पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नैनधर्म नयमें 'मूर्तिक भी माना गया। समारो जीवलोवको शामिल करनेमे द्रवाके भेद होते हैं। इनमें दया की पादिका घोर घेसन्यरूप राग धादि भाव. जीव पौर परसवा किया महित पोर गेव चार या समका कर्ता तथा सुखदुःसल्म पौडमिक को किया रहित हैं। लीव भोर पुलके स्वभावपाय और फीफा भोता है। हम जितनं भी जीवो वा प्राणियोंको विभावपर्याय दोनों होती हैं। फिन्तु गेज पार इयाँ देखते हैं, वे ममम्त म मारो जीव हैं। मसारी जीवों के केयल स्वभावपर्याय होती है । जीव-ट्रवाका विवरण माधारणतः टो भदर- ममो और २ पमनी पथरा, पहले कहा जा चुका है। पर पुल पादिका परी १ वमजीय पोर २ स्थायर सीय। सो-मन-महित जोनको मजो कहते हैं। मनी जीव पन्द्रिय ही पुलद्रव्य-जेन शास्त्रों में पुलद्रश्यका लपवम सोता। प्रमशी-मन-रहित जीवको असभी प्रकार लिखा है, "स्परसगन्धययनाः पुरना:" अर्थात् करते हैं। जिसमें स्पर्ग, रस, गन्ध पोर यन ये पार गुर विद्यमान बममीव-जो वम नामकर्म के उदयमे दोन्ट्रिय, वो. हौ. वो पहल है। यों तो पुहलद्रव्य अनन्त गुणेश न्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पोर पर्चन्द्रियों में जन्म लेते हैं, उन्हें समुदाय है, किन्तु ऊपर को हुए चार गुष ऐसे जो मजीय करते हैं। इम जितने भी प्राणियोको देखते समम्त पुलमि संयंदा पाये जाते हैं एवं पुदमके मिया है, उनमे पृथ्वी, आप, सेज, वायु पोर वनस्पति (सादि), और किसी भी द्रव्यमें नहीं पाये जाते । सोलिये वे इन पाच प्रकारकै स्थावर नीयों के मिया वाकी ममम्त | चारों गुण पुलट्रय्य के प्रामभूतलक्षणमें गर्मित है। सोय वम । यस जीव कमसे कम स्पर्शन पौर रमना यधपि ममम्त पुहनों में चार गुण नित्य पाये भारी ये दो इन्द्रियां तो होती ही हैं। तथापि वे सदा एक ममान नहीं रहते। स्पर्णगुणाका : ___ स्थावरजीय-स्थावर नामकर्म यो उदयमे पृथिवी. | 'कदाचित् कोमस, कदाचित् कठिन, गीत, उरण, लघु, अप, तेज, यायु और वनापतियों में जगा लेनयाले जीवोंको गुरु, विधि और रुतम परिणमन होता है। ये स्पा म्यावर जीव कहते हैं । स्थावर जीय पांच ही प्रकार के गुणको पर्य पर्यायें हैं। इसी प्रकार सित कर, पन्न, मधुर भोर कपाय ये रसके मूल मेद । मुगन्ध पौर ___ मुभीव-मुरम-जीव उन्हें कहते हैं तो मारमें दुर्गन्ध ये दो गन्धके भेद तया नोल, पीत, गजल, ग्यार जन्म-मरण नहीं करते अर्थात् जिनको संमारसे मुक्ति | पौर लास ये पांच वर्ण गुण के भेद हैं। म प्रकार सत्र हो गई है। मुस-सीय कर्म रहित , पौर सर्वदा चार गुणों के मून भेट योम पोर उत्तर-भेद यथा सम्भव अपने राज घिदरपमें लीन रहते हैं. उनके शानका पूर्ण | संस्वात, पसंख्यान पोर पना है। पुलद्रयको अनन्त विकाग हो चुका है अर्थात् ये फेवलधान द्वारा विपके पर्याये, जिनमें दग पर्याय मस्य।। यथा-१ गम्द, विकालयती ममम्स पदार्थीको युगपत् मानते हैं। मुक्त २न्ध, ३ मौहमा, ४ स्रोध, ५ संस्थान, ६.भेद, सम, जोय कभी भी म माग्में लोटते नहीं; वे परमामा है शया, ८ पातप पोर . उद्योत । गदगदके दो भेद पौर सिंह कहनाते। ये मुत्य जीय संसार पूर्वक ही एक भायामक पोर टूपराधभापामक । भामाश सोसे समलिए ममारो जोयका पन्ने पहले किया | गद भी दो प्रकारका है, एक पतरामक पोर मरा गया घोर मुड-जीयका पोछ। पनवराम। पसरामक ममत, मासत, देगमापा (२) जीवतरय-जिसमें लोव समय न पाये पादि पनेक भेदीन्द्रिय, वीन्द्रिय पादिकी भाषा जाय पर्यात् भी पधेतन पांत् प्रापरहिस जड़ हो, तथा यसमान धारक परन्तदेयको दिव्यध्यान पन उमे धनीष पाते। पजोवद्रपा प्रधानत: पांच घरामा होती है। दिम्यध्यमि पाने परहना सी भटए- सया, २ धर्म दवा, २ पधर्म या४ मे निकलतो पोर पीछे परकप सेमी है. इसलिए पाजामदया पोर ५ .कामदया। इन पांच इमि । वर पसरामक । मापारमन हे दो भेद ।