पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३८८

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बीवगोखामो ३४७ जन्म-१४५५ शक । (मतान्तरमें १४३५ शक) १पट मन्दर्भ ( दार्शनिक ग्रन्य.) २ गोपान चम्प, गृहवाम-२० वर्ष, वृन्दावनवास -६५ वर्ष (८५ वर्ष ३ गोविन्दविरुदावली, ४ हरिनामामृत व्याकरण, ५ धातु- प्रकट स्थिति) अन्तर्वान-१५५० शक । आविर्भाव- सूत्रमानिका, ६ माधयमहोत्सव ७ मइल्पकल्पङ्ग, पौष शुक्ला ३या। तिरोभाव-आश्विन शका श्या । । थोराधाका करपदचियिनिणय ग्रन्य, ८ उध्व ननोल. इनके पिता का नाम वनम था। जोवके वामस्थान | मणिटीका, १० भरिमामृतमिन्धुटोका, ११ गोपाल कीन थे एका बाकला चन्द्रहोपमें दूगरा फतेहाबादमें | तापनो उपनिषद-टीका, १२ प्रधम दिनोपनिषत् टीका, और तीसरा रामकेलो ग्राममें । गमकेनोमें ये ज्ये छतात | १३ पग्निपुगणीय गायत्रीभाष्य, १४ वैष्णवतोपिणी, १५ रूप) सनातनके साय अधिक रहते थे। इमेनगाहके भागवतमन्दर्भ, १६ मुकाचरित्र ओर १७ सारमग्रह । मन्त्रो सुपमिड रूप और मनातन इन नाक थे। इन्होंने वृन्दावनमें दो दिग्विजयो पण्डितों को महाप्रभुचैतन्य जिम समय रामकेनो पाये थे. उस ममरा शास्त्रार्थ में परास्त किया था। इनमे एकको कथा भता. ये बालक थे। इन्होंने छिप कर महाप्रभुको देखा था। | मालमें है; दूमरका नाम रूपनारायण था, प्रेमविलाममें . वस्तुति ममय वा अवस्थाको वाट नहीं देखो। उनको दिग्विजयवाता लिखी हैं। चैतन्यके दर्शनके प्रभावमे गाधारण मनुष्य के जमे भाव वनभभटके साय योजोवका चौर एक भासविचार होते थे, वालकके भी वैसे ही हुए, चैतन्यमे अनुराग | हुआ था। ये वही बाबममा . जिन्होंने "यमभो" हुआ, बालकने खेल छोड़ कर धैर्य में मन दिया। नामक एक वणव गाग्वा मम्प्रदायकी सृष्टि को थी और इसके उपरान्त रूप, मनातन तथा इनके पिता वनम | उता मम्प्रदायमें जो प्रकार स्वरूप माने जाते थे। चले गये। हन्दावनमे इनके पिता पोर थीरूप नीना ____एकदिन योरूप भतिरमामृतसिन्धु निग्न रहे थे कि, चल जाते समय एकवार घर लोट, मी समय बम की इतने में यहां बनम भो पा पहुंचे। उन्होंने उमझा एक मृत्य हुई। इसके कुछ दिन बाद श्रीजीय वृन्दावन पत्र उठा कर पढ़ा और उममें एक शोकको प्राधि जानिके लिए व्याकुल हुए। निकाल कर वे चल दिये । यह बात बीजोवमे महो न योजोयको इस प्रयार ममारसे विरागता देख कर गई। गुरु उनको मान्यता करते थे, इमलिये इन्होंने गुरुके अहोमी परोमो बहुत चिन्तित हुए । क्योंकि ये मर्वदा | मामने उनमे कुछ न कहा। वे पानी भरने के बहाने श्रीकाका भजन किया करते थे। वहांसे चन्न दिये और मार्ग में इन्होंने उम सोको विषयमें जीवने एकदिन रातको स्वप्रम भो योमहाप्रभु तथा वसमसे शास्त्रार्य किया। पन्त यसभको हो पराजित नित्यानन्दका दर्शन किया। इसके दूसरे ही दिन ये होना पड़ा। दूमरे दिन उन्होंने योपगे पूछा-"वह नवहोप चम दिये । मबहीपमें उस समय नित्यानन्द प्रभु लड़का कौन था, जो कन यहाँ मैठा था ?" योरूपने विद्यमान हैं। उन्हनि एन पर बहुत कृपा दियुनाई। कहा-"यह मेरा ही भतीजा पोर गिय है।" यसम यहमि नित्यान्द प्रभु के आदेशानुमार वेदान्त प्रादि योमोवको प्रशंसा कर चले गये। मौखने के लिए ये ( सपनमित्र के पावाममें ) काशो गये। ___वलमके चले जाने एर योरूपने जोवको बुला कर पायीमें उन्होंने मधुसूदन वाचस्पति के पास वेदान्त, न्याय कहा-"प्रभो तुम्हारा मन स्थिर नहीं हुपा, पभो कुछ पादिको शिक्षा पायो । म प्रकारसे मधुसूदन इनके गुरु प्रभिमान है। इमलिए तम्हें जहां रुपे यहां आपो, कागो में शिक्षा ममात कर ये यहांसे इन्दावन धन मन स्थिर होने पर यह पाना।" दिये। या इनके दोनों ताज मौजूद घे, उन्हें घड़ो हो गुरुके पादेशानुसार ये वृन्दावनके एक वनमें जा कर पुगो हुई। यीरुपने जीवको मन्च प्रदान किया। पड़े रहे, पाहार मानादि मव छोड़ दिया। इनको पछा वन्दायनमें रह कर इनों ने गिम्नलिखित पन्योशो | हुई कि इसी तरह प्राण त्याग दें। रचना की। ८ दिनई पन्दर ममासन श्रोपके घर पाये।