पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४१०

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नौवाधान-नोवो के अमुमार चिकित्सा कगनो चाहिये। भुदरोग देशो। अवस्थामों में विद्या प्रादिक दुख पोर पन्धनमे मुमा तया - पकँपो हो, तो वातव्याधिको प्रणाली के अनुसार प्रणिमादि मिडियासे मम्मन रहते हैं। जीवात्मा देगी। चिकित्सा करें। वातव्याधि देसे।। जीवशोणित अधिश जीविका ( स० वी०) जीप्यते ऽनया। गुरोध हलः । पा निकले, तो गम्भारोका फन्न, बदरो और दुर्वा डाउन्लों | 1. जोव पकिन पत इत्व१जीवनोपाय. भरणा मे दूध गरम कर, ठगड़ा होने पर तमगड़ और अञ्जनके पोषणका साधन। इसके पांच-पाजीय, वार्ता हत्ति, साय स्थापन करना (पिचकागे लगाना) चाहिये। वन और जीवन है । २ जोव । ३ जीवन्ती। न्यग्रोधादि गणका काथ, दुग्ध, इसुरत और त उनको । जोविन (सलो०) जीव भाये। भीवन, प्राणा- शोणितममुष्ट कर वस्ति में लगाना चाहिये। कई गोणित धारण । कर्त रिहा । (त्रि. २ जीवनयुक्त जीता तुपा, निकलने पर रक्तपित्त और रातीमारको भौति प्रतीकार | जिदा। करना चाहिये। मानोधादिगणका साथ भी दिया जा| जोवितकान ( पु.) जोयतम्य जीवनस्य कानः, मकता है। जो गोणित निकलता है, वह जीवगोणित तत् । पायु. उमर । कहलाता है। रक्त है या पित्त. १म यातके जानने के | जोषितन ( स० वि० ) जोवित जोधन ति जीवित लिए उसमें कामवस्त्र डुवा कर गरम जन्नमें धोना इन्-उक् । प्राणनाशक ! चाहिये। यदि रङ्ग जमा रहै, तो उसे जीवशोणित मम | जोवितभा (म' यो ) जीवितस्य जोवनम्य सामान झना चाहिये। अथवा उस रहाको धन के साथ मिला यस्याः । नाड़ी देख कर प्रापका जोवनकाल जाना कर बनेको खिलाय, यदि खा ले तो उसे जोवगोणित जाता इमीलिये इसका नाम जीवितता पहा है। समझना चाहिये। (सुश्रृंत चिकि० ३० अ०) जीवितनाथ (म०पु०) जोषितस्य नाथः, ६ मत् । जीवितंग ओवाधान (म० की.) जोवस्य घेवजस्य आधान ६-तत् ।। प्राणनाथ, प्यारा व्यक्ति, माणी मे बढ़ कर प्रिय व्यक्ति । शरीरं, देह। जीयितेश देखो। जीवाधार (स' पु०) जोवम्य क्षेत्रजस्य श्राधार' प्रायया जीविता (स. स्त्रो०) अन्तपिप्पानी। स्थान, तत् । १ प्रदय, पात्माका स्थान । २ नत्रा जोयितान्तक (म. पु.) जोषितस्य पन्तकः, ६-तस्। जोयानुज-गर्माचार्य मुनि । ये हस्पतिके वंश उत्पद्र १जीवितान्तक, यम । जीयान्ता देखो। (वि.) २ प्राणी हए थे। किन्तु कोई कोई कहते है कि ये वृहस्पनिक | हिसाकारो, जो जीयो का यध करता हो। लघुभ्राता थे। जीवितय (मपु) जोवितस्स ईगा प्रभु, तत् । जोषान्तक (स'• पु० जीय अन्तयति नागति जीव. १प्रागनाथ, मामि घद कर प्रिय व्या २ यमा णिच्-ख स् । १ शाकुनिक, व्याध, वहनिया। (वि.) ३ इन्द्र। ४ सूर्य । ५ देशमध्यम्यित चन्द्रयरूपरला २ जीवनाशक, जोाका बध करनेवाला। विङ्गाला नादी, गरीरके भीतरकी चन्द्र पीर सूर्य के समान भीवाराम शर्मा-अष्टाध्यायी, रघुव'ग, कुमारमम्भव पौर पड़ा और पिंगला नाड़ो। नादी देखें। । (वि.) जीयि. तर्कसंग्रह भाषामायकार। तखर, प्रायके मालिक। जीवाईपिण्डक (म0पु0) चक्रस्थित गशिकलाके १८०० भागों से प्रष्ट भाग। नीवितखर ( . पु. ) जीवितस्य ज नत् । जोषि ना (म. सी) जीव उदरस्यामि पानाति । तेग, प्राणिजार । जीवितेश देते। राति नागयतीत्यर्थः पाला-क टा। हनी। जोविनी (स• स्वी०) १ काकोलो। २ ठोड़ो उप । मीयाम्तिकाय (सं• पु०) मई मत मिड लीवभेद, पाच | जीयो (म. वि.) जोय पस्याम्तोति जोवानि । प्रायः पस्तिकामिसे एक । यह तीन प्रकारका माना गया है, / धारक, लोनेयाना । २ जोवनोपाययुस, जीविका करने. अनादिसिह, मुख और यह । पनादिसिह महत् हे मोघम वाना।