पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५२

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जयकृष्ण-जयगोपालतकालद्वार जयक्षण-१ एक संस्मत ग्रन्थकार । इन्होंने वदरिकायम | जयगढ़-वम्बई प्रान्तक रागिरि जिसका एक बन्दर। . यात्रापति, भन्तिरवावली, हरिमतिसमागम भादि | यह पक्षा. १७१७४. भोर देशा० ७३ १३ में अन्यों की रचना की है। सङ्गभेम्बर नदीके दक्षिण मुहाने पर अवस्थित है। २ रूपदीपकपिङ्गलके रचयिता । इसकी खाड़ी २ मौम्त सबी और ५ मौस चौड़ी है। ३.एक प्रमिद्ध संस्कृतके कवि, वालरुण के पुत्र ।। जलानेको लकड़ो और गुहकी रपतनी होती है। समुद्र इन्होंने अजामिलोपाख्यान, कृष्णस्तोत्र, कृष्णचरित्र, धूप किनारे ४ एकरका एक किताखड़ा है। परन्तु वह धीरे चरिता प्रसादपरित, वामनचरित्र आदि संस्कृत प्रन्यों - धीरे गिरते जाता है। इस दुर्ग के प्रकत निर्माता वोजा- का प्रणयन किया है। पुर-नरेश थे। फिर मगहर डाकू सङ्गमेश्वर नायक यह ४ कषिचन्द्रोक्त एक कवि। जा कर रहे। इन्होंने १५८३ भौर १५८५ १०में पोतं गोज ५हिन्दीके एक कवि, भवानीदासके पुत्र । इन्होंने | और वीजापुरक सम्मिलित सग्यको सफलतापूर्वक रोका छन्दसार नामक एक हिन्दी ग्रन्थ रचा है। था। १७१५ में विख्यात महाराष्ट्र डाकू पग्रियाने जयकाय नकवागोश बङ्गालके एक स्मातपण्डित ! इन्होंने उसे अधिकार किया पौर १८१८१में ज न मास अंग- • यादपण नामका एक स्मृतिसंग्रह, दायाधिकारकम जोंको मिला। भालोका १३ मिल दूर तक देख संग्रह और जीभूतवाइनरचित दायभागको दायभागदोप पड़ता है। नामका टीका रची थो। | जयगुन-शाधरधत.एक कविका नाम । जयवण मौनी--एक प्रसिद्ध भाब्दिक। ये एनाथभटके | जयगोपाल-भवाफलविवरय टोकाके प्रपता। · पुत्र और गोवईनभष्टके पौत्र थे। इन्होंने कारकबाद, जयगोपाल तर्कालाहार-एक प्रसिद्ध वाली विद्वान् । लघु कौमुदी-टीका, विभाला निरोध, हत्तिदीपिका, १७७५ ई० में नदीया जिलेके वजरापुर ग्राममें इनका "शब्दार्थतामृत, शब्दार्थसारमनरी, शहिचन्द्रिका. स्फोट. जन्म हुआ था। इनके पिता को वन्तराम तक पचानन चन्द्रिका, मियान्तकमौदीकी दिक-प्रक्रियाकी-सवी-। नाटोर राजके सभापण्हित थे।ये अपने पांच भाइयों में "धिनी नाममे टोका लिखी थी। सबसे छोटे थे और कोलिक इनकी उपाधि थी। ये पपने जयशेतु-कान्यकुल के एक राजा। पिताक साथ कामी रहते थे और वहीं उन्होंने विद्या- जयकेंशि-१ गोपाके एक कादग्न राजा।ये १०५२ ई० में | भ्यास किया था। साहित्यपालमें इनकी पसाधारण __ राज्य करते थे। २ र जयकेशिके पौत्र । ३ कादम्बवंशके व्य त्पत्ति घो। ये अधितोय भाब्दिक भौ थे। १७६५ में ___एक दूमरे राजाका नाम। इन्होंने ११७५ १० से ११८८ इनका विवाह हुआ था। १९०३ में इनके पिता मर ० तक राजा किया था। गये। इसके बाद इनको योरामपुरमें करो साइवका जयकेसरी-टुर्गशोका' नामक दुर्गामाहामा टोका काम करना पड़ा था । ४५ वर्ष की उममें इन्होंने टूमरा कार विवाह किया था। १८३१०में ये संस्कृत कालेजमें जयकोलाहल (म' • पु०) जयस्य कोलाहलो यत्र, बनो. अध्यापक नियुक्त हुए। १५ वर्ष ये कालेजहोम काम जयस्य कोलाहलः तत् । १ छलफलध्वनि, जयध्वनि, करते रहे। विद्यासागर, तारागार पादिम छात्र 4६ सन्द जो मढ़ाई जीतने . पर पानन्दसे किया जाता थे। ये सुकवि भो थे। नोन रुत्तियासको बङ्गला ३१२ जयपुत्रक, प्राचीन कालको जमा खेलनेका एक रामायण छपाई थी। इसको कवितामें भी इन्दों ने "प्रकारका पामा। भाषाका बहुत फेर फार किया था जिससे प्राचीन बनला जयनेत्र (से. लो०) पुण्य स्थानविगेप। भाषासे लोगोंको वषित रहना पड़ा और प्राचीन मङ्गता अयखाता ( हिंपु०) बनियों की प्राय पोर ध्यय लिखनेको । माषाका भी पनिट पुमा। ___ बहो। .. " दसरा विवाह करने पर भी ने समान वक्षित