पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३८६

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जीर्णोद्धार.-नोव ३४५ थप स्माने या विद्या मनियश्वरैर्युता। । पर भी प्रीप पुण्यलाभ होता है।(स्मृति) शिवेन सह मतिः।" | मोवि (म पु०) जोय॑ति छिम्रो भवत्यनेन ज किन् । इम मन्धको कह कर मन्वित अनमे अभिषेक चौर | स्तृ जागृगः किन् । उण् ॥१४॥ १ कुठार कुल्हाड़ो। विसउँन करें। मूर्ति काठको हो तो मधु पोस कर उसे । २ शकट, गाड़ी। ३ काय, गरीर, देह । ४ पर। टग्ध कर दें। हेम और रबादि दारा निर्मित हो, तो जील ( फा० म्तो०) १ मध्यम म्वर धोमा शब्द । २ तले पूर्वोक्त विधिमे स्थापित की, पीके शान्तिके लिए घोर | या टोलका वाया। मन्त्र हारा महत तिलहोम कर हम मन्त्रमे प्रार्थना जोलानो (प.पु.) एक प्रकारका जान्न रंग। यह बबुन्न, कर- झरवरी मजोठ, पतंग और न्नाहका घराबर भाग ले कर "भगवान् भूनभन्देश लेकनाय जगराते । पानी में उबालेनेमे तैयार किया जाता है। नौगलिंगसमुदारः कृतम्तव'झया गया । जोव ( म० पु. ) जोवनमिति जीव-धन । इला । पा अग्निना दारुज दग्धं लिप्त लादिकं जले। ३।३।१२१ प्रश्रवा नौवति-जोव-क । १ प्राणो, जोवधारी, प्रायविरताय देवेग | अघोराग्नंग तापमम् ॥ इन्द्रियविशिष्ट गरोरी, जानदार । २ जोयन्तोरक्ष । ३ जनतो मानतो पापि यथोक न कृतं आदि । वृहस्पति । ४ कर्ण। ५ चेवा । इसके मंस्कृत पर्याय - तत सर्व पूर्णमेवान्तु व प्रमादानाहेश्वरि ॥" आत्मा, पुरुष, अन्तर्यामो, ईश्वर । (त्रिका) ६ प्राय, जान, इम मन्यमे प्रार्थना कर प्रच्छिद्रावधारय करें, फिर जोवनतत्त्व । ७ हत्ति, पाजोविका, जोवन । (मेदिनी) वधाप्नलि को कर हम मन्च दाग प्रार्थना घरगी ऐमा कहा जाता है कि जोव, जोक्का जोयन है प्रर्यात चाहिये- जीव मम्पूर्ण जोषों द्वारा जोविका निर्वाह करते है । "गोविप्रशिलिगभूतानामाचार्यस्य च यग्वनः । ममम्स जोवों का अहस्त जोर जोषिका है, चतुष्पद जोयी- शान्तिर्मपतु देवेश ! मच्छिर नारतामिदम् ॥" रहा पदयुक्त जीव जोविका है, पतएय जोव ही एक नयीन मूर्ति स्थापन काने पर इतना विशेष है- मात्र जीव का जीवन है । जीवके बिना जीय के जोवनको "सत्प्रसादेन निर्विघ्नं देह निमापयत्यमो। रचा नहीं हो मकती। जरा ध्यान देकर पिचारनेमे थाम कर पुरश्रेष्ठ ! तावत्व चालके गृहे । विशेषरूपसे दयाम किया जा सकता है। · यमन को महित्वेह मूर्ति नै तय पूर्ववत् । (भाग, १११४५) 'यावत् कारयेत् भक्त: 5 तस्य च बांगितम्" नगत्में कोई भी जोवहिंसाके मिया कोई कार्य करने उम मन्ध दारा मार्थना कर यथाविधि पच्छिद्राव- में समय नहीं। इल जोतने और मोहिपादि खनिसे धारण कर कार्य ममाम करना चापिये। भी कितने ही जोवोंको हिमा होतो है। पानी पोने २ जोर्ण अर्थात् ट टे फटे मन्दिर प्रादिका संस्कार । | चौर हवफल भादि मानिसे भी बहुत नीयों को हिमा जिम राजा राज्यमें देवग्रह श्रादि टूटे और यह राजा | होतो है। प्रत्ये क पदार्य ही नोवयुक्त हैं. पति पद. उमका संस्कार मादि न कराये, तो उसका गग्य गीय विक्षेपमें कितने जोको Eिमा टुपा करतो है, कोन ही नष्ट हो जाता है। जो लोगटे देवानको मरमको रामार रख सकता है? इमो गोवहिमाके कारण मत बगैर करते या कराते हैं, उन्हें ने फल की प्रामि | पनीय मुल नहीं हो सकता। यह जगत् लीयोम होतो है। सो पतित भोर पतमान देवगर पादिको | परिपूर्ण है। ( भारत वनपर्व २०७०) रक्षा करते हैं, वे पन्तम पचय यि णुलोककी गमन करते ८प्राणियों के वेतनतत्व, मामा, जीवात्मा कार्य हैं।नयोन देसम्मको प्रतिष्ठापादियो पचा जीर्ण- शारगा ममू। कैगायको मौ भाग करके फिर उसका मस्कार मी गुना पुण्यदायक है। (विरहस्य) सम्न भाग करने में जितना होता है, इतना पथ्य वापो. कूप, नाग, नदो पालिका संस्कार करने । लीवका परिमाप | भोवारमा देखो। Vel. VIII.87