पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५१८

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जैनधर्म 1. उदयसे यथाख्यातचारित्र ( कपायों के सव या प्रभावसे । कर्म ; जिसके उदयसे तिर्यञ्च योनिमें जाये, उमे तिर्यच. ' माटुभूत आत्माको शुद्धिविशेष ) नहीं होता है। गति नामकम; जिसके उदयसे मनुष्य जन्मको पावे, उसे . . ५म कर्म-प्रक्षतिका नाम है अायुः । जिसको मद्भावसे | मन प्यगति नामकर्म और जिसके उदयसे देव-पर्याय धारमाका जीवन और अभावसे मरण हो, उसे घायु-कर्म | पावे, उसे देवगति नामकर्म कहते हैं। (२) जातिनाम- कहते हैं । यह जोवन धारण करने में कारण है। यहां कर्म-उक्त नरकादि गतियोंमें जो अविरोधी ममान यह प्रश्न किया जा सकता है कि, जोवनका कारण तो धर्मा में आत्माको एक रूप करता है; उसे जातिनाम 'अनपानादि है, अन्नपानादिक सद्भावमे हो जीवन धारण । कर्म कहते हैं। इसके पांच भेद हैं-१ एजेन्द्रिय जाति- किया जा सकता है और उसके प्रभाधसे मरण होता । नामकम, २ हीन्द्रिय जातिनामकर्म , ३ वीन्द्रिय जाति- है। फिर घायुः कम कैसे कारण बन गया। इसका नामकर्म, ४ चतुरीन्द्रिय जातिनामकर्म और ५ पञ्चेंद्रिय उत्तर यह है कि, अन्नपानादि तो वाद्य कारण हैं। मूल | जातिनाम कम। जिसके उदयसे आत्माको एक द्रिय टपादान कारण प्रायु:कम ही है। जेसे घटके होने में | जाति प्राम हो, उसे एकेन्द्रिय जातिनामकम'; जिसके मूल कारण तो मृत्तिका है और वाह्य कारण चाक, उदयमे हीन्द्रिय-शरोर पाहा हो, उसे होन्द्रिय-जातिनाम कुम्भकार आदि मौ प्रकार जोवन धारणका मूलकारण | कर्म; जिसके उदयसे वींद्रिय जाति नाम हो, उसे वायुःकर्म है। यह तो प्रत्यक्ष वात है कि, निसको श्रायुः बोलिय जातिनामकर्म; जिसके उदयसे चतुरिन्द्रिय जाति शेष हो गई हो, अन्नादि देने पर भी उमको मृत्यु हो । प्राम हो, उसे चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्म और जिसके जाती है। इसके सिवा देव और नारकीगण अनादि | उदयमे पञ्चेंद्रिय शरीर प्राम हा, उसे पञ्चे द्रिय जाति- वाद्य आहारके बिना ही जीवन धारण करते हैं इम.] नामकर्म कहते हैं। , लिए यह प्रश्न श्रमात है। (२) गरोर नामकम-जिसके उदयमें शरीरको इस भायु:कर्म के चार भेद *-नरकायुः तियेचायु रचना हो वह शरोर-मामकर्म है। श्रीदारिक-शरीर, मनुष्यायुः और दैवायुः। (१) नरकायु:-जिसके । क्रियिक शरीर, प्राझारक-शरोर, तेजस-गरीर और सद्भावसे प्रात्मा नरक गतिमें जीवन धारण करे, उसे । कामपा शरोरके भेदसे शरीरनामकर्म भी पांच प्रकार. नरकाय: कहते हैं। (२)तिर्यवायु:-जिसके सद्भावसे | का । जिम जयमे घोटारिकशरीरका : आत्मा तिर्यञ्च-शरीरमै जो, वह तिय वायुः है। (३) होती है, उसे पौदारिकशरीर-नामकर्म कहते हैं। मनुष्यायुः-जिसके सद्भावसे पामा मनुष्यशरीरमै भव. इमो प्रकार अन्य चार भेदोंके लक्षण समझने चाहिये। स्थान करे, वह मनुष्यायुः है। (४) देवायु-जिसके (४) अङ्गोपाङ्ग नामकर्म-जिसके उदयसे अङ्गा और महावसे पारमा देवगतिमें जीवन धारण करे, उसे | स का मेद प्रकट हो. उसे घडोपा नामकर्म करते दैवायुः करते हैं। दह कम प्रातिका नाम है नाम कम। इसके | -जो शरीर इन्द्रियों द्वारा देखने में आवे तथा स्थूल हो प्रधानतः ४२ , भेद है।, (१) गतिनामकर्म-निसके | उसे औदारिक शरीर कहते हैं।२-जिस शरीरमें अनेक प्रकारके उदयसे थामा भवान्तर के लिए गमन करे, उसे गति स्थूल, सूक्ष्म, इला, भारी रूप विकार होने की योग्यता हो उसे .,नामकर्म कहते हैं। नरकगति, तिय धगति, मनुष्य | वैक्रियिक शरीर कहते हैं। ३- सूक्ष्म पदार्थ के निर्णयके लिए गति और देवगतिके भेदमे यह चार प्रकारका है। अथवा संगमके पालनेके सप्तमगुणस्थानवर्ती मुनिक ओ शरीर जिमके उदय पारमा नरकम जावे. उसे नरकगति नाम: प्रगट होता है उसे माहारक शारीर कइते हैं। जिससे

  • ये सब अवान्तर भेद है। आगे भी ऐसे अनोतर भेद . शरीर तेज, कांति होवे उसे तैजस शरीर कहते है।५-माना.

• मागे ; इन सबकी संख्या ५१ है। इनको मिलनेसे नामकर्मके | - घर गादि आठ कर्मोके समको कार्माण शरीर कहते हैं। ये पांचों कुल भेद ९३ होते है। 1. ही शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। : । । Vol. VIII.117