पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३४४

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निज्ञासा-जिताक्षर ३.७ जिज्ञासा (सं० स्त्रो.) जातुमिच्छा, भा-सन्-तत । मुष्टियन। दृदमुष्टि योह भेद, वह जोडा जिममें मुक्काम १ज्ञान प्राप्त करनेको कामना, जाननेको इश । २ प्रश्न, बडनेको सामय हो। तहकीकात। | जितकाशी ( म०वि०) जिसन जयेन काशते काग-गिनि। जिज्ञासित (सं० वि०) जिज्ञासक। जिसे जिज्ञासा को जययुक्त। 'अनिरुदं रणे वाणो जितकाशी महाबलः।" गई हो, जिसको पूछा गया हो। (हरि० १५॥४१) जिज्ञास (सं० त्रि.) भातुमिच्छ भा.सन्छ । ज्ञान | जितक्रोध (सं०वि०) जित: क्रोधो येन, बहुवी. 1ोध- प्राप्त करनेके लिये इच्छुक, जाननेको इच्छा रखनेवाला, | शून्य, जिमे गुस्सा न हो। (पु.)२ विष्ण। खोजो। ___ "मनोहरो जितकोषो वीरवाहुर्विदारणः।" (विग्रह) जिशास्थि (सं० क्ली० ) अस्थः जिज्ञामा राजदन्तादित्वात् | जितना (हिं० वि०) जिस मानाका, जिम परिमाणका। परनिपातः सालोपश्च । अस्थिजिज्ञासा। । | जितनेमि (म'• पु.) जिता नमिर्धन, बहुवो। १ पावत्य जिज्ञास्य (सं० वि०) जिज्ञास्यते, जा सन-कम्मणि यत् । निर्मित दन्त । २ विणु। (त्रि० ) ३ कोधशून्य, जिसे जिजासनीय, जिसको जिज्ञासा को जाय, जिसे जानना गुस्मा न हो। | जितपाल-तोमर वंशके स्थापयिता मानके एक राजा। जिज्ञास्यमान ( मं० वि.) जिजाम-थानच् । जो विषय विक्रमादित्य के वधर परमार (पूधार) गोय शेप राजा जयचन्दकी मृत्य के बाद ये मालपके मिहामन पर पूछा जा रहा हो। बैठे थे। इनके वंशजोंने १४२ वर्ष राज्य किया था । जिन (सं• त्रि.) विनास, जाननेकी इच्छा रखनेवाला। जिजिराम-पासामकी एक नदी । यह ग्वालपाड़ा जिलेके | | जितल-मुसलमान राजाकि ममयको प्रचलित मुद्रा। इसका मूल्य १०० रत्तो था । । उरपद बोलसे निकल १२० मोल बहती हुई मानिकर- |जितलोक ( स० वि०) जितः प्रायत्तीकता फरमादि धारा चरके दक्षिण ब्रह्मपुत्र में जा गिरी है। ग्रालपाड़ाके लोकः स्वर्गादियन । १ जिसने पुण्य कर्म मे स्वर्गादि लोक दक्षिण अञ्चल तथा गारो पर्वत, इसकी राह व्यापार प्राप्त किया हो। (वि.)२ अभिभूत लोक । होता है। जितवत् ( स० वि०) जित मतुप, मस्य वः। तजय, जिलोरा-सम्बई प्रदेशका एक छोटा राब्ध। नौता हुमा। जम्योरा देख।। जितवती (म० स्त्री०) जितवत्-स्त्रियो डीप । राजा जिठानी (हिं० सी० ) पतिके बड़े भाई की स्त्री। उगोनरको लड़कोका नाम। यह नरदेवात्मजाको जेठानी देखो। प्रियमखो यौँ। (भारत १९.) जित् (म.वि.) जि-शि। नेता, जीतनेवाला। जितवाना(Eि कि०) जोतने में समर्थ करना, जोतने जित (सं. वि.) जि कमधि-त । पराजित, जोता हुआ। देना। (मो.) भावे । २ सय, जोत । जितवत (म वि०) जित' प्रायतोतत' यत येन । जिनऊ-हिन्दीके एक कवि । रागसागरोद्भपमें इनके पद पायतोक्षत व्रत, जिसने प्रतको वशीभूत किया हो। पाये जाते हैं। (पु.)२ पृथु बमके विरान राजाके पुत्र । जितकर्ण-चौहान-वंशीय पृथ्वीराज के बयके एक राजा।। (भागवत ४२३१८) जयसिंहदेव द्वारा प्रतिष्ठित गुजरातके पापसी अम्मनग्राम जितगत, ( पु.) जितः शव यन, वो विजयी, (वर्तमान निहानो उमरवान) के शिलालेखमें इनका | वह जिमने शव को पराजय किया हो। नामोल्लेख मिलता है! . जिताघर (म.वि.) जितानि पक्षराणि गोवतहान- नितकागि (सं० पु०) जितेम जयोधमेन कागते प्रकाशते, पाठनादियन, बहुमो० । उत्तम पाठक, जो अक्षर देखते काग-इन्, वा जितः अभ्यास पुटुतया दृशतः काणिः । सो पद सभा हो।