पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५११

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१५८ जैनधर्म 'मोफर रमणीय रुपमा पयलोकन करना ), | को गनि विगेपत्वको पार्य महतए। ना . " निक्रिया (प्रमादना वझे पान निए| धिकता होनेमे पास भी य.नाधिोता है। प्रवर्तन गरना), १२ प्राययिकी क्रिया (विषयभोगके पासबके पधिकरण जोय पोर पोर दोनो। नये नये कारण एकत्र करना ). १४ ममनानपातक्रिया जीयाधिकरण मुम्यतः १. भेद १. यथा- (कोपुषयों या पराप बेठने मोने में म्यानमें मनभूवादि समारम्भ पोर पारम्भ इन तोगका मन ययम कापल्य ऐपए करना). १५ पमाभोगक्रिया (दिना देखो या तीनों योगामे गुणा करमे ८, रमको स, कारित . गोधी भूमि पर बैठना या मोमा), १६ पास्तक्रिया अनुमोटमा इन तीनों गुणा करनमे २७. मी कोष, . (मोरा होनेवानी क्रियाको म्वयं करना). १७.मान, माया और सोम इन चार सपायर्याम गुण कसे निमर्गक्रिया (पापोत्पादक प्रतियोको उत्तम मममाना 1000। हिंमा पाटि वारने के लिए उद्यमाप माया - या इम हे मिए शान्ता देना), १८ विदारणकिया माम्नस्य- होना संरम्भ कापलाता है। हिमादि माधौ याम में सकट किया न करमा वा टूमर के किये हुप पापा. करना पोर उनको मामयो मिमामा, ममारमा . परलको प्रकाग करना). १८ प्राप्ताव्यापाटिको क्रिया हिमादिम प्राप्त हो आमा, प्रारम्भ करनाता है। (पारिवारोह के ददयमे परमागम या मयंजकथित करगेको छन, टूमरेमे कगनेको कारित ओर मयि गाशों को पाना पगुमार पनने में प्रममर्थ हो कर ए कार्य को प्रगमा करने को पनुमोदमा की है। अन्यया प्रयर्सन फरमा), २. पनामांसाक्रिया (प्रमादमे इनको भी प्रत्येक पायक पनसागुमभी, समस्यामान. वा पनामतामे परमागम या मर्या-कथित विधिका | प्रत्याग्यान पोर मन्वना न चार भेटीमे गुणा किया पनादर करना), २१ प्रारम्भक्रिया (हेदन, भेदन, साइन | जाय तो ४३२ भेद होते । हम प्रकार जोयो पा. पाटि किया तत्पर होना और अन्य के हारा उक्त किया। मी या उदयगत भायों के भेदगे पानोरे भो भेट परि किए जाने पर अर्पित होना), २२ पारिवाहिको १पा करते हैं। प्रशोयाधिकरण-हमके भो चार मैद मिया ( परिग्रहको रक्षाके लिए प्रति रममा), २३ | २.१ नियंत नाधिकरण, २ मिशेषाधिकरण, मयोगा. मायाक्रिया (जान, दर्शन पादिमें कपटता युत उपाय | धिकरप पोर ४ निमर्गाधिकरत | रचना करते । करना'. २४ मियादर्शमक्रिया (कोई मिथ्यात्व वा मयंत वापस करनेको नियतमाधिकरण की यारी . फयित विधान विरुष कार्य करना या पारनेवाले को प्रकारका है- देशदुःप्रयुनियनाधिश्रप ( गीगमे राम कार्य में हद कर देना) पौर २५ प्रप्रसाण्यानक्रिया | तुचेरा करना) चौर २ पपकरणानियतमाधिशप ( संयमका घात करनेयाले कमी उदयमे मंयमाप (हिमाझे उपकरए गमराटिकी रपना करगा) या प्रचसंग नहीं करना)। ये पगोमो क्रियाए माम्परा- हम प्रकार भो दो भेद -१ ममगुपनियतमा रिफ पासप होने कारण।इम पासव, मोसमाव (गरीर, मन, वचन और माTET मापद मन्दभाय. सभाय, पनातभाव.पधिवरण पोर वीर्यको काना. पोर २ उत्तरपनिपतंगा काठ, मशिता विगेपतामे ग माधि भो ताti पायावादि मुर्ति पाटिकी रचगा गरमा का गिर. ___गा पोर पाभ्यन्तर कारणमि पढ़े ये क्रोधादिगे। पटादि मनाना)। मितप की क माई सो सोमाय परिधाम सोतेएमको नोभाय | भार भेद-१ मामामि गपशप (मंय पारिमे १. मी प्रकार मन्दस्य मावों को मन्दभाय, जीयो यादमा कार्य करने लिए मीनता किसी भी भातम मन कतिको मातमाय पोर मयनादियोजको मारमा पटकदेना), २ मामोनिशरिरप में यात्रियों को मोशित थामें मदर्भ पाया (गोमता न पोने वा भोगri Enा मतापूस शिको पालभाष कप! शिम मार faithe पाया पुरुषों का प्रयोग गे परिकर और दया भरभ.PA पाए ।