पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४१८

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जुगराज-मुगुप्सन प्रकाश निकलता है, पर ठंडे पानी में छोड़नमे बुझ: जुगल सत्ती ऐसे भु ही मिटनको निशदिन रहत हिए रिय लत। नाताई। अतिशय झान्त कन: कुंडली मिगि टोत पोलन रत। पुजुगन की चपेक्षा ती जुगन हो पधिक | देसत यनत परण नहीं आवत सन मन हरत परत नहिं पत। उज्वल है। सो जुगन के पर नहीं होते, इसलिए वह जुगलकिशोर-हिन्दी के एक कषि। इन्होंने अगल-माजिक उड़ नहीं सकती, एक जगह "ठी हुई जरा जरा प्रकाग | नामका एक अन्य रचा है। करती है। इम प्रकागको देख कर पुजुगन उसका जुगलकिशोर भा-हिन्दोके एक कवि। ये कैयनके पता लगा लेता है। मिहनमें ऐमे कीड़े हैं, जिनकी (जिला करनाल) रहनेवाले पौर १७४६ में स्त्री-जातिको लम्बाई ३ की है। वैज्ञानिकों ने परीक्षा विद्यमान थे। इन्होंने प्रहारनिधि पोर किगोरम यह की है-यह वायुशून्य स्थानों और वाष्पके भीतर बहत नामक दो अन्य लिग्ने है। इनमें पहला प्रव पड़े . देर तक जोवन धारण कर मकता है। हाइड्रोजन वायके । महत्त्वका है-उसमें भलाके विषय में विगदरीतिमे भीतर रखनमे कभी कभी शाद करके फट जाता है। लिखा गया है। ये महादगाहके दरवारमें रहते थे। तितली, गुबरैले, रेशमके कीड़े धादिकी तरह ये | महम्मदशाइने उन्हें 'राजा' उपाधि प्रदान की थी। भी पहले टोलेके रूपमें उत्पन्न होते हैं । टोलेको प्रवम्या- जगलदास-एक हिन्दी कयि । में ये मिट्टोके घर में रहते है और उसमेंसे दस दिनके जगलिया (हि.पु.) जैन मतानुमार भगवन् प्रषमा गलिया न MATA उपरान्त रूपान्तरित हो कर छोटे छोटे रूमिके आकारम | देवमे पहले के प्राचीन ( भोगभूमिके मनुष्य । ये माताके निकलते हैं और स्पष्ट होते हो चमकने या प्रकाग फेलाने | गर्भने स्त्री-पुरुप एकसाथ टम्पतीरूपमें जमायाय लगते हैं, परन्तु इनका प्रकाग पूर्णावस्था जगन की तरह करते थे। इसीलिये इनको जगलिया कहा जाता। उजला नहीं होता। मबसे ज्यादा चमकीले सुगम् । मन्तान उत्पन होने पर ये दोनों ही मर जाते थे और दक्षिणा पमेरिकामे होते हैं। इनसे कहीं कहीं लोग इमकी सन्तान भी युगल या दम्पतीरूपमें जन्मग्रहण घरमै दीपकका काम लेते हैं। इन्हें मामने रख कर | करतो यो । इनको भोगभूमिया भी कहते हैं। लोग सूक्ष्म मे सूक्ष्म अक्षरोंकी पुस्तकें पढ़ सकते हैं। |ज गवना (हि.मि.) १ मचित रखना एकत्र करना। २पानके पाकारका एक गहना जिसे स्त्रिशं गम २ सुरक्षित रपना, हिफाजतमे रखना। पहनती है, रामनोमी। जुगादरी (दि. वि. ) जीर्ण, बहुत पुराना। जुगराज-हिन्दोके एक फाय। जगालना (वि.कि.) पागुर करना। जमराजदाम-एक हिन्दोके कयि । इनकी कविता जुगालो (बि. सो.) पागुर, गेमच। साधारणतः पच्छो होतो थी । उदाहरण- जगत (हिं. सो.) जुगत देयो। "संघर मदमाती कोल मा फागुनमें अौर गुलास उड़ाय। गारी गाय गाय तारी देय देय चलहि संकलनाय। |जगुपिषु (म. वि.) गोपितमिच्छः। गुप-मन-। गरजन परयन रंग बुंदेरे पर रहो मानो छाय। १ निन्दुक निन्दा करनेवाला । २ जगा कर रपनेयामा, रस म म गत पूम पूप चितमन देत जुगरान चुराय । यमपूर्वक रखनेवाना। जुगल (हिं० वि०) युगल देखो। | जुगुप्मक (सं० चि०) गुप-मन भावे प्रपतम्। व्यर्य जुगल सखी-हिन्दी के एक कवि। इनको कविता उरकट दूमरेको निन्दा करनेयाना। सीधी। एक कविता नोभे उडत की जाती है- गुसन (सं० को०) गुप-मन भाये म्पद। १ निन्दन, __"भाटीरी मति रामत अल। ! निन्दा करना. मरेको दुराई करना। (fa) कतार में सक मदत मनौत्य मुख पर गोदरम मोती गये । यु । २ निन्दायीन, निन्दक, निन्दा करदेवामा। सन लटक रहे अधरन पर साकी हिलन हिये रिप-हलके। । दोष पनि पनुमचान कर लो निन्दा मोजागी। Vol. m..