पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४१९

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मारका ३०४ , जुगुप्सा-जुटना जुगुप्मा ( म० मतो.) गुप मन् भाषे पटाप १ निन्दा, | जुगुलपरमाद घोष-हिन्दों के एक कवि । रहोंने तो गईणा. बुराई। वली' नामक एक पुस्तक रची।। सुगुमा (मत्रो .) गुप-सन् भाव प-टापनिन्दा गुलानन्यगरण मन्त-हिन्दोके एक प्रति कति (पमर ) योभत्सरमका स्थायिभाव, गान्तरमका व्यभिः ये जातिके वामण थे। इन्होंने मोमाराममहाटिका, चार माय । ( मादित्यदः ॥२३६ ) योमासरय देशो। रामनाममाहात्म्य. विनोद विलाम, प्रेममकाग, उदय- देव ज गुप्साका विषय . पातजलद नर्म इस प्रकार हुलासिनो, मधुरमन ममा, परहस्य पदावलो. प्रेम .. निवा- | परत्वप्रभा (दोहावली) पाहि प्रायः ३.-४• पयों "मीयार स्वाक जुभुमा परेर सर्गः । ( पात० २।०) | को रचना की है। १८०६ ६०में इनकी मगु हुई। . जिमने शौचको माध लिया है, कारणम्वरूप उसको पनकी कविता उत्कट होतो यो-उनसे कपिशी पिता पपने पा प्रत्यामि भी गा हो जातो है। आरमाको प्रगट होती है। नोचे एक उदाहरण दिया आता:- शचि होने पर शरीरको पानि ममझ उममें चाग्रह या । "ललित कंठ कमनीय साल, मन मोल सेस पिन दागे । ममत्व नहीं रहता पौर अपने शरीरके प्रति ज गुसा भान पीत सित असित माल, मनि नूतन सात सलाम । (स) हो जाती है। इमलिए अन्यान्य शरीरियोंमे या तारीफ मरीफ कीजिए रहिए हेरि हराम। . मिलने की भी रया नहीं होती । जिसको अपनी देहमे जुगुलानन्य नयीन पीन, पिक कापल मुनत कलाम " प्रणा हो गई हो, उसे पन्व शरीरमे ६प हो, ऐसा मंभव | जुन्ध (म पु० की.) यवनाल । नहीं। पामगोचवान व्यक्ति दूसरों के साथ पार्थ क्य नहीं जुङ्ग (म० ए०) जुग-पच् । सहदारक, विधाराका पेड़। रखता। मोलिए प्रायः माध्योगियों के लोकान्लयौ जुना (म. सी. ) गुग देशो। दर्शन नहीं मिन्नते। देहसे सर्वदा ज गुप्ता रखनी मुङ्गित (म. लि. ) जमा। १ परित्या घोड़ा एपा। चाहिये। गरीरमे जुगुप्सा भोने पर बैंगग्य पाता है। २ क्षतिग्रस्त, मुफमान किया दुपा। वास्तव में यह शरीर अनित्य है, यह रमान्त भम्मान्त या शुङ्गी-निपट जातिविशेप, एक नीच जाति। विष्टात हो जायगा। यह मातापिटज पाद कोगिक शरीर मुज़ (फा.पु.) एक फारम, कागजके ८ या १५ पटका भुल द्रष्यका परिणाम माव है, इसलिए इमर्म विश्वाम, ममूह। करना सगस नहीं। इसके निमित्तमे सर्वदा जन्म, मृत्यु, | जुज़बन्दी (फा० मी.) किताबको मिलाई। ममें जरा, व्याधि पार दुःखफे दोपका अनुसन्धान करना | पाठ पाठ पवे एक माय मिए जाते हैं। पाहिये। जुङ्गयो (फा० वि०) १ यतमि कोई एक। २ नमतानुमार पारिवमोहिनीय कांक भेटौम ने बहुत छोटे अंशका। एक । रसके उदयसे पारमा ग्लानि उत्पन्न होतो है। | जुझाक (हि. वि. ) १ गुहका, मड़ाई में काम शुगुप्सित (मं. वि.) १ निन्दित एगिम । (को०)। पानयाला। २ गुइके लिये उत्साहित करनेवाला । २ तनहगन, सफेद लहसुन। | जुट (हिं. मी.) १दो वमपोका ममूह, जोड़ी, जुग। शुगुण, (सं० वि०) निन्दुक, बुगई करनेवाला। J२ एकके साथ नगी हुई थरीका ममूह, योक । २ दन, शगुनि (मं. वि.) र रसुती ग्टगते यह. सुगन्तात् अन्या, मण्डली। ४ एक जोड़का पादमी या पम्। . किपि शादमी पमिशिः। स्तोटफा मंविभल, जो | जुटक (म. सी.) जुट मंहती जुट-फ। धी। पा स्तवमारियोको विभाग करता है। || ततः संज्ञायां फन् । जटा, सिरके उलए : अन एक कविका नाम। १५८८ ई. में उनका जन्म बाल। पाया। नको कविता साधारप येणोकी होती जुटमा (हि.नि.) १ मंसिट होगा. उड़ना । २ मटगा, । प्रगाहमा ३ निपटना, चिमटना। ४ मभोग करना,