पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३४

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२६ जमींदार भूम्यधिकारी ( Land-Tord ), और कहीं सरकारी : या पथया घोड़ो लाग दे कर के भमिका भोग कर कर (टेक्स) वसूल करनेवाले किसी कर्मचारीका भो । सकते थे। बोध होता है। : इस प्रकारमे भ मि विभक्त किये जानके उपरान्त जमोदार शब्दका अर्थ मलो भांति समझना हो तो प्रजाओंका वह अंग कालान्तरमें उन्हीं को घरको सम्पत्ति भूमि और उसके स्वत्व के सम्बन्धमें भी कुछ जानना हो जाती यो । प्रजा उसके चारों ओर बाड़ लगा सकती आवश्यक है। भूमि किसको सम्पत्ति है और उसका थो, तथा दूमरेके खेतमे कोई कुछ चोज चुराता, तो वह धास्तविक अधिकारी कौन है ?-पहले इसी प्रश्नको । दण्डनीय होता था। मीमांसा करनी चाहिये । ममका कहना है कि- "गृहं तड़ागमारामं क्षेत्रं वा मीषया हरन् । ... "पृथोरपीमा पृथिवी माय पूर्वविदो विदुः ।" शतानि पंच दण्ड्यः स्यादज्ञानात् द्विशतो दम" (मनु ९४४) (मनु० ८१२६४) दूससे तो यहो बोध होता है कि राजा हो भूमिका उस समय किमानों के पास ज्यादा जमीन रहने के स्वत्साधिकारी है, क्योंकि यह पृथिवीपति है। मनु फिर कारण, वे खुट उसे जोत नहीं सकते थे। अपने लायक कहते हैं- जमीन रख कर बाको टूमरों के जिम्मे बांट दिया करते "स्थाणुच्छेदस्य केदारमाहुः शल्यवतो मृगम् ।" (मनु. ९१४ थे। टमरे लोग लगान और भूम्यधिकारी प्राप्य अंशको . . - शिकारियों में जो पहले-माको प्रारयिद करता है, देने के लिए राजी हो कर जमीनका धन्दोवस्त कर लिया .ह जिम तरह मृगको पाता है उसी तरह जो जयन्त करते थे। इस तरह यतीको उत्पत्ति पर समिति के काट कर भूमिका उहार कर उसमें हल प्रादि जोतता यतों पर भूमिका स्वत्वाधिकार हुआ। है, भूमि उसीको होती है। इस तरह राजा और इसके पीछे भारतवर्ष जब मुसलमानोंक हस्तगत किसान दोनों ही भूमिके अधिकारी हुए, प्रत्य त राजा. हुपा, तब प्राचीन प्रथापोंका बहुत कुछ परिवर्तन हो को पैदा हुए अनमोठा ही मिलता है और गया। हिन्दगप पैविक प्रथापोंको छोड़ने के लिए तयार .: किमान अवशिष्ट समो.अनाजके, अधिकारी होते हैं। नधे ; किन्तु मुसलमानोंके उक्त प्रथाओंको जड़मूलमे पुरोहित, विद्यालयके शिक्षक, सूत्रधार, कुम्हार, धोयो, उखाड़ कर फेंकने के लिए, जोजानमे कोशिश करने पर

नाई, प्रादिको भी इससे यथायोग्य हिस्सा मिलता था उनका लोप हो गया।

इस तरह वास्तवमें देखा जाय, तो राजा, किसान भोर मुसलमान शास्त्रों के अनुसार भासनकर्ता ही भूमिका समिति इन सभीका भूमि पर थोड़ा बहुत अधिकार है। एकमात्र स्वत्वाधिकारी है। भारतवर्ष के जिन जिन स्थानों । . समीपवर्ती ग्रामीका कर तो राजधानीसे भी वसूल पर मुसलमानों ने अपना अधिकार जमाया, उन प्रदेशों को हो सकता था, किन्तु दूरवर्ती ग्रामों के लिए राजा यामा भूमि पर शासनकर्ताका हो सत्व स्थापित हुआ । किसा. धिपति, दशग्रामाधिपति आदिको नियुक्त करते थे। नों से जो कुछ वसूल किया जाता था, यह सब राजाका "माम्यस्याधिपति कुर्यात् दशनामपति तया। होता था और राजकोषमें भेज दिया जाता था। राजाके विंशतीशं शतेशच सहसूपतिमेव च ।" (मनु ५१५) सिवा दूसरे किसोको भी उससे अंश नहीं मिलता था। ग्रामाधिपति उस ग्रामको भूमिको प्रजामों में विभक्त राजस्व या कर वसूल करने के लिए बहुत तरह कर, फसलकी कटाई के समय उसका परिमाणका निधय | कम वारी नियुक्त किये गये, जैसे-आमिल, जमीदार. करके राजाका प्राप्य अंश वसूल कर राजकोष में भेज ) तालुकदार इत्यादि । दूरके प्रदेशों पर शासन करने के दिया करते थे। मजाओंमें किसी तरहका झगड़ा फिसाद लिए एक एक सूबेदार-नियुक्त किये गये । म. वेदार अपने होने पर उन्हें उमको मोमांसा करनी पड़ती थी। इस अपने लबा लगान वसूल करने और छोटे छोटे मुक. कार्य के लिए उन्हें रानासे फसलका कुछ अंश मितता | दमों का फैसला करनेका काम करते थे। सवेदारके .. Vol. VIII..