पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५४

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अयचन्दराय छावड़ा-जयतीर्थ विस्तृत था। रणक्षेत्र जयवादके साथ सात सौ निषादी विशेष, प्राचीनकालका एक प्रकारका बड़ा टोल । जय. भौर प्रायः १ लाखसे ज्यादा सेना थो। इसी घुइमें ध्वनि करने के लिये टोल बजाया जाता था। जयचन्द निहत हुए थे। जयत कवि-हिन्दोके एक कवि। ये मकबर बादशाह के २ नागरकोट या काङ्गड़ाके राजा, समााट् अकबरके | दरवारमें रहते थे । १५४४ ई० में इनका जन्म हुआ था। . समय इनका प्रादुर्भाव हुआ था। जयतरु ( संपु.) नन्दीरक्ष । जयपुर निवासी एक अन्यकार। जयताल (सं० पु०) तालके साठ प्रधान भेदों में एक ! जयचन्दराय छावा देखो। । इसमें कमसे एक लघु, एक गुरु, दो लघु. दो गुरु. दो ४ मिथ्यात्वखण्डन नामक जैन ग्रन्थके रचयिता। द्रुत और एक लुप्त होता है। यह ताल सातताला जयचन्दराय शबड़ा-जयपुर निवासो एक हिन्दोके प्रमिह कहलाता है। जैन ग्रन्यकार । इमकी जाति खण्डेलवाल और शबड़ा | जयति, जयत् (हिं. पु.) गौरी पौर ललितके मेल गोख था। पापने हिन्दी भाषामें निम्नलिखित धर्म ग्रन्यो । बननेवाला एक सार राग। का प्रणयन किया है। जयतियो ( स० स्त्रो. ) एक रागियो। यह दीपक राग. १ सर्वार्थसिद्धि विक्रम सम्वत ११ को भार्या मानी जाती है। , २ परीक्षामुख (न्याय) १८दरमै जयतो (हि. स्त्री०) यौरागके पन्तगत एक रागिणोका ३व्यसंग्रह १८६३में नाम । यह सम्म म जातिको रागिणी है। इसमें सब शव - ४ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा , १८६हमें खर लगते हैं। किसी किसोका कहना है कि पूरिया. मात्मख्याति समयसार १८६४में ललित और समन्तके योगसे बनी है। बहुत से लोग इसे ५ देवागम (न्याय) १८में | टोडी, विभास और घदानाके मेलसे बनी मानते हैं। अष्टपाड़ ., १८५७ संस्कृत पर्याय-जयेती। मामार्णव १६में जयतीर्श (सं० को.) १ तीर्थविशेष, एक तीर्थस्थान ।। ८ मतामरचरित्र १८० में (शिवपुर) १. सामायिक पाठ २ एक प्रसिद्ध दार्शनिक । पमनाम और पचोभ्यतीर्थ- ११ चन्द्रप्रभकाव्यक श्य सर्गका ) सयम माम के थिय । इनका पूर्वनाम टुंट रघुनाथ था, संन्यास ग्रहण- न्याय भाग नहीं। के पोछे ये जयतीध नामसे प्रसिद्ध हुए। उन्होंने संवत १२ मतसमुश्चय (न्याय) भाषामें पनेक ग्रन्थ रचे हैं। इन्होंने पान दतीर्थ क्षत प्रायः १५ पनपरीक्षा (न्याय) समस्त ग्रन्योंको टीकाएं लिखी है। उनमसे निम्नलिखित इन सब अन्योम सिवा भत्तामरचरित्र के सभी उच्च टोकाएं मिलतो है-मद्यस्वभाष्यको तत्वप्रकाशिका कोरिदे तात्विया अन्य हैं। इन ग्रन्योको हिन्दो भाषा | नामक टीका, उपाधिषइनकी तत्त्वप्रकाशिकाविवरण प्राचीन दारी होने पर भी प्रति सरल है। नामको टोका, मनश्याख्यानको वायमधा नामक जयजयवन्ती (दि. स्त्री.) सम्पूर्ण जातिको एक सहर | टोका, अनुव्याख्यानान्वयविवरणको पत्रिका, प्रमाण- रागिणी। यह धूतथी, बिलावल और सोरठ के योगसे | लक्षणको ग्यायकल्पलता नामक टोका ईशोपनिषताय. मनती र सम समस्त खर पद लाते हैं। यह वर्षा को टोका, ऋग्वेदभाषाको टोका, कथालतणको टोका, पातमें सथा रातको दण्डसे १० दण्ड तक गाई जातो | कार्यनिर्णयको टीका, तत्त्वविवेक टोका. नवसंख्यानको है। कुछ लोगों का कहना है कि वह मालकोशको सह टोका, तत्वोद्योतकी टीका, मायांवादखाइनको टोका, परी प्रयवा मेघराणको भायो । प्रश्नोपनिषदभाथको टोका, प्रपञ्चमिथ्यात्वानुमानखण्डन अयटका (स.प्रो.) जया टका, मध्यपदलो । वाय. को टोका, भगवहोताभाषाको प्रमेयदोपिका नामक Vol. VIII, 13