पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३७२

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जिहा . : है। यह प्रदेश जिहाकी मून अस्थिके साथ संयुक्त है। हम उसका स्वाद पाते हैं। प्रोर जो पदार्थ गतते जिताकी मूलास्थि घोड़े को नालको तरह टेढ़ो और नहीं है, उनका हम स्पर्ग हारा पनुभव करते हैं। जिनामूलमें अवस्थापित है। मोलिए यरोपोय भाषामें अत्यन्त स्वादिष्ट पदार्थ होने पर भी यदि वह सूखा हो इसको लिलयान्न अस्थि करते हैं। लोभको देख कर और जिताके किमी एक पंगम नगाया जाय, तो हम मनुष्पके रोगका निर्णय किया जा मकता है भोर किस | उमका कुछ भी खाद नहीं पाते। जोमके काटी पर पौषधक प्रयोगमे लाभ होगा. इसका भी प्राभास . रखने वा उमके ऊपरमे हिलानसे हम पदार्थ का स्वाद मिलता है। मोन पा मकते हैं। मुंहके अन्दर जहाँमे हम पाम्वाद जीभ कया काटे होने के कारण हो यह खरखरी | पाते हैं उस स्थान पर तरल पदार्थ के हिलानेमे उमझा है। शरीरमें जिस प्रकारका श्रममा उपत्वक् है, निधाम स्वाद मालूम हो सकता है। स्वादविगिट द्रयशो भी वैमा है, पर बहुत कम। निगलते समय हमारी प्राण-बहनकारी सायुमगइनी जीभके किम स्थान पाखाद ग्रहण किया जाता है | थोड़ी बहुत उत्तेजित होती है। किमो उत्तम पदार्थ और आखादनको वास्तविक सायुए किम स्थान पर है, को खाते अथवा पोते समय हम उसके स्वाद और गन्ध रस विषयमें बहुत मतभेद है। जिलाके मूलदेशम | दोनोंका ही अनुभव करते हैं और दोनों के मियप से हमें महां मगनी (Magnee) नामक काटे विन्यस्त हैं, उस एक नवीन ही खाद प्रा होता है। वसेको किमो केन्द्री तपरिमित स्थानमे हम तीन स्वादविशिष्ट | तरहको परोचक वस्त पिलाते ममय, जिममे उमे किमी पदार्थका पासाद ग्रहण करते हैं। जिन्नाके अग्रभागमे | तरका स्वाद मालूम न पड़े, इसके लिए उममें नामा. कष्ट ए, मोठे और तोत्र पदार्थ का स्वाद प्रासानोमे मालूम | रन्धों को दान कर बन्द कर देते हैं। किमो धीजको जो सकता है, किन्तु पयामागके मध्यस्थानमें किमी / वानिके बाद जो पास्वादका मग रहता है, यह माधा- तरहका स्वादनान नहीं होता। मि• घोमन (Hr.! गणतः तीव होता है, पर अम्ल पोर महोचक घोषध- . Borman ) का कहना है कि, किमो किती कोमल | विशेषका परवर्ती प्रास्वाद मधुर होता है। तान्नमें खाद-ज्ञान है, किन्तु उनके गाल और दाढ़े पदार्थ के आस्वादसे हम खायदव्यको पसन्द कर लेते प्रास्वादशशिसे शून्य हैं। है। पास्वादकै समय लार निकल कर घर परिपाका रासायनिक अथवा अन्य किती प्रक्रिया के कारण कार्य महायता पहुंचाती है । इसलिए सुस्वादु भोजन मायुमण्डली द्वारा पदार्थक पासादका अनुभव होता है। हो हमारे लिए फायदेमन्द है। उनकै उत्तेजित होने पर इम पास्वादका ग्रहण करते जिताको वागैस्ट्रिय भो कहा जा सकता है, क्योंकि शनिशाके अग्रभागमें पकमात् धीरेमे गन्नो छुपानौ । जिवाके रहने पर ही हम बात कह कर मरेमे अपने हमें मिव भिव समयमें विभिन्न प्रकार के स्वादका अनुः | मनका भाव प्रकट कर सकते हैं। यदि जोम न होती, भव होता है। जिसके मूलदेगी सपरको ओर यदि | तो मनुष्य कभी भी रतनी उयति नहीं कर सकता था। कोई कोषका पदार्थ पथवा दुमाए हुप पानीको बूंद ! यद्यपि जीममे पास्वाद ग्रहण किया जाता है, किन्तु नो रसती जाय, तो हमें एक तीन स्वादका अनुभव होता भी बात कहने निमित्तम रीन्द्रियों में जिनाको उशा- है। जीभमें ठगड़ी हवा लगनेमे कुछ नुनखरा स्वाद | मम दिया ना मकता है। इस जिनाफा मदुपयोग मालूम पड़ता है। जोभको १२५ डिग्री गरम पानी में करना चाहिये। दुनिया जवानमे हो किसने मनुथ एक मिनट ऽयो कर यदि धीनो पादि साई जाय, प्रिय और कितने ही पप्रिय होते हैं। इसलिए मनको तो किसी तरह का स्वाद नहीं मिलता । सुस्वादु रिलिजनक कदवाक्य न कह कर पिय पोर मोठो द्रश्य गन करके उमका रम श्रीमर काटों को पार कर जवान बोलनी चाहिये। धममिठोंके मतमे जो जिता अब पासादयानकारी सायुके माय मिलता है, तब सक्षगुप नहीं गातो, वर झोभ हो तथा है। वनुतः