पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५२०

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जैनधर्म १६० हों पर वे वचमय न मों और वचमय वेटन भी न हो, । मिवा भई नाराच, कोलक और अप्तम्प्राशासपाटिका ये उस कम का नाम नाराचसहनन है। अईनाराधस हनन तीन सहनन ही होते हैं। भोगभूमिक मनुष्य और नामकर्म उसे कहते है, जिसमें उदय में हडिडयोको | तिर्योंक एक वचषभनाराच सहननके सिवा अन्य सन्धियः प्रकीलित हों, अर्थात् एक तरफ कोले ) पांच संहनन होते हैं। कर्मभूमिके मनुथ और हो और दूसरी पोर न हों। जिसके उदयसे हडिडयां तिर्यों के छहों संहनन होते हैं। परन्तु इस पञ्चम ' परस्पर कीलित हो. वह कीलकम हनन नामकर्म | कालमें मनुष्य और तियच्चों के अन्तक तीन सहनन कहलाता है। और जिसके उदय हडिडयोंको सन्धियां ही होते है। कीलित न हो पर नसों, वायुयों और मांससे वधी हों. (१०) स्पा नामकर्म-जिसके उदयसे शरीरमें उसको अस'मागासपाटिका संहनन नामक में कहते हैं। स्पर्श-गुण प्रगट हो, उसका नाम है स्प-नामकर्म । विशेष-उपयुक्त छहीं संहननके धारक जीव मर यह आठ प्रकारका है-१ कधशस्य नामकर्म, २ मृदुः कर मांधारणात: अष्टम स्वर्ग पर्यन्त जा सकते हैं। अस- | स्पर्श नामकम, ३ गुरुस्पर्श नामकर्म, ४ लघुस्पर्श- माहामृपाटिकाम हननके सिवा अन्य पांचों संहननके । नामकर्म, ५ स्निग्धस्पर्श नामकम, ६ रूपस्पर्श नाम- 'धारक जीव मर कर बारहवें स्वर्ग तक जन्म ले सकते | कर्म, ७ शौतस्पर्श नामकर्म और ८ उणस्पर्ण नामकर्म। हैं। असम्पागासपाटिका और कोलकसहननके सिवा (११) रस नामकम-जिमके उदयसे देहम रस 'अन्य चार संहननवाले १६ खर्ग तक जन्मग्रहण कर (खाद ) उत्पन्न हो, उसे रम नामकर्म कहते हैं। इसके सकते; नवयवयक तक नाराच, वजनाराच और पांच भेद-१ तितरम नामकर्म, २ कट रस नाम- वजपमनाराच इन तीन सहननवान्नोंका हो गमन हो। कम, ३ कपायरस नामकम', ४ पाम्लरस नामकर्म और मकता है। नव अनुदिश विमानों में वजनाराच और | | ५ मधुररस नामकर्म । (१२) गन्ध नामकम-जिमके वापभनाराच इन दो ही सहननवालोका गमन उदयमे शरीरमें गन्ध प्रगट हो, उसे गन्धनामकर्म कहते है। और पांच अनुत्तर विमानों में वनपभनाराच । है। यह दो प्रकारका है-१ मुगन्ध नामकर्म और २ महननयाले ही जन्म ले मकते हैं तथा मोन भी एक- दुर्गन्ध नामकर्म । (१३) वर्ण-नामकर्म-जिसके उदयमे मात्र इसी महननसे हो मकती है । इमी तरह नरकोंमें | शरीर में वर्ष (रग) प्रगट हो, उसे वर्णनामकर्म कहते भी छहों महननवाले धम्मा, घशा और मेघा इन तीनों है। एमके पांच भेद हैं-१ शक्तवर्ण नामकर्म, २ का नरकों में जन्म ले सकते हैं। किन्तु अञ्जना और परिष्टा वर्ग नामकम, ३ नौलवयं नामकर्म, ४ रसवर्ण भाम 'नामक ४ और ५. नरकमें असम्पानास्पाटिका | कर्म और पीतवर्णा नामकर्म । (१४) आनुपूयं नाम सिवा अन्य पांच शरीरधारियोका ही गमन है। छठे कर्म-जिसके उदयमे पूर्वायुके उच्छदके बाद पहले के नरक ( मघवों में असम्मामासपाटिका और कोलक निर्माण नामकर्म को निति होने पर विग्रहगतिम सहननके सिवा अन्य चार सहननयालोंका गमन है। मरणमे पूर्व के शरीर के प्राकारका विनाश नहीं हो, तथा मातवें माधवी नामक नराम वनहषभनाराच संह। उसे प्रामुपूर्व नामकर्म कहते हैं। यह चार प्रकारका ननवाला हो जम्नग्रहण कर सकता है। देव. नारयो | है-१ नरकगतिमायोग्यानुपूर्य नामकर्म: २' देवगति- धीर एफेंद्रिय जीवोंके सहननका प्रभाव है अर्थात् । प्रायोग्यामुपूयं नामकर्म, ३ तिर्य गतिमायोग्यानुपूर्य- इनका गरीर मनधातुमय नहीं है। दो, तीन ओर चार नामकर्म और ४ मनुष्यगतिप्रायोग्यानुसूर्य नामकर्म । 'इन्द्रिययुश जोयो के अमम्मामासपा टिकास हनन होता जिस समय मनुष्य वा नियं चको आयु पूर्ण हो और है। कर्मभूमिको स्तियों आदि के तीन महनों के पामा शरीरम पृथक हो कर नरकम जम्मग्रहण करने के पोका विवरण हम मागे करेंगे जिसका शीर्षक "लक आरमाके एक पारीर छोड कर इस शरीर प्रहण करने के रचना" होगा। . . . . लिए जानेको विप्रहपति कहते हैं।