पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५२९

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४०० जैनधर्म ठा मा यान हा ग्य' होना चाहिये ययोंकि वह मान कहलाता है। कारणहेत. काय हेतु, पूर्व भारत मेनका पुत्र है, जो जो मैत्रय होते हैं वे मन सामवणे . उत्तरचरहेत. महघरहेतु पादि अविनाभायो ईसपोरे झोत जमे कि उम्वित ५ पुव. जो मंत्रमुत नहीं होते | भेदमे धनुमानके अनेक भेट है। जो न्यायदोपिका, ये श्यामय भी नहीं होते जे मे रेवतकपुत्र । यतक। प्रमेयरवमाना, प्रमेयकमनमार्तगड़, अष्टमहस्रो भादि पुत्र सभा गौरवण देव शर घोर मंत्रपुत्र मभी श्याम- जैनग्रयों के विदित होने है। .. . वर्ग देख कर चैबने अन्नध यति फ व्यामि हारा गर्भस्थ जैनियोंकि यहां पांचर्चा परोक्ष प्रमाण भागमा मंत्रपुवको नामवण मिड करने के लिये मैत्रपुत्रत्य है। प्रागमका लक्षण वे लोग इस प्रकार कहते है- न का प्रयोग किया है. यह मेवमुप्रत्वहेतु गर्भस्य "क्षातवचनादि नियन्धनमपंझानमागमः" :९ (१क्षामुराः) यानक रूप पक्ष में रहता हो है, मपन जो परिदृष्ट मैव । पर्थात् जिसमें पास यरन कारण हो ऐमा पदार्थ ज्ञान मानक उनमें भी मेवपुत्रत्व हेतु रहता है. विपक्ष । पागम कहा जाता है। नियों ने ज्ञानको पागम मामा यतिक पुर्वो: मेत्रपुवत्व हेतु नहीं रहता है इस है. वचन और शास्त्रों को जो पागमता है यह गई लिये यह हेतु पत्ति सपत्ति पोर विपनप्याति । यहां उपवरित ई, वचन और शाम्ब उम समोचीनसान में खरूप होने पर भी मदेत नहीं है, कारण कि गर्भस्य ! कारण पड़ी है इसलिए उपचारमे उन्हें भी पागम का धानक "श्यामवर्णही होगा यह बात निशयपूर्वक जाता है। वास्तवमै तो वचनजनित बोध होता है. मिह नहीं फोजा मन्यो, मम्भय है वह बालक गौर वर्ण । उमोका नाम पागम है। पागम प्रत्येक व्यक्ति के वचन होय, इसलिए मटेहास्पद होनेसे अनेकान्तिक लाभाम से होनेवाले भानको नहीं कहते है किन्तु सत्सवमा है। फिर भी इमे नैयायिक अादि मिडान्तकानि वचनोंसे होनेवाले भागको सो पागम कहते हैं। क्योंकि किम प्रकार महेतु मान लिया है मो कुछ ममझमें नहीं भागमके लक्षणमें आग वचनको कारण माना गया है, पाना है। भाग मत्ययताका नाम है। मलिए मत्लवलाके वचनों एफ बात यह भी स्मरगा रखने योग्य है कि जैन ! को सुन कर जी बोध होता है वहीं पागम। पर्व दर्शनकार पनुमान से द्वारा मध्यके निययरूप 'सान हो थेट मत्ययका जैनियों के यहां मई है. पर उन्हें . मानको कहते है एमके विपरीत अन्य दर्शनशार 'यह कहा जाता है जो पारमामे-पामगुणोंको घात करने पर्यत पग्नि वाला होना चाहिए क्योंकि यहाँ धम है' याने फौफो मर्यथा नष्ट कर चुके हो, मर्वया राग. यह प्रतिज्ञारूप वाक्यप्रयोगको हो अनुमान बतलाते हैं, वेषका नाश कर वीसराग बन चुके , एव जगत परन्तु वास्तव में इस वाक्यपयोगको अनुमान प्रमाण । ममस्त घरपचर पदार्थों को मातात् एक ममय प्रत्यछ मानना युक्तियुता नहीं मिड होता, कारण शिप्रमाण रूपमे देगरी चौर जानते हो, ये परन्त जैनियोंकि यर्श जानरूप हो हो महा। तभी उनके हाग यश मिद हो जोवन्मुक्त एवं मान परमामाकै नामसे कहे आते है, मकती है। वापरप्रयोग जड़ सल्प है उममे धम्त।. उनकी जो दिव्ययापी खिरती है यह बिना था सिहि नहीं मही, हो! मायाप्रयोग शानरप धन मान | जीवों के पुण्योदयमे सतग पिरती है, पम्त मयंचा प्रयोग साधक अवश्य है। - श हो चुके हैं, इसलिये उनकेक्षा भो नट हो चुकी ___ यह साध्ययिभानस्वरुपपनुमान टो कोटियाम यिभान है, या दिप्यवाणी सत्य इमलिये कही जाती है कि एक ६. एक म्यानुमाम दूमरा पगामुमान। जहां तो ममम्त पदार्थों मान रपत्र होतो. मी-

म्वयं निशित पविनाभावी माधनमे माध्यका मान कर । मर्म गगघि कारण नहीं है। रागच पाता ये

लिया जाता है या साधीन मान कहलाता है, और दो की कारण मठ योमर्नेम' ही मारे ए, प्रमा सो टूमरे पुरुपको प्रतिक्षा पोर हेतुका प्रयोग कर दोनों माका ...उनका यम मन्य माधनमें साभ्यका बोध कराया जाता है art ... ममें लो, यही घागम पात्