पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३४२

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१०५ ..:... निनियां कर उनका खून सुखा कर लहां तक हो कठोरतापूर्वक , किया था। कर देनेवाला खुद पैदल पा कर गुमास्ताके 'वसूल करना होगा, क्योंकि यह द जिससे मृत्युदण्ड पाम खड़ा होता था। गुमास्ता बैठा रहता था और के ममान हो, इसको विशेष चेष्टा करनो होगो।" करदाताके हाथमे कर उठा लेता था। नीकरोंके हाथ कुछ भी हो, इम:ममय शायद माधोंके सिवा अन्य भेजनसे नहीं लिया जाता था, खुद जा कर दे पाना सभी जातियों पर यह कर लगाया गया होगा। बाहाना पड़ता था। धनी व्यक्तिको सम्पर्य कर एक मुस्त देना इनके बाद भो फिरोजगाह के समय तक इस करसे मुक्त पड़ता था । मध्यम येणोके लोगों में दो बारमें पोर इनमे 'चे । शाममी सिराज द्वारा लिखित पुस्तक में इसका प्रमाण होन व्यक्तियों में चार बारमें भी लिया जाता था । मुमत. मिन्नता है। उसमें लिखा है-सम्राट फिरोजशाहने मान धर्म को मानने या मृत्य, होने पर इस फरसे छुट- निम्नलिखित बात कह कर ब्राह्मणों पर सबसे पहले काग मिलता था। इम समयसे जिजिया पदस्तू र प्रदा जिजिया स्थापन किया। उन्होंने कहा था-"उपवोतहोने लगा था। धागे ब्राधान्य अव तक जिजियासे मुक्त हैं। पहले मुसल ___बादशाह फरवशियारके ममयमें भूतपूर्व औरङ्गजेब के माम बादशाहोंने मन्त्रो और दुष्ट गुरुओंकी उपेक्षा को | परिषद नोचवदय इनायत उल्ला राजस्व सचिव थे, म. है। किन्तु ये ब्राह्मण ही अधिवासियों में प्रधान है. ! लिए यह कर काफी उत्पीड़न और अत्याचार के माथ इसलिए सबसे पहले जिजिया इन्हों से वसूल करना वसूल होने लगा। पोछे रफो-उद-दर्शातके समयमें चाहिये ।" इससे प्रमाणित होता है कि, फिरोजगाइने मैयदोंने रम करको बन्द कर दिया। रतनचन्द नामक ही पहले बाघापों पर जिजिया कर लगाया था। जो हो, एक हिन्दू के राजस्व मचिव होने पर हिन्दुनौको बहुत ब्राह्मणों को यह माल म पड़ते ही वे राजमामादमें उप. अधिकार पुनः प्राप्त हुए थे। रतनचन्दकी मृत्य के बाद स्थित हए और उन्होंने यह धमकी दिखाई कि, "यदि फिर एकबार यह कर लगाया गया था। जाटमें जिजियासे छुटकारा न मिलेगा, तो हम लोग यही पग्निः । महम्मदशाहने महाराज जयमिह पोर गिरिधर महादुरके में जल कर भस्म हो जायगे।" पाखिरको दिशीके | अनुरोधसे जिजिया कर उठा दिया। महम्मद के बाद पन्यान्य चिन्ने प्रा कर वाहापोंके करका भार अपने फिर क्रिमी बादशाइने जिजिया कर लगानेका माइस जपर लेना खोकार किया और वाहायों को जिजियासे 1 नहीं किया। छुटकारा दिया। उस समय मञ्चितीक हिन्द प्रोंको और भी मालूम दुपा है कि, बहलोल पौर सिकन्दा पादमो पीछे ४०, रुपया जिजिया कर देना पड़ता था। लोदोके समय में यह कर बहुत ही कठोरतापूर्वक वसून मध्यमणो के लिए २० और टतीय श्रेणी के व्यक्तियोंके ! किया जाता था पोर इमीलिए मुगललोग पठानों लिए १० रुपया स्थिर था। ब्रामणों को उक्त झगड़े के बायसे प्रामागोमे राज्य छोन में समर्थ हुए थे। पहले पीछे सबसे कम देना पड़ता था। पहलके मुगलमम्राटगण यथासाध्य अपक्षणात दिखा ___ अकघरने अपने राज्यके में वर्ष में यह कर उठा र अनसाधारणका अनुराग पाकर्षण करनेका प्रयन दिया था। किन्तु भिवधर्म देपो घोर पक्षपाती पोरगा करते थे, और ये इस विषय में कुछ कुछ सतकार्य भी हुए नबने पकवरकी इस छदार नोतिका अनुसरण न कर | थे। किन्तु किसी किमीने उस नोतिक गूढ मर्मको म अपने राज्यकै २२ वर्ष में यह . कर पुनःजारी कर ममझ कर उसके विरुद्ध पाचरण किया है। जब तक दिया। ये सिर्फ जिजिया स्थापन करके ही चान्त न हुए, | वे बादशाह तेजस्वी और महावन थे, तब तक उनका वरित उन्होंने इस यातको भो काफी · कोशिश को घो कोई कुछ बिगाड़ नहीं मका या-या ठीक है, कि, जिससे कर देनेवाले नाम्किन पोर अपमामिल । परन्तु उनको यति भोण होते हो, जिजिया कर ही जुवदास-उन्न पखाराममें एक जगह लिखा है-पोरग-इम देशमे मुमतमान राज्य विलोपका कारण हो मेव मिलिया वसूस करने के लिय निमलिखित इतजाम गया है। ; .. Vol. VIII. 77