पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जम्ब खंण्ड-जम्व दोप न्यूखण्ड (सपु०) जम्युसण्ड देखो। पतित जबफलके रमसे एक नदीको दृष्टि हुई है, जो जम्बूद्वीप (सपु०) पृथियोके सात हीपमिसे एक होप। इलाहतके दक्षिण भागको सावित कर रही है। इस इसको लवणसमंद्र चारों ओर से घेरे हुए है। जम्यूद्वीप | नदीका नाम नव नदी है। इसके किनारेकी मिट्टो में पृथिवीके बीचमै भीर अन्य छह दीप चारों भोर कमल. 'जाब नद' नामका सुवर्ण उत्पन होता है। इलावतसे ___ दलों की तरह अवस्थित हैं। भागवत के मतसे-जम्पहीप परिममें सुपाई पर्वत पर एक बहुत बड़ा कदम्बमक्ष लाख योजन विस्तोणं और पद्ममध्यस्थित कोपकी तरह है। इस वृक्ष पांच कोटरोसे मधुको धारा वह कर उम अवस्थित है। यह पनपत्रको भौति गोल और लाख स्थानको आमोदित करती है। उत्तर दिशामें कुमुद योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र द्वारा वेरित है । यह द्वीप पर्वत पर एक मुहहत् वटहन है। यह वृक्ष कल्पतरुके नौ खण्डों में विभक्त है। प्रत्येक खण्ड नौ हजार योजन | समान है। लगातार उसमेंसे दूध, दही, घो, मधु, गुड़, विस्तीर्ण और मोमापर्वतों द्वारा भलीभांति विभक्त है। प्रव, वस्त्र, अलङ्कार आदि निकलते रहते हैं, जिसमे इन नी खण्डों के नाम इस प्रकार है-इलाहत, रम्यक, यहाँके अधिवासियो'को किमो प्रकारका प्रभाव नहीं हिरण्मय, कुरु, हरियर्ष, किम्पुरुष भारत, केतुमाल रहता । इलाहतवर्ष पर दूध, मधु, चरस और जलसे और भद्राख । इनसे इलायत जम्बृहोपके बीच में है। परिपूर्ण चार इद तथा नन्दन, चैत्ररथ, वैभ्राजक और इसके उत्तरमें समयः नीलपर्वत. रम्यक, श्वेतपर्वत । मर्व सोभद्र नामके चार देवकानन है, जो नाना शोभाभी. हिरण्मयवर्ष, शृङ्गवान् पर्वत और उसके उत्तर में कुरुवर्ष से सुशोभित हो वहां लोगों को सर्वदा प्रसन्न रखते है तथा उसके बाद समुद्र पड़ता है । इलायतसे दक्षिण में है। सुमेरु पर्वतके पूर्व में जठर और देवकूट, दक्षिण में क्रमशः निषध पर्वत, हरिव मफूट, किम्म रुपयः । कैलाम और करवीर, पश्चिममें यवन और पारिपाय तथा हिमालय और भारतवर्ष है, फिर उसके बाद समुद्र | उत्तरमें मकर और विशृङ्ग नामके पाठ पर्वतों पर देव. पड़ता है। इलाहत वर्ष के पूर्व में कामशः गन्धमादन गण सर्वदा कोड़ा करते रहते है। (भाग १६०) पर्वत, भद्राश्ववर्ष और फिर सम टू है, तथा पश्चिम इसी प्रकार अन्यान्य खण्डों में भी बहुतसे नद, नदियों 'दिया मादयवान् पर्वत, केतुमालवर्ष और फिर समुद्र | भौर पर्वतो का वर्णन है। पड़ता है। उनका विवरण उन्ही शन्दोनि देखो। इलाहलके बीच में समर नामका एक ८४ योजन सभी पुराणों में जब दोपका ऊपर निखे अनुसार जचा कुलपर्वत है । सुमेरुके निम्नदेगी पद्मकिनलककी वर्षभेदादिका विवरण मिलता है, सिर्फ कहीं कहीं तरह २० पर्वत और भी हैं। सेकुरा, कुररं, कुसुभ, वांदिके नामसे थोड़ा बहुत अन्तर पाया जाता है। वैका विकट, शिखर, शिशिर, पतङ्ग, रुचक, निषध, (मारत भीष्मपर्व, विष्णुपु०, लिंगपु. ४१., वामनपु. १३, शितिवास, कपिल, शा, वैद्य, नारुधि, ईस, प्रपभ, अ०, कूर्मपु. ४५ म., बराहपु. ७७०, अग्निपु० १३९ भ०, नाग, झालनर और नीरद । इलायतको पूर्व की तरफ नृसिंहपु. ३५ अ०, कुमारिकाखण्ड इत्यादि प्रन्यों में जम्बू- मन्दर, दक्षिण मेरुमन्दर, परिममें सुपाय और उत्तरको दीपका विवरण लिसा हुआ है ।) पौराणिक ग्रन्थों के पढ़नेसे तरफ कुमुदपर्वत है । मन्दर पर्वत पर बहुयोजन यिस्टस | माल म होता है कि, इस समय जिसको हम एशिया 'एक महान चूतहत है। निपतित पानसमूह विभोर्ण महाहोप कहते हैं, यही पुराणों में नव दोपके नामसे हो कर अरुणोदा नामक एक नदी मन्दरपर्यंतसे प्रवाहित वणि न है। पहले इसका कोई कोई मंश पानी में डया हो कर इलायतको पूर्व दिशाको लावित कर रही है। हुआ था तथा कोई कोई पंश अब इद गया ोगा। इस प्रकारके मेरमन्दर पर्वत पर बहु योजन विस्वत . उत्ता और लंका देसो। एक विशाल जवृक्ष भी है । इसी अब पक्ष के कारण योद मतमे-जब दीपसे भारतवर्ष का बोध होता सोपका माम जब एषा है। बड़ा हस्तिप्रमाण है।