पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५०७

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४५ नधर्म में दि गुणोमे नितर पगिमग होने वालेको पथ प्रदेगयुध है। यह धर्म दम्य पपने रुपमे सन का पोर पण काही पपर माम परमा, है। महोने के कारण नित्य गतिक्रिया परिपत जोर मर्यक परमाणु पट्कोर पाहायु, एक प्रदेगावगाहो. एवं पुनको उदांमोन माया होने कारणभूत है म्यादि गुण गा पीर पवार (मिमक्षा व मो| और किमोमे उत्पन्न नहीं एपा, इसलिए पाय। मई) य है। यह प्रत्यमा सूक्ष्म होनेमे पारमा, | जिम प्रकार अन सय गमन न करता पातमा दाग पारममध्य पोर पारमाना, या इन्द्रियोंम पगोचर को पनि प्रेरक न होता एंपा भी सपनो रझामे पोर पविभागो। कन्ध-जो स्य नताके कारण ग्रहण | गमन यारनेवाले महा प्रादि जलपर नीयों में गमन निपार भादि व्यापारको प्राय हो, उसे स्कन्ध कसरी उदामोन मरकारी कारणमा उमी प्रकार धर्मदर . हैं। यद्यपि हाणुक पादि साधी ग्रहण निक्षेपण | मोस्वयं गमन न करता पा चौर परके गमग प्रेरक पादि व्यापार नहीं हो ममता, नयावि दियगात् नेमे | न होता हुपा तय गमन करते हुये गोत्र और पुद्रनोंगे . गमनक्रियारहित ( बैठो ६) गायको "गो' कहते । दामोन पविनाभूत महकारो माय है। तात्पर्य यह उसी प्रकार हाणक पादि कय ग्राण निक्षेपणादि | कि, जीव और पुनलद्रव्यको किया, जो महायो यापारवाम् न सोने पर भी कम करनाते हैं। गब्द, । यह धर्म द्रव्य है। बम, मोमा धादि पर्याय म्न्धीको ही होती है. न कि जिम प्रकार धर्म ट्रया जोय और 'पुरनोको किया प्रएको। पुरल गदको निजि जैनाचार्याने रम प्रकार महायक है, मी प्रकार पधर्म ट्रया उग प्रयम्मान में को है-"पूरयन्ति गलपम्तोति पुगन्नाः अर्थात् जो पूरे । महकारी है। जेगे प्रथिवी व्यय पर मे हो खितिष्प पौर गले, उमको पहल कहते हैं। यह पयं पुनके | हपोर परकी म्यितिम प्रकल्प नही किन्न । पप, पोर मान्ध इन दोनों भेदों में व्यापक है। पर्यात् | स्पितिरूपमें परिणत हुए अग धादिको उदासीन पविना पग्माण मन्त्रीम मिलते पीर गुदे होते हैं, इसलिए | भूत महफारी कारण मात्र, उमो प्रकार प्रधर्म द्रव उनमें पूरण योर गलन दोनों धर्म मौजूद हैं। स्कन्ध भी स्वयं पहले हीमे स्थितिक्ष्य परके सितिपरिणाम भनेक पुरनों का एक ममुह पतः पुरनामे पभिव प्रेरक न होता तुपा भी स्वयमेव म्यितिरूप प्रयस्थित नेमे उसमें भी पुरन शाद का व्यवहार होना । । भधार सदस्य-धर्म और धर्म सदमे यहां यहाँ यह कहना पायगाक है कि जिस प्रकार पाप को पुण्य नहीं ममझना मारिये। परन्तु यहां गतिपरिणामयुत पयन ध्वजाके गतिपरिणामका सकतां धर्म और अधम गद व्यवाचक है न कि गुणवाचक है, उम प्रकार धमंद्रशमै गति-पगत्व न ममझना चाहिये। मुष्ठ मोर पाप पोत्माके परिणाम यिगेवर, पयों "जो | कारण धर्मद्रया निकाय होनेमे गतिरूपमै परिणमन ...त्रीयोको मार दुबमें मुह 'करे, न धर्म पोर जो नहीं करता ; पोर जा सय गतितिर पर ...म विपरीत कार्य को, यह पध" ऐमा पर्य मो गतिपरिणामका हकप्ता नहीं हो सकता। धर्मदया बाम मनाना पाहिये। यही पर धर्म और धर्म सिर्फ 'मत्स्यको अनकी भांति' बीय और पुन गमन वाना ' दोमाली दम्य उदामीन महकारी मायागी प्रशार अधम ट्रयाको मातिय मोक (वि) भी निकाय पोर जोय पोर पुरसकी स्थितिम उदासीन ब म प्रहार कारणमाय समझना चाहिये। . . . '

पायागया-मो भीय पोर पुरम पादि. मम्पर

t a mil र पदाधीको सुगमा पक्षाग 'वा म्यान देगा ,नमें रमाकागदया करते है। यह पाकागद्रमा मापारी क . . मक और एक प्रकार है। यद्यपि ममस्त की एक्ट्रका