पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४१२

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३६० नौवाधान-लोवो के अनुसार चिकित्सा करानी चाहिये । भुदरोग देखे।।। अवम्यापम प्रविद्या पादिके दुख पोर पन्धनसे मुन्न तया पपो हो, तो वातव्याधिको प्रणाली के अनुसार अणिमादि सिहियोंसे मम्पन्न रहते हैं। जीरारमा देनो। चिकित्सा करें। यातव्यापि देखे।। जीवशोणित अधिक जीविका (# स्त्री० ) जीप्यते ऽनया। गुरोध हलः । पा निकले, ती गम्भारोका फल, बदरो और दुवाके डण्ठलो . जोव अ.कन् पत इत्व । १ जीवनोपाय. भरण मे दूध गरम कर, ठण्डा होने पर तमगड और अञ्जनके पोषणाका माधन। इसके पर्याय-पानीय, वाता. सत्ति, माय स्थापन करना (पिचकागे लगाना) चाहिये। वन पीर जीवन है । २ जोय । ३ जीवन्ती। न्यग्रोधादि गणका काथ, दुग्ध, इत्रत घोर त उनको | जोवित ( म. सी.) जीष भावे । जीवन, मापा- शोणितमंसृष्ट कर वस्तिमें लगाना चाहिये। नई गोणित धारण । कर्तरि त ! (वि०२ जीवनयुमा जीता एपा, निकलने पर रक्तपित्त और मातीमारको भाति प्रतीकार जिंदा। करना चाहिये। नाग्रोधादिगणाका साथ भी दिया जा | जोषितकाल (म. पु. ) जोक्सम्य जीवनस्य कालः, मकता है। जो गोणित निकलता है, वह जीवगोणित तत् । भायु, उमर । कहलाता है। रक्त है या पित्त, इस यातके जानने के | जोषितन ( म० वि० ) जोवित जोवन' इति जीवित लिए उसमें कामवस्त डुबे कर गरम जन्न, धोना | इन्- | प्राणनाशक । चाहिये। यदि रग जमा ग्है, तो उसे जीवशोणित मम जोषितज्ञा (म० यो ) जीवितस्य जोवनम्य जा जान' झना चाहिये। अथवा उस रताको प्रवके साथ मिला यस्याः । नाड़ी देख कर प्रापका जोवनकाल जाना कर धुत्त को खिलायें, यदि ग्ला ले तो उसे जोवशोणित | जाता है। इसीलिये इसका नाम जीवितजा पड़ा है। समझना चाहिये। (सुश्रृंत चिकि.०१०) जीवितनाथ (म'०४०) जोषितस्य नाथः, ६ तत् ।जीवितंग ओवाधान (स० को०) जोवस्य क्षेवजस्य आधान ६ तत् । प्राणनाथ, प्यारा व्यक्ति, मासे बढ़ कर प्रिय व्यक्ति । शरीर, देह। जीवितेश देखो। जीवाधार ( स. पु०) जीवस्य क्षेत्रजस्य प्राधार पायय- | जीविता (म. स्त्रो०) जलपिप्पली। स्थान, तत् । १ वृदय, पात्माका स्थान । २ क्षेत्रमा | जोषितान्तक (म' पु.) जोयितस्य पन्तकः, ६.सत् । जो जोयानुज-गर्गाचार्य मुनि । ये वृहस्पतिके वंगमें उत्पन्न १जीवितान्तक, यम । जोयान्ता देखो। (वि०) २ प्राणी हुए थे। किन्तु कोई कोई कहते है कि ये वृहस्पतिक | हिंसाकारी, जो जोवों का वध करता हो। लघुभाता थे। | जीवितश ( स० पु. ) जोषितस्थ इंशा प्रभुः, तत् । जीयान्तक (सपु० जीय अन्तयति नागति जीवः । प्रापनाय, प्रायोंसे बढ़ कर प्रिय व्याज। २ यम। णिच-गल ल । १ शाकुनिक, व्याध, वर्हनिया। (वि.)। ३न्द्र। ४ सूर्य । ५ देशमध्यमियत चन्द्रप्यरूप दा २ जीवनाशक, जोर्वाका वध करनेवाला। पिङ्गला नाड़ी, गरीरके भीतरकी चन्द्र पौर सूर्य के समान चौवाराम शर्मा-पटाध्यायी, रघुयश, कुमारसम्भव पोर रड़ा पीर पिंगला नाड़ो। नाड़ी देश । (वि.) जीयि. तर्क म ग्रह भाषामायकार। तेबर, मापके मालिक। जीयाईपिण्डक (म० पु० ) थकस्थित गगिकलाके १८०० भागों में से प्रष्ट भाग। नीवितम्बर ( पु. ) जीवितस्य ईयर: । नीपि जीवाला (म. स्त्री०) जी उदरस्यसमि' पालाति सेश, प्रविश्वर । जीविते॥ ३।। मासि नागयतीत्यर्थ: पाना-कटाप । महनी। सोधिनी (म• स्त्री०) १ काकोलो। २ ठोड़ो तुप । नीवास्तिकाय (स• पु०) पहम्मत प्रसिह जीवभेद, पाच | जीयो (म' वि०) जोय पम्याम्तोति जोयानि । माप. पम्तिकार्योममे एक । यह तीन प्रकारका माना गया है, धारक, जीनेवाला। २ जोवनोपाययुमा, जीविका करने. पनादिसिर, मुख पौर यह प्रमादिमिह पईत लोय याना। जावित