पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३६०

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जिनेश्वर-जिवालटर धौं।" इस पर धानेदारने उसे छोड़ दिया। इसके बाद । यो। १०८० सम्वत्में इन्होंने नाबासपुरमें रहते समय भोंने उसे धर्मोपदेश दे कर विदा किया। | अरकत्तिको रचना की थी। ये चैत्ववासियोंसे मास्वार्थ (भाराधनास्थाकोष) करने के लिए बुद्धिसागरके साथ गुर्जर देगको गये थे। जिनेश्वर (म.पु.) निनानां इंसरःतत् । बुद्ध । उक्त सम्वत्में अणहिलपुरके दुल भराजको मभामें सरस्वती जिनेतर-१ मुनिरन मूरि ( पूणि माग )के सहकारी भाण्डागारमे जो दगवैकान्तिकसूत्र लाया गया था, गरु । मुनिरन्त्र सूरि द्वारा १२५२ मम्वत्में ये सुरप्रभकी उसमे साध्वाचार सम्बन्धी कई एक प्रोको के पढ़न गहीके लिए चुने गये थे। पर चैत्यवामियों के साथ उनका शास्त्रार्य हुआ, जिसमें • २ जिनपति के शिय और जिनप्रबोधते गुरु । जन्म | जय प्राह करके उन्होंने राजासे खरतर विरुद प्राम १२४५में, दोचा १२५५में, सूरिषद १२५८में और १३३१ किया था। इन्होंने उक्त गुजरात राज राजत्वकालमें सम्वत्में इनको मृत्य हुई। दीक्षानाम वीरभ था । | पञ्चलिङ्गिप्रकरण तथा १०८२ मवत्में ( भागापलीम ) ये लघु खरतर शाखाके प्रधान व्यक्ति और चन्द्रप्रभम्वामि लोलावतीकघा, दिन्दियानक ग्राममें कथानककोप पोर चरित्रके कर्ता थे। इनके शिष्य जिनमि हसग्नेि उक्त | वोरचरित नामके स्वेताम्बर जैनग्रन्य रचे थे। ये बाप्प

शाखाकी (१२२१ सम्वत्में ) स्थापना को थी। मोमके पुत्र थे। इनका यादि नाम शिवनर था।

जिन वरदास-दिगम्बर जैन सम्प्रदायके एक विहान पोर २ अभयदेव स रिके गिष्य और अजितसेन सरि कवि । एटा जिलाके अन्तर्गत उम्मरगढ़ नामक स्थानमें, राजगच वचमाख कोटिकगणके गुरु । ये माग्विकचन्द्रमे वि०स० १८१५के पीप माममें इनका जन्म हुआ था। सात पोढ़ो पहलेके पौर राजा मुन्नके सममामयिक इनकी जाति पद्मावतोपुरवाल थो और पिता का नाम (१०५० ईके ) हैं । मि० काटका कहना है, जिनेम्बर लक्ष्मणदाम था । ये बडे धर्मात्मा, शुहाचरणो ओर परोप. सरि तया अजितमिह म रिके गुरु मुन्नराजको सभा 'कारी व्यक्ति थे। आपने सुजानगढ़, कुचामन भादि मार• ध्यान वर म.रि. दोनों एक ही व्यक्ति है। वाड़के नगरी जन धर्म का प्रचार पोर हजारों भूने- जिनोत्तम (सं० पु.) जिनामा उत्तमः ६-तत् । बुद्ध । भटके मनोका छहार किया था। कुचामनमें इनके / जिन्द-हिन्दोके एक कपि । नामका एक विद्यालय स्थापित है। महान "जैनधर्म- | जिन्दवीर-एक मुसलमान फकोर । सिन्धुपदेशन वापर प्रचारिणी मभा को स्थापना की थी, जो अब भी पपना । नगरमे कुछ उत्तरमें नदी मध्यस्थ एक दीपमें इनको कम कार्य कर रही है। आप एक हिन्दो भापाके कवि भो। है। मिन्धु-प्रदेशके क्या हिन्दू पौर क्या मुमतमान सभी थे। इनके बनाये हुए हजारों धार्मिक भजन, पद्य और | इन पोरकी पूजा करते हैं। इनके पूजकोने पव्यय गीत पक्ष भो मारवाड़में प्रचलित हैं। इन्होंने कई एक | करके कनके ऊपर एक बड़ा मठ बना दिया है। उम पद्य-अन्य भी बनाये है, जैसे-नन्दीबरकोप पूजा, मठम हिन्दू मुसलमान दोनों तरह के बहुत यात्री जाया दैलोश्यमण्डल पाठ, दशलक्षण-पूजा, रनवयपूजा, चतु करते हैं। विशतिपूजा, बारह भायना नाटक, चेतनचरिवनाटक, जिन्दु-मह के समसामयिक एक. मीमांसक। .. जिनेखरमितास (इममें इजारौं माध्यामिक सवैया जिन्धर-गूजर राजपूतोको एक भाया। .. दोहा इत्यादि), जिनेवरपदम ग्रह, पादि । वि० सं० जिमालटर (Gibraltar)-भूमध्य मागर पयिमभागके प्रयेग १८७४में पप्रहाय या ११शोको कुचामनमें इनको । पय पर अपस्थित त्रिटिग मामाज्यान्तर्गत एक उपनिवेग मुह एई। . पोर टुगं । ममग्र भूमाल लाम्बाई में २ मौलो भी कम और निने सर मरि:-१ चान्द्रकुनज वईमानके शिष तया| चोड़ाई में । मौनमे । मोल तक है। तारोक-वैन लद' जिमचन्द्र, अभयदेव पौर जिनभद्र के गुरु। बुद्धिसागर | · नामक किमी विजयोका नाम प्रपन हो कर 'जवन इनके मित्र थे । वरनर-माधु-सन्तति की हत दुई! तारोक' से गया था. उसी मे 'तिमासटर' नामको एत्पत्ति ..