पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३५७

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३१६ जिनसेन पाचार्य ---निनसेन खामो .... याने ३० वर्ष, पुष्पमित्रमे ३० यपं, वसुमित, अग्निमिल.. राजवंगम गर्म जिनसेनने जो गणमा वसलाई कर ने ६० वर्ष, रामभ ( गर्दभिश ) याने १०० वर्ष, नर ; दूसरे किसी भी जेनरथ, वा भारतीय अन्य साम्प्रदायिक .. याइनने ४० वर्ष, भयाणने २४२ वर्ष, गुमय गने २२१ ग्रन्यके माय नहीं मिलती।. "तित्य गुन्नियपयरस और वर्ष और कल्किराजने ४२ वर्ष तक राज्य किया था। तीर्थोबारमकोर्ण'के मत के साथ भावनिक ऐतिहासिक उसके बाद जिनमेनाचार्य फिर लिखते हैं- . ! सिधान्तका अधिक मतभेद नहीं है। ऐसी अवस्था । "पाण पट्मानी त्यवरया पंचामा मासपंपकं । जिगमेन जो भविष्यराजवंशका कान्तनिर्णय लिख गये । मुकि गते महायोरे शकराजस्ततोऽभवत् ।" है, वह उनका समसामयिक प्रवादमा है। उसे. इस शोकसे जाना जाता है कि शक संवत्से ६०५ | ऐतिहासिक रूप ग्रहण नहीं कर सकते। पहिले ( ५२७ ६०मे पूर्व ) महायोरखामोने मोज लाभ २ जैन महापुराण वा धादिपुराणकर्ता प्रमिह दिग..' किया था, तथा भिन्न भित्र गजको कालगणनासे म्बर *नाचार्य और गुणभद्राचार्य के गुग। जिनसेन . मान्न म होता है कि पीरनिर्याणके (६०४१५५४४०) स्वामी देखो। -२५५ वर्ष बाद और (३.५-२५५८)-३५० वर्ष जिमसेन स्वामो-जैन प्रादिपुगण कत्ती प्रमि दिनमा शक के पहिले पुष्पमित्रका अभ्युदय हुपा था। इधा | जैनाचार्य। ये भगवजिनमेनाचार्य के नाम से प्रमि। खेताम्बर सम्प्रदायके "तित्य गुलिय पयम" और "तीर्थो- 'जिमसेन प्राचार्य' शब्दमें इम सिह कर चुके हैं कि - हारप्रकीर्ण" ग्रन्योंकि देखनेसे माल म होता है कि जिम आदिपुराण-कार जिनमेन स्विता भिमपेमसे राखिको महायोर स्वामो मोक्ष पधार थे, उमौ रातिको सम्प गां--पृथक है। ये वीरसेन म्यामीक गिण पोर . पातक राजा अवन्तिके मिहासन पर अभिषिक्त हुए थे। गुणभाचार्य के गुरु थे। गुणमा भाचार्य देशो। ' . पालकमंगने ६० वर्ष, नन्दशने १५५ वर्ष, मौर्य ने जैनाचार्य प्राय: ,अपने वंशका परिचय न दे कर १० वर्ष, पुष्पमिवने २० यपं, बलमित्त और भानुमित्रने गुरु-परम्परासे परिचय दिया करते हैं। अतः यानी ६० वर्ष, नरमेन वा नरवाहनने ४० वर्ष', गर्दभिमशने | जाना जा सकता कि चे किम वशमें पाविभूत हुए थे। १६ वर्ष और शकराजने ४ वर्ष राज्य किया था, अर्थात् | वा इनके पिता प्रादिका. नाम क्या था। अनुमानसे महावीर स्वामी निर्वाणकालमे फराज अभ्य टय | इतना कहा जा सकता है कि या तो ये भापकला. पर्यन्त ४७० वर्ष होते है। इधर सरस्वतीगच्छकी देवके समान राजाधित किसो उच्च माधणकप्त में उत्पन - प्राचीन पहावली में लिया है कि विक्रमने उहा मराजको हुए होगे अथवा जैन-बामण (उपाध्याय) आदि । पराजित तो किया, परन्तु १८ वर्ष पर्यन्त राज्याभिषिक्त जातियों में किसी एकमें जन्म लिया होगा, कारण मिम नहीं हुये। उस मरखतो गच्छको गाथामें स्पष्ट लिखा प्रान्सम इनका यास रहा है, वहां इन्हों जातियों में नमः कि "वीराव ४८२ विक्रम जन्मान्तवर्ष २२ राज्यात धर्म पाया जाता है। . वर्ष ४" अर्थात् विक्रमाभिपेकायदरी (विक्रममवत्मे ) ___स्वामी जिमसेनके गृहस्थायस्था के वका परिचय ४८८ वर्ष पहिले ( ४८८-५०० ४३१ या पीटादमे भने झी न मिले, किन्तु उनके मुनिवंगका परिचय समझे ४३१ वर्ष पहिले ) महावीर सामोको मोच हुई थो।। ग्रन्यों एक दूसरे उझेग्डोम मिल जाता है। महावीरम्बामो . . मिनमेनने जो शायद ६.५ वर्ष पहिले वीर मोल के निर्वारके अपरामा जब कि खेताम्बर सम्प्रदायको . निखा है, ठमके पनुमार दिगम्या संप्रदायो पाजनक उत्पत्ति नहीं हुई थी और जब पाईत, जैन, अनेकामा भी योर मोघान्दकी गणना करते पति है। परन्त भविष्य स्वादाद मादि नामों से अभधर्म की प्रसिरियो, तर . . इस विषयमा मूल प्रमाण दीविदाको द्वितीय भाग ० जैनधम सामदी रहित था। पीहे वि०म०.१५६म जय . में लिया है। ताम्यरमन्प्रदायको उत्पत्ति एतब मृत सम्पदाय (लों FIedio Antigratr..Vol. xx. suT. .... .. कि 'दिगम्बर' नाममें प्रसिद्ध है) मूलमा नाममें प्रति