पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३४८

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जिनदत्त-निनभक्ति सूरि ३११ जिनदत्त एक सदग्टहस्य और धर्मनिष्ठ महापुरुष । ये, जिनदेवकषि-दिगम्वर वैनी के एक महत ग्रन्यकर्ता अत्यन्त धनाय और जैनधर्मावलम्पो थे। प्रसिद्ध सेना | इनों ने कारस्यकनिका पोर मकरमजपराजय नाटक चार्य गुनभद्रम्वामोमे अपने "जिनद सपरिव" नामक | ये दो ग्रन्प रखे हैं। ये योठकुर माई देवके पुत्र थे। काव्यग्रन्यने इनको वृत्तान्त विस्टतरूपये लिखा है। जिनधर्म (सं० पु.) १मधर्म। जैनधर्म देखो । २ दिग. ___ बहावस्थामें ये कुवरतुल्य सम्पत्ति छोड़ कर मुनि | मर ने न सम्प्रदायक एक कर्याटक कनि। ने हो गये थे। हजारीबाग जिलेके अन्तर्गत योसम्मेर- कर्णाटक भाषामें अनन्तनायपुराण निवा है। . शिखर पर्वत पर इनकी भव-लीला समाप्त हुई। इनका | जिनपति-लिनचन्द्र के शिष्य, जिनेश्वर सरतगरके गुरु जीवात्मा स्वर्ग में जा कर देव हुमा । ये महावीरस्वामी और मिनेनर प्रणोत पञ्चलिङ्गप्रकरम नामक ताम्बर के पीछे हुए हैं। जन ग्रन्यके टोकाकार । इनका जन्म सं० १२१०, दोचा जिनदत्त सूरि-१ खरतरंग के एक खेताम्बर जैन म० १२१८ और मृत्य म० १२०७ है । १२२३ सम्वत् . ग्रन्यकार । निनवलभ खरतरगच्छ के परवतों गुरु । इनका में जयदेव सूरि द्वारा हे सूरिपद मिला था। ये वर्षी मूल नाम सोमचन्द्र था। ये ११३२ मम्वत्म जनमें थे और समाचारपत्र और टोकाक प्रणेता हैं। इनमो ने ११४१में इन्होंने दीक्षा ली थी। इनका दोक्षाका नाम | पष्टिशतकप्रणिता नमिचन्द्रको जनधर्म को दीक्षा दो थी। प्रबोधचन्द्रगणि था। १९६८ सम्म में इन्हें चित्रफूटमें | जिनपुत्र-ताम्पर नेम यति और योगाचार्य, भूमिशाला देवभद्राचार्य के निकट रिपद प्राम धुआ था। पीछे | कारिका नामक ग्रन्यके प्रणेता। इन्होंने नाना स्थानों में प्रगत कार्यों द्वारा जैनधर्मका निमप्रबोध-खरतरगच्छोय जिनेवरके गिय। इनका प्रचार किया था। इसके सिमा इन्होंने सन्देहदेवलो | जन्मस'१२८५, दीक्षा स० ११८६, पदस्थापन सं० आदि कई एक पुस्तके भो रची थो। १२११ सम्वत्में | १३३१ और मृत्य, म. १३४१ है। इनका दीवानाम अममेरमें इनकी मृत्य हो गई। प्रयोधमूर्ति था। इन्हा ने त्रिलोचनदामात कातन्त्रवत्ति

२ श्रीजिनेन्द्रचरित प्रपिता पमरचन्द्रके गुरु । आपने | विवरणपत्रिकाको पत्रिका दुर्गपदमवोध नामक एक

निकविलास नामका एक जैनतत्व ग्रन्य प्रणयन किया | टोका रची है। है। १२७७ सम्बत्, वरपालकी तीर्थयात्राके ममय | जिनप्रबोध सूरि-इनका पूर्यनाम पर्यंत था। ये श्रीचन्द्र- · निमदत्तरि वायगच्छमें उपस्थित थे। | ई पुत्र पौर जिमेनरके शिष्य थे। इनका जन्म . जिनदाम गपित महत्तर-अनुयोगचर्णिके रचयिता और / १२२८ और मृत्य म०१२८७ है। निशीयहरकल्पभाषाबश्यकादिचर्पि कार प्रय नाममा निनप्रभ-रुद्रपक्षीयगा के एक नेताम्बर जैन ग्रन्यकार । यमपक भिष। | १५.. सम्बतमें इनका जन्म हुआ था। ये यम्यतामा जिनदास पापळे य-एक दिगम्बर जैन ग्रन्यकर्ता। ये शिकाटीकाप्रणेता महातिलकके विद्यागुरु धे। इन्होंने . म. १६४२में विद्यमान थे। इन्होंने हिन्दो मापा नम्बू- दिलो बादगाह महम्मद तुगलकको जैनधर्म का उप. चरित छन्दोबद, जानसूर्योदयनाटक छन्दोवा, मुगुरु देश दिया था। शतक आदि कई एक जैन-ग्रन्योंकी रचना की है। जिनमम रि-जिनसिंह पूरिक गिपा पोर न्यायकन्दरी- जिनदास ब्रह्मचारी-एक दिगम्बर लेन अन्यकर्ता। विकम पत्रिका प्रणेता रखशेखरके गुरु। १३६५ सम्वत्में इन्हों मम्वत् १५१ मे ये विद्यमान थे। इन्होंने बहुत मे ग्रन्यों ने साकेतपुरमें रहते ममय भयहरस्तोत्र पोर नन्दियेष. को हिन्दी टीकाएं लिसी में नया धर्म पञ्चामिका, ए. प्रगीत प्रजितपान्तिम्तवको टोका बनायो.।। इन्होंने सिचक्रपूजा, अनन्तव्रतोद्यापन, चतुर्विंशति उद्यापन, सुरिमन्नपदेगविवरण, नीर्घकल्प और पञ्चपरमेष्टिस्तीव • पनन्तप्रतपूजा, जम्बूदोपपूमा. रात्रिभोनमकया, होली | प्रादि ग्रन्यों की रचना की है। .. .. । परिव पादि अनेक पद्यग्रन्य सिख है। . : विमति मरि-इनका एम १०७. में, दीपा.१०४ में