पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३२७

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बाबा (यवहोप) भावा पोर कम्बोजमें जो महायानवाद प्रचलित | गण प्राय: जावाके राजाओं को देवदति उपहार में दिया उसके माथ हिन्दूधर्मका धयेट समिया था। बहुत करते थे। इंमाको १०ी गादीई मधमाग पता जगह तो यह मो घोपित हो गया था कि बुददेव हो गिवका प्रभाव पास घा! पो Hts.nn गिव है अयमा यो कहिये कि कुछ और शिव एक हो। रनका मन्दिर बना था. नव वध के नाय वैरावधर्म- भून कारण विभिन्न प्रकार विकाशमाव है। धर्म । का कुछ मामियण हुमाया। है यह है कि यहाई मास्त्रों में उभय धर्म टल प्रकारसे मियाका परिचय | मन्दिरों में यत्र तव रामायण और वैवपुगण के पाग्यानो । मिलने पर भी बरबदरके मन्दिरादिमें उमका कोई के अाधार पर चित्र निम्ति शिवे गये हैं। रमाद प्रभाव देखने में नहीं पाता। मम्मम है, उस समय एक १३वी मताप्दोमें जाव'का यौहधर्म पुनः योमम्मद हो स्यानमें हिन्दू और बौहधर्म प्रचलित रहने पर मो हुधा था। इस समय कम्बोज गैर चम्पा बौद्धधर्मका दोनों में मामियप नहुपा हो। उम ममयके इलोराडे स्रोत प्रवलवेगसे चल रहा था। मदनास्तिक एक चित्र निस्पके देखनमे यही प्रतीत होता है कि इमीको गजाने चम्पाको गजकन्या माय विवाह किया। प्वी मताप्द में पयिम भारत धर्म की दशा भो प्रायः । इमसे अनुमान किया जाता है कि इस युगमे पम्पा । यमो को घो। बोहधर्म पाया था। तारानावका कपना ई कि मुमन. भावाके यथार्य इतिहामके विषय में हमें इतना कम मानों के पाकमा घोर अत्याचारके मधमे बहस चौर तय मालम हुपा है कि, उमने इम धातका निर्णय नहीं भारतसे भाग गये थे। मगाम , इन्हीममे कुछ साव। किया जा मकता कि हिन्दू पौर वोह इन दो धाम पहुंच गये हों। ईमाको १३वीं शताव्दीमें जावाने बोइ. किमको गति कितनी वा कैसो यो । धर्मका प्रभाव बढ़ यवम्ब गया था किन्न बाधवधर्म के नावामे जैनधर्म भी प्रवर्तित इपा था। पुरातत्व साथ उसका मह उपस्थित नहीं पाया। पोर गिर विटोका अनुमान है कि जावाम ईमाको १०वीं और एक हो तत्व है, यही घोषित किया गया था। मारण १वीं शताब्दोंमें जैनधर्म प्रचारित छुपा था। इसका ग्लोग हिन्दू देवदेवियों को ही उपामना करते थे। इतना प्रमाण यह है कि यजुराहो में बहुतमे मन्दिरों में जैन होने पर भो वे अपने को बोड पतलाने छ। पम की धर्म के उपामगण पूजादिके लिए जाते थे। उस स्थान में शिव पौर विमन्दिा भो पाये जाते हैं। वहाक अधिवामियों को इस यातका गर्व है कि ये Tri. ____ञापाके हिन्दूधर्म का प्रथम परिचय हमें पूर्ण वर्मा. गम धर्म का अनुसरप कर रहे हैं। जायाफे मारित्व में के. शिलालेखुमे मिलता है। उसके पड़ने से ज्ञात होता है भी बौड ग्रन्योंको संख्या अधिक पाई जाती है। जावा कि जावाम ५वीं शताब्दी के प्रारम्भमें विशु-उयामको । रामायप, मारतयुद्ध पादि चिन्टू पन्यों का भी पमित्व का ही प्रायत्य या। पोछे वो चौर ८वी शताब्दी में | घा, किन्तु यहाँ लोग उन्हें कान्यको दृष्टिमे देखते थे। पहाव-धर्म का प्रचार हुपा था। पयाम चौर । इसके विपरीत बौदों के "कमायानिकान* पोर दियेड इन दोनों ही स्थानों में ब्रह्मा, विशु पोर महखर- "कुञ्जरक' आदि ग्रन्यों को ये यथार्थ धर्मशान मानते की मूर्तियां पूजी जाती है। किन्तु गणेय, दुर्गा, नन्दो थे। मुनगं मदभापतमें जिम चौधर्म का पनुसरण मह गिव को प्रधान ममझे जाते हैं। पमानम एक होता था, उमे उदार प्रक्षतिका कहा जा सकता है। मन्दिरम महागुरु गिवरूपमें पूजे जा रहे हैं। उनको फिलहाल जाया प्रायः मभो सोग मुमतमान लिये प्रोट्ययाक ग्मयुक्त व्यनिई रूपमै पहित किया गया वा मम्मे जाते हैं। परमा इन मुमतमानो धर्ममत. है, शरीर पर यदुमूल्य मानहार भी दिये गये हैं। को यदि धार मायमे पयालोचना को जाय, तो उनमें यतमे ममझ है कि उस मूर्ति के निर्माण-चातुर्य पोर Rechinet.n pirat irri Concetrentkilits atta समें मौनदेसका प्रभाय लक्षित होता है। चोनका तिtus trivia tes templaie Jaraty Karki Trjarcatilt et शाम पढ़नेम मालम होता है कि उस देश समाट: 0.11.