पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५०३

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४५४ नैनधर्म नयमे 'मूर्तिक भी माना गया। समारो जीव । तोवको मामिल करनेमे द्रवाके के भेद होते हैं। इसमें । ट्रयाकर्म प्रादिका पोर चैतन्यरूप राग भादि भाव. लीव पोर पुहन्नद्रवा किया महित पोर गेप चार वा . समौका कर्ता हे तया मुखदुःसल्य पौनिक की क्रिया-रहित है। जीव पोर पुरसके स्वभावपर्याय पौर फौंका मौका है। हम जितने भी नीयों या प्राणियोंको विभावपर्याय दोनों होती हैं, किन्तु गेम चार दूक देगते हैं, वे ममम्त म मारो जीव है। ममारी जीवोंक कैयन स्वभावपर्याय की सोती है। जीव-ट्रयाका विवरण साधारणत: दो मैदर-१ मतो और २ पमत्री प्रथमा । पहले कहाला का प्रा पहन प्राटिका मन १ यमजीव पोर २ च्यावर जीव। मनो-मन-महित | सीत्रको मजो कहते हैं। सभी जीव पवेन्ट्रिय ही पुलष्य-जेन गास्वनि पुलट्रष्यका सपना रस ता । असशी-मन-रहित लोयको असनी | प्रकार लिखा है, "स्परसगन्धयर्ग वन्तः पुहनाः" पर्धान कहते हैं। जिसमें स्पर्ग, रस, गन्ध भोर वर्ग ये चार गुष विद्यान बमबीव-जो वम नामकम के उदयमे दोन्द्रिय, वो हो, वहो पुहल है। यों तो पुनद्रष्य अनन्त गुणे। न्द्रिय, परारिन्द्रिय, और पन्द्रियोंमें जन्म लेते हैं. उन्हें समुदाय है, किन्तु उपर कहे हुए चार गुष ऐसे जो वमजीय कहते हैं। हम जितने भी प्राणियोंको देखते समस्त पुलमि सर्वदा पाये जाते हैं एवं पुरसके सिया है, उनसे पृथ्वी, आप, तेज, वायु पोर वनस्पति स्वादि) और किसी भी द्रव्यमें नहीं पाये जाते। सोसिये ये इन पांच प्रकार के स्थावर जीवकि सिवा वाकीके समस्त चारों गुण पुलद्रव्यमे पाममूतनवपमें गर्मित है। सोय वस है। बम जीव कमसे कम स्पर्श न पोर रमना| यद्यपि समस्त पुस्लों में शत चार गुण मित्य पाये नाते ये दो इन्द्रियां तो होती ही हैं। हैं, तथापि वे सदा एक ममान नहीं रही। स्पर्णगुणका स्थावरजीव-स्थावर नामकर्म के उदयमे पृथिवी. "कदाचित् कोमल, कदाचित् कठिन, गीत, उष्ण, मा. पप, तेज, यायु पोर वनस्पतियों में जन्म लेनेवाले जीवों को | गुरु, निग्ध मौर कृतम परिणमन होता है। ये मग स्थायर और कहते हैं। स्थावर जीव पांच ही प्रकार के गुणकी भयं पर्यायें हैं। इमी प्रकार मित, कर; पक्ष, मधुर पोर कवाय ये रसके मूल मैद। मुगन्ध पौर मुहजीव-मुक्त-जीव उन्हें कहते हैं जो मसारमें दुर्गन्ध ये दो गन्धके भेद हैं तथा नोल, पीत, सेस, नाम सम-मरण नहीं करने पर्यात् जिनको मारमे मुक्ति पौर साल ये पांच वर्ष गुणके भेद। म प्रकार उa हो गई है। मुझ-जीय कर्म रहित में पौर सर्वदा चार गुणों के मूल भेद पीस पोर उत्तर-भेद यया सम्भव . अपने शुद्ध चियपमें लीन रहते हैं, उनके जानका पूर्ण संस्थात, पसंख्यात पोर पनना है। पुनद्रयकी भगना विकाग हो चुका है अर्थात् पे कवनमान द्वारा विग्सके पर्याय हैं, जिनमें दग पर्याय मुख्य है। यथा- मद, विकानयर्ती ममम्स पदार्योको गुगपत् जानते हैं। मुह बन्ध, ३ मौक्ष्मा,.४ स्थौल्य, ५ संस्थान, ६ भेद, तम, . जोय कभी भी ममारमें मोटने नहीं; वे परमात्मा में छाया, पातप पोर .. उद्योस । गद गदके दो भेद पोर मिह कहनाते हैं। ये मुन्ना जीव समार-पूर्व की , एक भाषामक पौर दूपरा प्रभापात्मक । : भाषामक होते .मलिए समारो जोयका उझे पहले किया गब्द भी दो प्रकारका रे, एक परामक पोर दुमरा गया और मुश-नीयका पोछे। पनघराम। पधरामक सकत, मासत, देशभाषा (२) सीता-गिर्भ नोयके सन न पाये पादि पनेक भेद है। दीन्द्रिय, वीन्द्रिय पादिकी भाषा आय पर्यात् भी पतन पर्थात् प्रापरहित अढ़ हो. तथा कयलमानके धारक परहमदेवकी दिष्यध्वनि पन. उसे पनीय सर । पभोवद्याके प्रधानतः पांच बारमक होती है। दियध्वनि पहले परनामा . भेट- सपा, २ धर्म द्रया, ३ पधर्मया, ४ मे मिकनतो है और पीई पार रोती है. मिलिए पाशायदया .पोर ५ .कामवा। इन पाच इयोंमें | वह माराम । पमापारमक पदके दो भेद.