पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५१६

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नैनधर्म ४६३ (१) चतुदर्शनावरण, (२) अचतुदर्शनावरण, (३) अव.। ३य कम-प्रतासिका नाम है वेटनीय । यह सत् और विदर्शनावरण, (४) केवलदर्शनावरण, (५) निद्रा, (६) अमत्के मे दसे दो प्रकारको है। मतको मातावेदनीय निद्रानिद्रा, (७) प्रचला, (८) प्रचलाप्रचला और (c) और असत्को घसातावेदनोय कहते हैं। हातावेदनीय- स्त्यानरहि ।' 'चक्षुदर्शनावरण-जिसके उदयसे आत्मा । जिसके उदयमे शारीरिक और मानमिक अनेक प्रकार चक्षु प्रादि इन्द्रियरहित एकेन्द्रिय वा विकलेन्द्रिय हो । सुखरूप सामग्रियों की प्राप्ति हो, उसे सालावेदनीय कहते अथवा चतुरिन्ट्रियसहितपंचेन्द्रिय होने पर भी उसके नाम हैं। अमातावेदनीय-जिमके उदयसे दुःखदायक देखने की शक्ति न हो अर्थात् अन्धा, काना वा न्य नदृष्टि | सामग्रियों का समागम हो उसे असातावदनीय कहते हो. उसे चतुदर्शनावरण कहते हैं। अचतुदर्श नाव- हैं। अर्थात् मातावेदनीयकर्म जोवको सांसारिक सुख रगा - जिसके उदयसे चक्षुके अतिरिक्त अन्य इन्द्रियोंसे । देता है और अमातावेदनीय दुःख । दगन (मामान्य अवलोकन ) न हो उसे अचक्षुर्द नार्थ कर्म प्रकृतिका नाम है मोहनोय । इसके मुख्यत: वरण कहते हैं। अवधिदर्शनावरण-अवधिदर्शन दो भेद है-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । इन- (बिना इन्द्रियोंकी महायताके जो दर्शन हो ) से होने मेंसे दर्शनमोहनीयक १ सम्यक, २ मिथ्यात्व और ३ सभ्यः वाले मामान्य अवलोकनको आच्छादित करता है, उसे | ग्मिय्यात्त्व ( अर्थात् मियमोहनीय ) ये तीन तथा चारित अवधिदर्शनावरण कहते हैं। केवलदग नावरण-जो | मोहनीयक १ अपायवेदनीय और २ कपायवेदनीय ये केवलदर्शन द्वारा समस्त दर्शन नहीं होने देता, वह दो भेद है। प्रकपायवेदनीय* 2 प्रकार है-१ हास्य, केवलदर्शनावरण है। निद्वादशं नावरण - मद खेद और | २ रति, ३ परति, ४ शोक, ५ भय, ६ जुगुप्सा, ७ स्त्रीवेद, ग्लानि दूर करने के लिए जो नोंद ली जाती है. उसे | पुरुपवेद और नयु मकवेद । कपायवेदनोय १६प्रका. निद्रादर्शनावरगा कहते हैं। इसके उदय होने पर फिर रका है-अनन्तानुबन्धी क्रोध, २ अप्रत्याख्यानक्रोध, ३ कोई भी जग नहीं सकता। निद्रानिद्रादर्शनावरण प्रत्याख्यानक्रोध, ४ मंचलनक्रोध, ५ अनन्तानुबन्धीमान, निद्रा पर निद्रा आना वा जिमके उदयसे ऐतो निद्रा ६ अप्रत्यारयानमान, ७ प्रत्याख्यानमान, 5 मंज्वलनमान, थाना कि जीय भांखों को उघाड ही न सके, उसे निदा | अनन्तानुबन्यो माया, १० अप्रत्याख्यान माया, ११ प्रत्या. निद्रादर्शनावरण करते हैं। प्रचलादर्शनावरण-जिसके ख्यान माया, १२ सन्चलन माया, १३ अनन्तानुबन्धी 'शोक, खेद, मदादिके कारण बैठे बैठे हो शरीरमै नोभ, १४ अप्रत्यास्यामलोभ, १५ प्रत्यास्यान लोम और 'विकार उत्पन्न हो कर पांचों ट्रियों के व्यापारका प्रभाव | १६ मज्वलन लोमा इस प्रकार तोन नी और मोलह हो जाय उसे प्रचलादर्शनावरण कहते है । इसके | कुल मिला कर मोहनोय प्रक्षतिजे २८ भेट होते हैं। उदयसे जीव नेत्रौंको कुछ उघाड़े हुए हो मो जाता है, दर्शनमोहनीय--(३) मिथ्यात्व-जिमके उदयसे मर्पत अर्थात् सोता हुपामो कुछ जागता है, बार बार मन्द | भापित मार्गसे पराङ्मुख और तत्वार्थके यदानम निरु- मन्द निद्रा लेता है, बैठा बैठा झूमने लगता है, नेत्र | सकता वा निरुद्यमता एवं हिताहितको परीक्षा घस. और गान चलाया करता है। प्रचलामचलादर्शनावरण- मर्यता होती है, उमे मिथ्यात्व कहते हैं। (२) मध्यक्त- जिमके उदयसे मुखसे लार बहने लग जाय, अगोपाड जब शम परिणाम (भाव )के प्रभावसे मिथ्यावका रस चलायमान हों और सुई यादिवे चुभाने पर भी चेत न हीन हो जाता है और वह (शक्षिके घट जानेमे ) अम. हो, उसे प्रचलाप्रचलादर्शनावरण कहते हैं । स्त्यानरहि- दर्शनावरण-जिस निट्राके प्राने पर मनुष्य चैतन्य मा | मर्थ हो कर अामाके यहानको-नहीं रोक सकता अर्थात् को कर अनेक रौद्कर्म कर लेता है और फिर बेहोश हो सम्यकको विगाह नहीं सकता, त जिमका उदय होता नाता है तथा नींद छूटने पर उसे मालूम नहीं रहता।

  • किचित् कयायको नकषाय पायपाय कहते हैं। यहां

कि उसने क्या पधा काम कर डाले । सो कमलतिका भकषायका अर्य कपायाहित नहीं है, फिन्न किचित् कपाय है। नाम स्थानगृद्धिदशनावरण है।

. नोभारमाको दशितकरे, ससे पाय कहते हैं।।