पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४

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हिन्दी विश्वकोष (पष्टम भाग) जन्द-अयस्ता-पारसियोंका पादि धर्मग्रन्य । पारसी लोग किया गया है। पारसियोंके मध्ययुगक प्रन्यों में प्रायः इसे वेदवत पूज्य मानते हैं। इस ग्रन्थमें पारसियों के 'अविस्ताक' चा जन्द'गब्द देखनमें पाता है जिसका अर्थ है ईसर तस्य पूज्य अरथ न या जरदुश्तके उपदेशों का | मल अवस्सा-ग्रन्थ और उसका पनवी भाषा अनुवाद । संग्रह किया गया है। वर्तमान समयमें भारतवर्ष के यरोपोय विज्ञाननि म प्रकारके पदों को देख कर पारमो और फारमके 'गवार' जातिके लोग इस ग्रन्थके। यह समझ लिया था कि मल अयस्ताका नाम हो.जन्द प्रशासनानुसार पपमा जीवन विताते हैं। फिलहाल । अयस्ता है। १७० ई में हाडने तया १७७१ में यह ग्राम्य पूर्ण नहीं मिलता, उसके कुछ पंगमाव एकत्र आंकताई दु-पेरोंने म.न्द-प्रवस्ता शब्दका व्यवहार संयोजित किये गये है। परन्तु वे अंश पृथिवीके धार्मिक किया था। परोके परवर्ती यूरोपीय पन्थकर्तामों ने रस. इतिहास के लिए अम ल्य हैं। जगत्के प्राचीनतम धौ का ज.न्द अवस्ता के नाम भी उसख किया है। में पारसो धर्म अन्यतम है। यह धर्म किसी समय अवताका मादिम आकर-पनी प्रवादमे माल म होता है अत्यन्त विस्टन था । यदि ग्रोक लोग मारायन, पेटिया कि मूल प्रवस्ता चारह सौ अध्यायों में विभक्त था। तवारो और सालामिस युदमें पारसियोंको पराजित न कर देते और मासदी नामक परब जाति के ऐतिहासिको ने बारह तो सम्भव है यही धर्म समय जगत्में फैल जाता। हजार गोचर्म में पवस्ता ग्रन्थ लिखा हुपादेवाया। मिनि हिन्दुगों के लिये यह अन्य विशेष शिक्षाप्रद है, क्यों कि । (Plins the elder )-ने लिखा है कि जरथ स्त्र बोस इसमें वर्णित देव-देवियों के नाम भोर सपामना-पद्धति । लाख श्लोकोंमें अपनो उपदेशावली स्तिपिवह कर गये हैं। वैदिक धर्म के साथ मिलती जुलतो है। पनवी ग्रन्थों में बार बार कहा गया है कि, महावीर - नामकी निरुकि-जन्द-भाषाके "वस्ता" धीर पल्सयो | सिकन्दरपाइके बाद जिस समय फारमको मोषण हुदया माया "विस्तार" वा 'अपिस्ताक्ष' शब्दसे 'अवम्ता' हुई थो, उस समय प्रस्ताके अनेक अंगखो गये थे। भब्द की उत्पत्ति हुई है। मम्भवतः भवस्ता गद वेदको प्रयस्ता पतमान भाकारके देखनेमे भो यही प्रतोस भाति "ज्ञान" म अर्धको सूचित करता है। किसी किसी होता है कि यह किमी विराट ग्यका मात्र है। यिहानका कहना है कि, पपस्ता शब्दमे अवस्ता भयद! पनो मापा दोनहार्ट और फारमो माया रियायत, रीत दुपा जिसका अर्थ 'म लगन्य' वा शास्त्र' है और नामक यन्यों में पयस्ता के प्रयोगको विस्त वर्णमा • इस गदके बारा "जन्द" अर्थात् टीकामे इसको विमल और सूचो दोगई है। दोनों ग्रहों के पद मे यहो