलमानो के हाथ पा जाने पर यहां प्राचीन राजा प्रतिमा को कर रणजिसि से महायता मांगी थी। वंश पायोग प्रदेश पा कर रहते हैं और प्रमिदुर्ग उन्हें महायता दी गई मही, किन्तु कोटकागड़ा दुर्ग | कागड़ाके नामानुसार यह स्थान भो कांगड़ा मामने उसी समय नास्तन्धर राजापौके हाधसे सदाके लिये | मगहर हो गया है। इस स्थानको कोई कोई कतीच जाता रहा। कहते हैं। धोन-भ्रमणकारी युएनत्यागने भारत लौटते समय | हटिय पधिकारभुजालन्धर प्रदेश में हिन्दू, सम, मिष - जालन्धर राज भवन में प्रातिथ्य खोकार किया था। वे | धर्मावलम्बी जाट, राजपूत, प्राध्य, गुर्जर, पाठान, मैयद जालन्धराजको उतितो नाममे अभिहित कर गये हैं। पादिका वास । जालन्धरके उच्च प्रदेश में बहुतमे एं शायद राना भादित्यका उन्होंने उतितो (अदित) नाममे हैं जिनके जल खनिज पदार्थ मिश्रित ।म स्थाम मेख किया है। ८.४० जयचन्द्र विगत राजा पर मणिकर्ण नामक एक गरम झरना निकता है जिसका घे जयचन्द्र के बाद क्रमशः १८. राजापाने राज्य किया जन ५३८१ फुट अपर उकसता मणिकर्ण के समोपे याद १०२८ में इन्द्रचन्द्र मानन्धरके सिंहासन पर पार्यतीय सुपारस्रोत बहते हैं। यहां विसत् नामक । उन बादमे ले कर गजओ रूपचन्द्र के ममय तक गन्धक गर्भ उपाप्रवन । .. ३४ राजा हुए। राजा रुपचन्द्र के वाद ४७ राजापाने । मानन्धरके कोहिम्यान, सुखेत चोर मन्दि उपत्यका आनन्धर पर गज्य किया। १८४७ में रणवोरचन्द्र में तया मन्दि नगरसे निकटवर्ती छोटे छोटे ग्राममि. राजा थे, यो मायझे बाद ये मिसामनमे घटा दिये यदि कोई विदेशो मनुष्य पहुंच जाय, तो हम प्रार्मोको गये । रूपच के वग हरि पोर फार्म नामके दो माद-लिया उसके सत्कार लिये भित्र भिय दममें उमझे यो ने जन्मग्रहण किया। परि बड़े होने के कारण ममीप पा जाती है पोर पछे पच्छे कपड़े पहन का । रािसन पर भियिए। एक समय ये घरसर | सभ्यर्थ नायक गीत गातो है। इम उपलतम छम . नामक स्थान पर एक फूपमै प्रकस्मात् गिर पड़, वाईस | पागन्तुकको प्रतिदनमै एक एक रुपया देना पड़ता है। ..