पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३४६

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-जित्तम-जिनचन्द्र जित्तम (स'• पु०) जित्-तमप, । १ जितम, मिथुन | वपिकों ने इस नगरको प्रतिष्ठा को यो। ईसाको १५यों रामि। शताब्दोमे इसको उमति शुरू हुई है। १८९५ ई. तक गित्य (संपु० ) हाइल, बड़ा इल। सुइनके जहाज जिद्दा पाते थे पोर फिर मारतोय जहाजों जित्या (सं.स्त्री.) जि क्यप, टाप । १ सहहल. बड़ा | पर मान लाद कर अन्यत्र भेजा जाता था। नोममी इल । २ हिंगुल, हींग। शताप्दोमें ही यहां यात्रियों को संख्या बढ़ो यहां प्रति जिवन (स० वि०) जि क्षनिप । जयशील, जीतनेवाला, वर्ष तीय दर्गनके लिए गोमत ७० हजार यात्री पाया

फतेउम।

करते हैं। बाणिज्यके लिए जिहाके बन्दरमें बहुतमे जित्वर ( स० वि०) जयति जि-क्कर । जेता, जीतने | जहाज पाते हैं और लाभ उठाते हैं। गत महासमर के वाला। ममय जिहाक अधिकारके विषय में गड़बड़ी हुई थी। जित्वरी (स. स्त्रो० ) जयति सर्वोत्कर्षेण वर्तते जि क्षारप् | किन्तु फिलहाल यर सुरकियोंके हो अधिकारमें हैं। डीप्। काशी। ज़िद्दी ( फा० वि०) १ हठो, जिद करनेवाला । २ दुरा जिद (स. स्त्री०) १ विरुद्ध बात, उलटो बाप्त। २ टुरा | ग्रहो, जो टूपरेकी बात न मानता हो। ग्रह, इठ, पड़। | जिधर (हि० कि. वि०१ जहा, जिस ओर ! समन्वयमे जिहा-लोहित सागरके उपफूलस्थ परष देशका एक | इसके साथ 'उधर' प्रयुक्त होता है। जैसे-'जिधर देखो नगर । यह पक्षा० २१ २० उ० और देशा० ३८.१० | उधर' ही तुम्हारो वरनामो हो रही है।' पूमें पयस्थित है। मुसलमान लोग अपने प्रधान तीर्थ | जिन ( म० पु. ) जि-नक् । १ जिनेन्द्र । ये अहंस, .भका जाते समय पहले यहीं उतरते हैं, इसलिए इसकी | तोर्थ दर, सर्वज जिनेशा, वोतराग, प्राप्त प्रादि नाम प्रसिद्धि है। यहांसे मका ४६ मील दूर है। समुद्र के / प्रमिह है। तीर्थ । देखो। २ वुह । ३ विष्णु । ४ किनारे रतौली जमीन पर यह नगर है। इसके चारो | सूर्य (वि०) ५ जित्वर, जीतनेवाला। ओर दुर्ग और उत्तर भागम कारागारादि है। नगरके जिन (प्र. पु. ) मुसलमान भूम जिन्ददेखो। तीनों तरफ तोरणहार है। पहले हारका नाम मदीना | ज़िन (हि. वि. ) 'जिम' का बहुवचन । तोरण है जो उत्तरको पोर है। पूर्व को ओर मकातोरण | जिनकोति-सोमसुन्दरके एक मिथ। इन्होंने चम्मक चौर दक्षिणकी तरफ यमन तोरण । मकानोरणके ये ठीकथानक, १४८७ सम्वत्में धन्यशालिचरित, दान- सामने बाजार है। मदोना तोरणके पास हो जिदाका | कल्पद्रुम तया योगोपालकथा आदि कई एक सेताम्बर • पवितीर्थ-ईभकी कद्र है। जैन ग्रन्योको रचना को थी। इसके अतिरित १४८७ . यह कत्र २०० हाथ लम्बो और १५ फुट चौड़ी है। सम्वत्में ये अपने ही हारा रचित नमस्कारस्तवको टोका लोग कहते है कि इसके भरोरका भाकार इतना ही लिख गये है। महा था! एदि मो ईभका उमेख कर गये हैं, किन्तु | जिनकुपल-एक ताम्बर जैन ग्रन्यकार । इन्होंने जिम. काले पत्थरके सिवा और कोई चीज उतनी पुरानी नहीं। वनम, जिनदत्त पोर जिन चन्द्रके वंशम तथा खरतरगच्छ. जंचतो। . | में (सं० १३३७ ) जन्म लिया था। १३८८ सम्बत्में . समुद्र किमारे कुछ प्रष्ट्याग्निकापोंके. रहनेसे नगर उनका देहात दुपा है। उन्होंने तरुयममको प्राचार्य की शोभा बढ़ गई है। परन्तु मड़के टेड़ो मेड़ी पौर पद दिया था। चेत्यवन्दनकुलम नामका एक अन्य चौड़ी है। यह दो बड़ो बड़ी मसजिदं है। बाजारमें मिलता है, जो इनका बनाया हुआ। .ममियोंकी कमो नहीं है। यहां पानोका बन्दोयम्त जिनचन्द्र-१ एक दिगम्बर जैन अन्यकता। दोन सतना पच्छा नहीं है जितना कि चाहिए। विक्रम मम्वत् १५०७में धर्म संग्रहयायकाचार पोर मादा आता है कि पोटोमैमो के समयमें फारमके, मिहानमार (म्बए) ये दो अन्य एपे थे। । . Vol. VIII. 78