पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४०६

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३६३ नौवारमा न्यायवत् अनादि हैं। जव तक पुरुषको आत्मत्याति टताको निरतिगयता कहते हैं। अणुको परमाएमा, न होगी, तब तक प्रकृति विस्त नहीं होगी। इम | स्थूलको परमम्यूलता, मूर्खको पत्यन्त मूर्पता पोर विज्ञान आत्मख्यातिके लिए तत्त्वज्ञानकी आवश्यकता है। तत्व की विद्वत्ताको हो पत्य स्क,टसा कहना होगा; अन्यया भान होनेसे ही मुप्ति होती है। मानान्मुक्षिः" (सांख्यद०)। उनमें विपरोत स्थ लत्वादि प्रण प्रभृतिको उत्कटता नहीं इस जानके लिए यवण, मनन और निदिध्यामन प्रायश्यक हो सकती। जानको उत्कटता और प्रपकटता पर है। श्रवण यादि साधित होने पर जीवारमाको मुक्ति विचार किया जाय तो पधिक विषयना पोर प्रम्पविषयता होती है। जब तक वामनानी ( संस्कारों ) का अन्त | ही देवर्नमें पातो है हमो नए किञ्चिमाव गासनानोको नहीं होगा, तब तक जोधात्माके उद्धारका कोई उपाय अपलट जानो और अधिक शास्त्रज्ञानोको उरकट जानी नहीं । (मांसद०) जीवात्माके विषय में पातञ्जल-दर्शन कहा जाता है। इस प्रकारमे जब प्रधिक विष. और सांस्थदर्शन दोनों का एक मत है। यता ही ज्ञानको उत्कटता मिह हुई, गम अपरिचित्र योगसूत्रकार जीवात्माके अतिरिता परमात्माको खोकार| ब्रह्माण्डस्य घर परण्यचर पौर हमारे नयनों के करते हैं । उनके मतमे-विद्या, अग्मिता, पि, प्रविः | अगोचर मर्ववस्त विषयता ही जानको अत्य करता निवेगाख्य षादि पञ्चविध श तथा कर्म पीर कामफलसे | रूप नित्य निरतिगयता है, मम मन्द हो का ? जिमकी यासनाएं अकूत रह गई हो. उस पुरुप विशेषः । पद नित्य-निरतिशयज्ञानस्वरूप ममता बीयामा को परमात्मा वा ईखर कहा जा सकता है, अर्थात् जिन | लिए मम्भय नहीं, कोंकि बुद्धिमत्त, रजोगुण और अनिर्वचनीय पुरुषको किमी तरहका लश नहीं, जो सर्वदा तमोगुणमे कलुषित होने के कारण उनको कति परि- परमानन्द स्वरूप सर्वत्र विद्यमान हैं. जो किसी प्रकारका | छिद्र है. इस दृक्शति के हाग मयंगोधरमानका होना विहित वा अविहित कार्य नहीं करते, जिनकी किसो | कदापि मम्भव नहीं । इमलिये यह निःसन्देह स्योकार तरहकी वासना नहीं है और इसी तरह जो भूत, भवि. करना पड़ेगा कि अपरिच्छिन दृषिमान ही ताग यत् बोर वर्तमान, तीनों कानों में सर्व विषयोंमे पृथक हैं, मर्व जसाका एकमात्र प्राशय है। ऐसे अपरिझिय ऐसे पस्तीकिक शक्ति सम्पन परम पुरुप होईपरवा परमात्मा गतिमान् जो हैं, वे ही योगसूत्रकार मतमे पर- हैं। ये परमात्मा मर्यप्रकार के पुरुषोग विशेष गुणमालो है, मात्मा है । इस प्रकारमे जब परमात्माको मशा गिडदुई इनके ममान टूमरा कोई नहीं है। ये पछामावमे सुटि, | तब 'परमात्मा या परमेश्वर नहीं है. यह कहना सिर्फ स्थिति और प्रस्तय कर सकते हैं । पातनलके मतम-पर. वागादम्पर या अज्ञानका विजृम्भ प्रलापमाय है। ये हो मात्मसाधक युक्तियां ऐमो हो है। समस्त वस्तुएँ साति परमारमा जगनिर्माणार्य स्वेच्छानुमार गरीरधारणपूर्वक गय अर्थात् तारतम्यरूपमें अवस्थित है । यस्तु पोको शेप मंमारप्रयतंक, संसारानलमें मन्तप्यमान व्यक्तियों के अनु. मीमा है, जैसे अस्पत्व और पधिकत्व, परिमाणको शेप बाइक, भसीमनपानिधान और अन्तर्या महामे मर्व व मीमा ययाझमसे परमाणु और पाकाम है। पतएव मद देदीप्यमान हैं, इन्दी को सपामे इन प्रशति पोर पुरुपका किसीको प्याकरणमावर्ग किमीको पलधारमें घोर मंयोग होता है। योगसूबके पनुमार जोवारमा पौर किमीको रुत्तत् गामा भीर दर्शनशानमें अभिन्न देख कर परमात्माके मिवा ममारको मम्प पवाएं परिगमोहै। स्पष्ट मालूम होता है कि, जानादि भी मातिशय पदार्थ "परिणामसमावा हि गुणाः ना परिणम्य क्षमपनियते।" है। सयपषम्य हो खोकार करना पड़ेगा कि, मानादि ने कहा पर शेप मीमा नाम कर निरतिगगता प्राम को ___ गुण परिणामगोन, पण मर भो परिपत बिना है। जो पदार्थ याम गुणों के माय और प्रभाव यथा | हुए नहीं रह सकते। ममारके फिमो भो पदार्थ को यो क्रममे सत्या ट और अपष्ट रूपमे परिगणित होते हैं, हम न देखे, प्रतिक्षप हो उमका परिणाम हो रहा है, पपरि. पदायोंको सर्वतोभावमे ताय गुणमताका प्रत्यक- पामी मिम पामा है। (प.)