पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३९३

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भाभी ३५० जोवनदास-जीवनहेतु सोयनदाम-'ककहरा' नामक हिन्दी ग्रन्यके रचयिता ।। भारी भीर भूधर गयन्दनकी नीम पा जोयगनाय- एक हिन्दी कवि। अयोध्या के अन्तर्गत साजे गजराम पं पिरले सीमानाह है।.. नयना जमे १८१५९०को अयोध्या के दोवान बालसपणके औषन हुकवि प्रेम अन्तर विचार कद वंग इनका जन्म हुपाया। इन्होंने 'घमन्तपचीमी' । आपु महाराज सीग फीएम साह है।" नामक हिन्दोकी एक बहुत पच्छो पुस्तक लिखी है। जीवनलाल नागर-हिन्दोके एका कवि। ये मंदो रहने २ अन्नारगे उरके रचयिता । ३ कई एक चिकिरसा | वाले और मस्कत, फारमो पर हिन्दी गई जाना ग्रन्यके प्रणेता । ४ तत्त्वोदयमपिता। थे। १८१३ ई०में इनका जन्म हुपा घा। १y ओवन बाजार-दिनाजपुर जिले का एक बन्दर। इसका ई में ये बुदो राज्यके प्रधान नियुक्त हुए थे। १८५० दमरा नाम गोरावाट है। यह करतोया नदोके पर ई के गदरमें इन्होंने बहुत अच्छा प्रबन्ध किया था। अवस्थित है। हम बन्दरमे दिनाजपुरका चावल दूपरे । १८६२ ६०में भागरे के दरबारमै इनको G. C. S. I. को दूमर स्थानों में भेजा जाता है। उपाधि मिली यो। दम्तकारीमें भो इनको पको जीयनबूटो (त्रिो०) मनोवनी नामका पोधा। योग्यता थो। इनको कविता मरम भोर प्रगमगोय जोवन माताने-हिन्दोके एक कवि। ये प्राणनायके | होतो यो । उदाहरण - शिण घे। इन्होंने १७०० ई में चकदहाई नामक "बदन ममंक पै चकोर है रहत नित, हिन्दी अन्य लिखा था। पंकज नयन देसि भार ला गया फिर । जोवनमुक्षा-इनका अमनो नाम शेख अहमद था। ये अघर मुहारमके चमिची हमनग, बादशा औरङ्गजेब के गिसक थे। इन्होंने तफमोरग्रह पूतरी के नैनन रे तारन पयो फिर । मदो नामको कुरानको एक टीका बनाई है। ११३० अग अग गहन अंगनको मभट होत, हिजिरा (१०१८ ई.) में इनको मृत्यु हुई। इनको यानि गान सुनि ठगे मृग ला ठयो फिरे । मुसाजोवन जोनपुरो भी कहते थे । तेरे रूप भूप मागे पियको अनुप मन, जोयनमूरि (हि. तो०) १ मनोवनी नामको जड़ो।। धरि बहु का बहुरूा सो भयो किर" २ अत्यन्त प्रिय यस्तु. प्रायप्रिया, प्यारो। | भोवनमत्त (संपु.) जीयनपरिन, जोवनी। जोमनयोनि (मं० स्त्रो०) जीवनस्य योनि: कारण, ६ तत् । जोवनवृत्तान्त ( स० पु०) नोवनधरित, मिटंगो भरका न्यायोता देदमें प्राणमधारकारण यन। यहो यत्र । । हाल, जोवनी। पतीन्द्रिय है। जोवनत्ति (सं० वि० ) जोविका, रोगो।। "यानो जीवनयोनिस्तु सर्वदातीन्दियो भवेत् । जोवनगर्मा-गोकुलोत्सबके पुत्र पोर पातरुण चम्प के शरीरे प्राणभारकारणं परिकीर्तितम् ॥” ( भा.) प्रीता। जीयनराम भाटखजुरहरा ( जिला हरदोई) निवामो | जीवनसाधन ( म. सी.) जीवनस्य साधनं, ६-तत् । एक हिन्दी के कवि। इन्होंने नगमाय पण्डितराज सप्त जोयनका साधन, जोविका, रोशो । गदानहरीका भाषा पद्यानुवाद किया था। करीव १४ जीयममिह-हिन्दो एक कथि। लगभग १८१८ में वर्ष हुए उनका देशास हो गया है। इनकी कविता- ये करोमो राज्य के दरबारमें रहते थे। शा एकटाएरण दिया माता- जीयनम्या ( . यो ) जोवनको इच्छा, जोमेको "दली में रात रामलीलाकी टीमा पमिलाया। मध्य गोमा सभाम राम रामको सिवाह है। जीवन हेतु (म. पु. ) जोयनम्य इरा उपाय, (सा! '. घोस पोरदार म पाणी पुर नि जोवन-साधन, जोयिका, रोशी। गहड़पुराण में विधा, पिरत नर नारिन के गौगुनो । गिल, भूति, मेया, गोरणा, विपि, पि, अति मिना ।