पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५२५

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४७४ जैनधर्म है।यस्तुका निप य करनेवान्ना मान है, बिना ज्ञान प्रानको प्रमाण मानसा दुपा भोजन दर्शन सामान जगत में किमो पदार्यका कभी किमो शक्ति हारा निर्णय भानको प्रमाण नहीं मानता, किनु, सम्यग्जान मस्य- नहीं किया जा मता. कारण कि जड़ पदामि तो बयं जान को को प्रमाण मानता है, यदि जानाको प्रमाण निर्णायक गति नहीं है, वे मभो जानने योग्य है, वे माना जाय तो मशय, विपर्णय, धनध्ययमाय एन मिप्या : ट्रमरों का परिधान कराने की योग्यता नहीं रखते, दमी जानों में मो प्रमाणता पा सको है। उपर्यु सोनों की निये वे नय अथवा प्रकाश्य माव कहे जाते हैं, इसके ज्ञान पदार्थोका ठीक ठोक बोध नहीं करात इमलिये विपरीत भाना सायकता है अर्थात् वह पदार्थाका बोध इन्हें मिथ्यानान कहा जाता है। मयतान यां कराता है, जानका कार्य हो यही है कि वह जय. भोता है जहां दो कोटियों में समान जान उत्पन होता पदार्थों को जाने । एक बात यह भी है कि बिना वस्तुका है, जैसे राविमें न तो पुरुपके हाथ पैर नाक मुर स्वरूप समझे उमगे कोई हानि लाभका बोध नहीं कर पादिका हो स्पष्ट ज्ञान होता है और न वृक्षको गापा । मला। बिना हानि नामका बोध किये छोड़ने योग्य | गुरू बादिका ही होता है, वैसी अवस्थामें एक नम्बाय. पदार्याको छोड़ा भो नहीं जा सका एवं ग्राद्य पदार्थों को मान स्थाणु -वृक्षके ठूठ को देख कर किसी परिकको ग्रहण भी नहीं किया जा माता, पदार्थगत गुण दोपोंका यह बोध होना कि यह क्ष हैं या पुरुष है; मगय परिज्ञान होने पर ही उमे ग्रहण किया जा माता है एय' ज्ञान कहा जाता है। इस मशयज्ञानमें न तो पुरुषा कोड़ा जा माना है लिये पदार्थ एवं तहत गुणदोयोका। हो निशय हो गका और न वृक्षका ही टुया, दोनों भान बोध कग कर उममें हेय उपादेय रूप बुद्धि करानेवाला | ममान रूपसे हुए हैं, इमलिये पदार्थाका निर्णय न भान की प्रमाण हो माता है। अन्य दर्शनकारोने द्रिय | होनेसे यह संगयज्ञान मिथ्या है। विपर्य ज्ञानमें एक ण्य मयिकप पाटिको ही प्रमाग माना है ।जन उन्हें । विपरोत कोटिका नियय हो जाता है। जमे मीपम प्रमाण मानने में यह आपत्ति देते हैं कि मनिकर्ष - किसी पुरुषको चांदोका निशय हो जाना, मीप चादोका . इन्ट्रिय पदार्थ का मम्बन्ध हो यदि प्रमाण माना जायगा | नियय एक कोटि भान है परन्तु वह विपरीत है एम. तो घट पटादि पदार्थ भी प्रमाणकोटिमें माने चापिये। लिये यह भी मिथ्याशान है । अनध्यक्षमायमें भी पदार्थ जिम प्रकार घट पटाटि जड़ होनेमे प्रमाण नहीं कह का निर्णय नहीं होता; किन्तुं अन्य मदृश पनिरा-' ना मो, उमी प्रकार इन्ट्रिय पदार्थ गम्यन्ध रूप मवि यामक बोध होता है। असे मार्ग में गमन करते हुए कप भो जह होनेमे प्रमाण नहीं कहा जा सक्ला ।। किसी पुरपके किमी वमुका म्पर्ग होने पर उसे उसका क्योंकि सपन्ध स्वय बोध रूप नहीं है किन्तु बोध निर्णय नहीं होता किन्तु कुछ लगाई एमा मलिन मवेधका उत्तर कायं ६, इमलिए वही प्रमाण है। बोध होता है, ये हो अनध्यक्षमाय भान कहा पाता है। दूपरे एन्द्रिय पदाथ मम्बन्ध होने पर भी मोपमें चांदीका | यह भी पदार्थ निर्यायक न होनेमे मिथ्यासान है। हम भान तथा पोतनी मोनेका भान प्रादि होता है, मवि- तीनों गानों का ममावेश प्रमाणस नमें नहीं होता। कप तो वहां उपस्थित नहीं है इमनिये इन मिथ्या ज्ञानी सोलिये प्रमाणशान मम्याधान कहा गया है। जानमें को भी प्रमाण मानना पड़ेगा। तीसरे प्रेगरके इन्द्रियों दिमा मम्यक विशेषण दिये मिप्यासानों का परिहार • का नो प्रभाव है इमनिये ठमके मविकप फैमे धनेगा | नहीं हो मन्वा ! कुछ लोग भानको पर निनायक मानते विना उमके हुए उनका मान पमाण रूप नहीं कहा है उसे स्वनिगायक नहीं मानते है। परन्तु यह यात नामसा, यदि यहां भी मविकप माना जायगा तो प्रमिह है कि जो बनियाया नही होता है यह पर. मगेय बोध मा न हो कर अन्य होगा। इत्यादि नियाया भी यहीं होता है। में घट पटादिक पनेक कारपोंगे प्लेन मतानुमार धानको हो प्रमाण अपना प्रकाग नहीं करते रमनिये ये पम्फा भी प्रकाश . माना गया है। .. .. .. } करनेमें मयं या पसमय । सूर्य एवं दोपक पपना ..