पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३५९

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३१८ जिनसौख्य सूरि-जिनेन्द्रभक्त रणको मम्मतिमे भारतीय कवियों में कालिदामको पहला जिनेन्द्रमत - जन पुराण ग्रन्थयोंमें इनको पचन महिने म्यान दिया गया है, तथापि जिनमेन मेघदूतके कर्ताको वव प्रणमा की है। ये तामलिम नगर में रहते थे चोर अपेक्षा अधिकतर योग्य समझे जाने के अधिकारी हैं। बहुत धनाव्य सेठ थे। पाराधना कयाकोप नामक जैन जिनसौख्य मूरि-एक प्रधान ताम्बर जैनाचाय ।ये जिन ग्रन्थमें लिखा है . . मन्द्र गिषा भोर जिममति के गुरु थे। जन्म सं० १७२८ में, पाटलीपुत्र नगरमें यगोध्वज नामक राजा राज्य करते दोशा १०५१. रिपद १९६२म और १७३० सम्वत्में | थे जो बड़े धर्मात्मा और उदारचेता ये। किन्तु उनका उनकी मृत्य हुई। चोपड़ गोवले पारिपसामोदासने पुत्र सुयोर बड़ा द्वाराचारी पोर चोरोका मरदार था। इनके पद महोत्सवम ११००० रुपये व्यय किये थे। एकदिन सुवोरको माल म हुपा यि, ताम्रलिप्त नाम मिनस्तपन-मरहन्त मूर्ति के अभिषेकको विधिविशेष : एक जिनेन्द्रमा नामक सेठ हैं और उनके मकान जैन मागारधर्मामृतकारका मत है कि मध्याइ क्रियाके सात मजल पर जिन-चैत्यालयमें एक रवमयो जिम. लिए श्रावकको पहले जिनम्तपन वा अभिषेक करनेको प्रतिमा है। सुवोर अपने लोभको न सम्हाल सका, उममें प्रतिज्ञा करनी चाहिये । तदनन्तर रख, जल, कुशा और अपनी मण्डलोके लोगों को बुलाकर सब हाल कहा। . पग्निके द्वारा नर्पण प्रादिको विधि करके, अभिषेक | उनसे म य नामक एक चोर बोल उठा-"मैं उस करनेको भूमिको शुद्ध करें। फिर वहां स्तपनपीठ | रत्न मूर्तिको ला सकता है।" सुधीरने से ताम्रलिम (पभिषेक करने का सिहामन , स्थापन करें। स्तपन | आने को आभा दे दो। सूर्य ने ब्रह्मचारीका भेप धारप . पीठके चार कोनों में चार जनपूर्ण कलश एवं कुश किया पोर ताम्रलिप्त ना कर टोंग फलाना शुरू कर स्थापन करें और घिसे हुए चन्दनमे उम पर 'श्री' 'झो | दिया। सबके मुखमे इनको प्रशमा सुन कर मिनेन्द्र ये दो वर्ण लिख दें। धनन्तर योजिनेन्द्रदेवकी मूर्ति । भव भो अपनों मिवमहसी के माय बमचारो के दर्शनार्य स्थापन कर उनका स्तपन या अभिषेक करना उचित गये और इनवेशधारी म र्वको मन्दिरकी वन्दनाके लिए है। (सागारपर्मामृत ६।२९) प्रपने घर ले गये। मतान्तरम चन्दनके बदले रञ्जित तण्डलमे भी यौ। कुछ दिन बाद जिनेन्द्रभात विदेश जाने को तैयारियां "हीं लिखा जा सकता है। करने लगे। उन्होंने उता समवेशी ब्रह्मचारो पर चेत्या. जिमहर्ष-१ एक दिगम्बर जैन प्रन्यकार। ये पाटनके जयके पूजापाठ मोर रखपालोका भार पर्पण किया। रहनेवाले थे। इन्होंने स. १७२४में यणिकचरित्र सूर्य ने अपने उद्देश्यकी पूर्ति होते देख या प्रसायको छन्दोवा नामका एक हिन्दो पद्यग्रन्य रचा है। मंजूर कर लिया। २ एक खताम्बर जैन ग्रन्यकर्ता। उन्होंने माट- एक दिन वह मौका पाकर पाधो रातको रखमूर्ति पंचाशिकाफी वालाबोध नामको एक टोका लिखो । से कर यहांसे निकल पड़ा। मार्गम मामेदारने घमा जिमा (प.पु.) व्यभिचार, छिमाता। चमाती दुई चीज ले माते देख उसका पोका किया। :.' जिनाधार ( पु.) एक बोधिसत्व । सूर्य चोर बहुत मागा, भागते भागते बक गया, पर याने. . निनिस (प. स्त्री) जिस देसो। दारम उमके पीछा न छोड़ा। असमें वह नहीं मेठ के जिनिसवार (प्र.पु.)जिसबार देखा। पास पहुंच कर "मचापो! पचापो" का चिहाने जिनेन्द्र (स' • पु०) जिनानामिनः जिन इन्द्र वा । १ बुद्ध । लगा । जिनेन्द्रमाको उमको दगा देष कर पड़ा पापर्य २ सौप पर। दुपा। वे विधारने लगे, 'यदि में सत्य बात कह देता निमेन्द्रद्धि-कामिकात्तिवियरणपत्रिका या कागिका. ई. तो धर्म की बड़ी मिन्दागो पोर मेरा सम्यग दर्शन । त्तिन्यास नामक यन्यके रचयिता । ये कामोरके वराह भी दूषित होगा।' उन्होंने थानेदारगे कहा-'मा! मूत (तमान बारमूत ) नामक स्थानके रहनेवाले थे। घोर नहीं है, ममे तीन प्रतिमाजो मनमा