पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५३१

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लैनधर्म होने पर मामान्य प्रतिभामाप दान पोरे जो पातर मतितान होने के बाद ही होता है : विना मतिज्ञान र मत्ता रहित विशेष यसका सान जीता है, उमें प्रवग्रह युनजान नहीं होता। पाई मुख्यतः टो मेंट. एक करते हैं। पर्यात किमो वमुको मत्तामात्रको टेपने वा अनयाय और दूसरा पदप्रविष्ट । युतका विगेप विवाद जाननेको दर्शन या दर्ग नोपयोग कहते है और दर्शनके पहले "म शास्त्र वा युत" जीप कमें लिया जा चुका पयात् नो मतकगादि रूप विगेप जाननेको प्रवग्रह है, अत: यहां नहीं लिहा गया। ममितान कहते हैं। इसके बाद पर्थात् प्रवग्रन्मति. ___ उपगेश मति और शुनगान टोनी परोस प्रमाण भान पवार 'यहमेत वा फुग का पदार्थ है? कहनाते हैं। एमके विशेष जाननेको इच्छा होने को ईहामतिजान ३य प्रवधिज्ञान-जो भान ट्रष्य, क्षेत्र, कान और कहते हैं। यह भान मनः कमजोर है कि किमो भावको मर्याटाको लिए हुये रूपी पदार्थको बिना किमो पदार्य में ईसाहो करमट जाय, तो उनके मिपम इन्द्रियको महायताके म्पट मानता है, उमे पवधितान कानांतर भो मय पर यिम्मरण हो जाता है। कहते हैं। इसके प्रधानतः दो भेद है-१ भवप्रत्यय इलाम जाने गए पदार्थ में यह वही है, अन्य नहीं ऐसे | अवधिज्ञान और २ क्षयोपशमनिमित्तक प्रयधिज्ञान। . हद शानको ग्रयायमतिमान कहते हैं। पवायमे जाने भव ( जन्म । ही है प्रत्यय प्रर्थात् कारण जिममें, ऐमें हुए पदार्थ में मय नहीं होता, किन्त विस्मरण हो अवधितानको भय प्रत्यय कही। भवप्रत्यय नामक जाता है। और जिम ज्ञान से जाने पुए पदार्य को काना- प्रवधिजान देव और नारकियों होता है। कारप उम स्तरमें नहीं भूने अर्थात् कानातम्में भी उम पदार्थ में भव (जम्म) में यहो प्रभाव है.कि, यहां कोई भी जीय मंगय चोर विस्मरण न हो, उगे धारणामकिज्ञान कहते। जनमे, उमे पवधिमान नियममे होगा। किन्तु दुमरा क्षयोपशमनिमित्तक अवधिभान पयधिसानावरण पौर ___ मतिज्ञान विषयमत पदार्थो दो भेट है ध्यास वीर्यान्तरायकर्म के आयोपगममें होता है चोर वह सयो घोर अश्यक्त। व्यक्त पदार्थ को पवग्रहादि चारों हो पगम प्रत, नियम, मपयरण प्रादिमे होता है। मुनिगा मानमे जाना जा सकता है, किन्तु पय्यक पदार्य का । जब बहुत तपम्या पादि करते हैं, तब उन्हें प्रयधिशान, मिर्फ प्रवग्राम की बोध होता है। यात पदार्थोक प्राग होता है इममें भी इतना भेद.हे कि मम्यग्द, टिलो वयस्मो पर्थाय यह पोर प्रयाला पदार्गाने प्रयग्रहको अवधिमान होता है, उसे ही ग्रमधिमान कहते हैं पौर यातनावग्रह करते हैं। पर्यावर तो पांचों एन्द्रिय नो मिय्यादृष्टियोंकि होता है, उमे विभद्रावधि से है। और मनम होता है, किन्तु वाञनावग्रह चच पोर योपशमनिमित्तक प्रयविज्ञान मनुष्य पौर मंनो पई। मनके मिषा पयघिट चार इन्द्रियों में ही होता है। न्द्रिय तिर्यचौके मिया पन्य यिमोको भी नहीं होता! यामा मोर प्रवाह पत्ये कके मार यारह भेद है। यथा ममें भी मम्यग्दा नादिके निमित्तमे सोच्योपगमनिमिः पए, एक वयिध, एकविध, तिम, प्रतिमा निःरात तक पयधिन्नान होता है, उमे गुणप्रत्यय कही । पनिःसत, उल, प, धूप पोर पधप । इन बारह म धयोपणमनिमित्तफ गुप्पमस्यय प्रयधिनाम : मैद पकारक पदार्थों का अपग्रह शादिम्प ग्रहण वा मान । । • यथा-१ अनुगामी, २ अननुगामी, ३ ई. होता है। मे-पक माय धरत पयग्रहादिरूप पक्षण | मान, ४ डीयमान, ५ . प्रवस्थित, पौर ई एमपित । सीमा, ययनरत्यादि। पनुगामी-मो अवधिमान अपने स्वामी जोपई माय २य शुतधान-मसिशाम जाने हुए पटाय में गमन करे, उमे पनुगामी कही। उम मीन मेंट सम्बन्ध बनेपाले पदार्थ हे भानको गुनगान कहते हैं।। ६.१ धेवानुगामो. २ भयानुगामो घोर ३ उभयानु। जैसे-'घर' गष्ट सनने घाट उत्पन्न हुमा कम्म, योवाटि गामो । जिम जोयको जिम घेव में पयधिज्ञान प्रामथा. प्प घटका मान । यस् गुमशान मनिशान पूर्वक पात् ' 'म जोय पन्य पेयम गमन करने पर भी जो पयधि.