पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जीवगोखामो ३४० जन्म-१४५५ शक । (मतान्तरमें १४३५ शक )[ १पट मन्दर्भ ( दार्शनिक ग्रन्य.) २ गोपानवम्प, गृहवाम-२० वर्ष, हन्दायनवाम -६५ वर्ष (८५ वर्ष ३ गोविन्दविरुदावलो, ४ परिनामामृत व्याकरण, ५ धातु- प्रकट स्थिति) अन्तर्वान-१५४० शक । प्राविर्भाव- सूवमालिका, ६ माधवमहोसव ७ मइत्य कल्पना पौष शुक्ला ३या। तिरोभाय-आखिन राका ३या। । घोराधावा करपदचिपिनिणय ग्रन्य, ८ पञ्च ननोल. इनके पिताका नाम वल्लभ था । जोयके वासम्यान | मणिटीका, १० भरिमामृतमिन्धुटोका, ११ गोपाल. तीन थे-एक बाकला चन्द्रवोपमें टूमरा फतेहाबादमें | तापनो उपनिषद-टीका, १२ ब्रह्ममहिनोपनिषत् टीका, और तीसरा रामकेलो ग्राम । गमकेन्लोमें ये ज्येष्ठतात | १३ अग्निपुगणीय गायत्रीमाण, १४ वणवतोपिणी, १५ रूप) सनातनके माय अधिक रहते थे। डुमेनगाहके | भागवतमन्दर्भ, १६ मुताग्वि और १० मारम ग्रह । मन्त्रो सुपमित रूप और मनातन इन ताक थे। इन्होंने यन्दावनमें दो दिग्विजयो पण्डितको महाप्रभुचैतन्य जिस समय रामकेनो पाये थे, उस ममय शास्त्रार्थ में परास्त किया था। इनमे एकको कथा भना. ये बालक थे । इन्होंने छिप कर महाप्रभुको देखा था। | मालमें है। दूसरे का नाम रूपनारायण था, प्रेमविनामम ____ वस्तु-शक्ति समय वा अवस्थाको बाट नहीं देखतो। | उनको दिग्विजयवार्ता लिखो है। चैतन्यके दर्शनके प्रभावसे गाधारण मनुष्य के जमे भाव वलभभट्ट के साथ थोजोषका और एक शास्त्रविवार होते थे, वालकके भी वैसे ही हुए, चैतन्यमे अनुराग | हुपा था। ये वही वनभभइ ये जिन्होंने "वनभो" हुपा, बालकने खेम्न छोड़ कर धैय में मन दिया। नामक एक पाव शाखा-मम्प्रदायको मृटियो थी और इसके उपरान्त रूप, मनातन तथा इनके पिता बनम | उक्त सम्प्रदायमें जो प्रकार स्वरूप माने जाते थे। चले गये। धन्दावनमे इनके पिता पोर धीरुप नीना एकदिन योरुप भरिमामृतमिन्धु लिख रहे थे कि, चल जाते समय एकबार घर लोट, मी समय बालभकी | इतने में वहां बनम भो पा पहुंचे। उन्होंने उमका एक मृत्य. हुई। इसके कुछ दिन बाद योनीव दायन | पत्र पठा कर पढ़ा और उसमें एक सोशकी अशुदि जाने के लिए व्याकुल हुए। निकाल कर वे चल दिये । यह बात श्रीजोवमे मदो म योजोयको इस प्रकार म'मारमे विरागता देख कर ! गई । गुरु उनको मान्यता करने घे, मनिये इन्होंने गुरुके भड़ोमी परोमो वधुत चिन्तित हुए । क्योंकि ये मर्वदा मामने उनमे कुछ न कहा। वे पानी भरने के बहाने थोकणका भजन किया करते थे। वहांसे चल दिये और मार्ग म्होंने उम झोको विषयमें जीवने एकदिन रातको स्वप्रम भो योमहाप्रभु तथा | वनभमे शास्त्रार्थ किया। पन्तम वनभको हो पराजित नित्यानन्दका दर्शन किया। इसके दूसरे ही दिन ये होना पड़ा। दूसरे दिन उन्होंने योल्पमे पूछा-"यह नयहोप चन दिये । नवदीपमें उस समय नित्यानन्द प्रभु महका कौन था, जो कन यहां बैठा था ।" थोरुपने विद्यमान हैं। उन्होंने इन पर बहुत रुपा दिलाई। कहा-"वह मेरा ही भतीजा पोर गिय है।" यसम यहमे निन्यान्द प्रभुके आदेशानुमार घेदान्त पादि योजोवको प्रशंसा.कर चले गये। मीखने के लिए ये (तपनमियके पावाममें ) कागो गये। ___यस चले जाने पर थोपने जोवको वुना कर फाशीमें इन्होंने मधुसूदन याचस्पतिक पाम वेदान्त, न्याय कहा-"प्रभो तुम्हारा मन पिर नहीं पा. पभो कुछ पादिको शिक्षा पायो । म प्रकारमे मधुसूदन इनके गुरु पभिमान है। इमलिए तुम्हें वहां रचे वहां भाभो, कागोमें शिक्षा समाप्त कर ये वहांसे धन्दावन चल मन रिसर होने पर यह पाना।" दिये। यहा इन में दोनों ताक मोजूद थे, उन्हें बड़ी गुरुके पादेशानुसार ये हम्दावनके एक धममें जा कर सुबो दुई । यीरुपने जीवको मान्य प्रदान किया। पड़े रहे, पाहार मानादिमव छोड़ दिया। इनको छा मी तर प्राण त्याग दें। ___दायनमें रह कर उन्होंने निम्नलिखित प्रन्योशो रचना की। ७८ दिनई पन्दर ममातन श्रोरुप घर पाये। ईकि, मौन