पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/३९५

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३५४ नोवन्मुक्त-नौवपुष्प यर्थशाचरपकी पमुखप्ति होती हैं. वह जोयन्मुक्त नहीं को पार कर जीयम्मत हो जाता है। जीपारना देना उमको मामन कह सकते हैं। जीवन्म तिके समय अननीयन्म ति (मस्ती• ) जोयतो मुशिल पता . भिमानित्व पादि भानमाधक गुण और पट त्वादि जाम होने पर जोवद्दगा में ही मसार यन्धनमे परिवार, शोभन गुप पनहारकी भांति इस जीवन्म का पुरुषों / कर्ट व. भोज व पादि परिखनाभिमानका त्याग मोर्ने । अनुवर्तित होते हैं। भईन तत्वज्ञानी पुरुपके घमाधन पर विविध दुःौमे छुटकारा मिलता है पोर न पुनः । रूप पष्टत्वादि मदगुण प्रयव मुन्नममे अनुपर्तित होते जन्म मृत्यु पादिका क्लेश भो नहीं सहना पड़ता। है। यह जीवरम का पुरुप देहयावा निर्वाह के लिए अच्छा, जोवनमुनिका उपाय, यसण, मनन, निदिध्यासन, योग प्रनिच्छा, परेच्छा इन तीन प्रकारमे पारस्य कर्मानित प्रादि । (तन्त्रमार ) जीवनमुकि देखें। सुख और दुःपको भोगता छुपा सानिचैतन्यस्वरूप विद्या- जोवन्मृत ( वि०) जीवनेष मृत: मृसतस्य नीवित बुद्धिका पवभामको कर प्रारम्पकमके अवमानके उप. भयस्थामें मृतकल्प, जो जीवित दगामें हो मोके भमान . रान्त प्रानन्दस्वरूप परब्रह्ममें लीन हो जाता है। पीछे हो, जिमका जीना पोर मरना दोनों बराबर हो । भी अशान और तत्कार्यररूप संस्कारीका नाश होता है । इम | कर्तव्य कार्य से परामुख हो कर मयंदा दुग्डों का पनुः . पसात् परमकैवलारूप परमानन्द, अत अखण्ट ब्रमः । भव करते रहते हैं, वे भो जोवन्मृत है। जो पामाभिः । सपने भयस्थित हो कर कवन्यानन्द भोगता है। मानो हैं और बड़ी कठिनसामे पामाका पोषण करते है देवायसान होने पर जीवन्मुक्त पुरुषके माण लोकान्तरको तथा जो वैखदेय पतिथि भादिका यथोचित सत्कार मी न ना कर परब्रममें लीन होता और मंसारबन्धनमे मुता कर सकते हैं, हिन्दूधर्म शास्त्रानुसार वे भी जीवन्मसके हो पर परमयाममें कैवल्यमुखमें लीन हो जाया करता समान याम करते है। (द) . है। (पेदान्तदर्शन) जोवन्यास (म. पु. ) जोवस्य न्याम, इतस् । मूर्तियोंको ___ सांस्यपातजस्तके मतमे--प्रकृतिपुरुषको विवेकमान माणमतिठाका मन्य । सोने पर जीवन्मुक्ति होती है । "इयं प्रकृतिः जड़ा परिणामिनी जोयपति (स.सी.) नीयः जीयनपतिरस्या:. यायो। त्रिगुणममी" यह प्रकृति जप और परिणमनगोल है,.सत्त्व. १ मधमा सो, वह स्त्रो जिमका पति जीधित हो । (५०) रजस्तमोगुषमयी, पर्यात् मुख दुरद मोहमयी है. में | २ धर्मराज। निर्भर और चैतन्यस्वरूप हूं-यह जान जप होता है. जीवपत्नी (म' स्त्री.) जीवः जोयन् पतिर्यस्याः यायो । तब पुरुष जीवन्मत होता है। निरन्तर दुःख भोगते ) जोयत् पतिका, सुधागिनी सी, पर ती जिमका पति भोगसे पुरुपके लिए ऐमा ममय पा उपस्थित होता है, जीवित को। घम यह उम दुग्नको निति लिए कुछ उपाय सोचने | जोवपत्र प्रवायिका (म• स्वी.) जोवस्य नोवपुत्र रम्य नगता है। पोछे नगको गास्नान माम करने की इच्छा पत्रानि प्रचोयोऽस्यो । जीव प्रचि भावे गत म । कोदा होतो है। फिर घर विषेशगानोंक पनुपार योग | विगेप, एक मगरका खेल। पादिका प्रयतम्यग कर मंमारयन्धनमे मुसा होता है, उम | जीवत्रो (स• सो.) नीयन्ती । गौरती देयो। समय एकति इसको खोड़ देती है । पति पुरुष के यजीवपुव (म• पु०) जीवः भोपाः पुत्र इय जय रतुवा। वाको माधित फरक हो निश्त हो जाती है, फिर नदीच, हिंगोटाका पड़। . . उमड़े माय नहीं मिनतो। जीववश (म'• पु.) लोयपुटः रवाये कन् ! १४,दो प्रततिम बढ़: र शकुमारतर पर कुछ भी नहीं है. क्ष, हिंगोटाका पेड़ । २ पुगोवा पुरुषले हारा एक वार टेनी जाने पर फिर यह दिएकाई जीयपुवा (मं• स्त्री०) नोया जोयन यो यम्मा, परमी । न देतो। जब पुश्य चपर्ने समयको ममझ लेता है और ' मरतो जिमका पुत्र जीवित हो। समापभान नर को भामा ६. सव पर मुख दु.मो. मोवपुप (म• को.) जीव: प्रस्तुः पुष्पमिया