पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५४०

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नैनधर्म ४८८ इसोप्रकार उत्तरोत्तर होप वा समुद्रीम वलयोंका परि १२ मुहर्तको रात्रि होती है। क्रमशः घरते घटते जध माण दिगुण होता गया है। मनुष्यनीकासे बाहरके दीप बाहरी गली में गमन करता है, तब १२ मुइतका दिन या समुद्र जितने नन्न योजन चौड़े हैं, उनमें उतने हो। और १८ मुहर्तको रावि होती है। एक सूर्य ६० मुहर्त में यालय है। प्रत्येक वलयकी चौड़ाई चन्द्रमाके च्यामः । भेरुकी प्रदक्षिणा पूरी करता है। कम्पना कोजिये, नमान योजन है। पुश्करदीपले उत्तराई के प्रथम | मेकको प्रदक्षिारूप प्राकागमय परिधिमे १,०८,८०० बलयमें १४४ चन्द्र हैं , द्वितीय, तृतोय आदि वलयों में | गमन सुगड हैं। इन खगडोंमें गमन ज्योतिकोको चार चार अधिक है । पुकरहीपके उत्तराईम म वलयों गति ९म प्रकार है- चन्द्र एक मुहर्त में १७६० खाईम चन्द्रीको मख्या १२६४ है 1 पुष्कर ममुद्री प्रथम वलयम मान करता है। सूर्य एका मुहत में १८३० गमनखण्डीको २८८ चन्द्र हैं । अर्थात् पुष्करद्वीपके उत्तराई के बन्नयम तय करता है और नक्षत्र एक मुहत में १८३५ गमन. स्थित चन्ट्रोमे दूने हैं । म यौँको भो मख्या उन्न प्रकार | खण्डोंको तय करते हैं। चन्द्रको गति मबमे मन्द है, है। इसी प्रकार अन्त के स्वयम्भू रमण ममुद्र पर्यन्त पूर्व । चन्द्र में सूर्य को गति तेज है। मर्य मे ग्रहों की. ग्रहों पूर्व होप वा समुद्रको प्रथम वलयस्थित चन्द्रों के प्रमाणसे | नसोको और नक्षत्रोंसे तारोंको गति कुछ नेज है। उत्तरोत्तर होप या समुद्रके प्रथम पन्लयस्थित चन्द्रों को विशेष जानना हो तो "त्रिलोकसार" नामक मन्य देखना मण्या दृनी दूनी होतो गई है और प्रथम प्रथम वनयों चाहिये। चन्द्रमानोंमे हितीयादि वलयस्थित चन्द्रमानोंको संख्या ३। ऊई लोक-मेरमे आई,, लोकके अन्त तकका मर्वत्र चार चार अधिक है। ईमे-पुकरममुद्र में ३२ क्षेत्र ऊई लोक कहलाता है। इस नोकके दो भेद हैं, एक कल्प घोर टूमरा कल्पातीत । जहां तक इन्ट्राटि. वलय हैं जिनके समस्त चन्द्रमाको मग्या ११२०० है, इसमे अगले होपने ६४ वलय है जिनके मम्प ग । को कल्पना होती है, वहां तक कल्प कहलाता है। और जहां इन्द्राटिकी कल्पना नहीं है, उमे कन्पातीत चन्द्रमायौंको मस्या ४४८२८ है, इत्यादि । म योको संख्या भी इसी प्रकार समझनी चाहिये। किन्तु ग्रहोंको | कहते हैं। कल्पमें १६ स्वर्ग है, जिनके नाम इस प्रकार मख्या चन्द्र वा सर्य से ८८ गुनी अधिक है। नक्षाको हैं-(१) मोधर्म, (२) ईशान, (३) मनका मार, संख्या २८ गुणित है और नारीको मस्या चंद्र या (४) माहेन्द्र, (५) ब्राहा, (६) ब्रह्मोत्तर, (७) म योको मख्यासे ६६८७५ कोडाकोड़ो गुणित है। लान्तव, (८) कापिष्ट, (६) शुक्र, (१०) महाशुक्र, पन्न सूर्य और चन्द्र गमनके विषयमें कुछ कहा (११) मतार, (१२) सहस्रार, (१३) मानत, (१४) जाता है। चन्द्र और सूर्यके गमन करनेके मार्ग प्राणत. (१५) पारण और (१६) अश्य त । इन (गलियों )को चार दिन कहते है। सम्पर्ण गलियोंकि मोलह स्वर्गमिमे दो दो खगमि मयुक्त राज्य है । अतएव समूहरूप इस चार क्षेत्रको नौडाई ५० योजन है । मोध, ईशान, सनत्क मार, माहेन्द्र इत्यादि दो दो स्वी- का एक एक पटन्न है। ये सोलह स्वर्ग इस प्रकार निस मार्ग से एक चन्द्र वा सूर्य गमन करता है, उसोमें अवस्थित है- ठीक उसीके मामने दूमरा चन्द्र या सूर्य गमन करता मो.- --१, २------.. है। इस चार-क्षेत्रकी ५१मायोजन चौड़ाई ममे १८० योजन तो जम्य दीपने घोर ३३० योजन लवप समुद्र बधो. में है। चन्द्र के गमनको १५ और पूर्य के गमनको १८४ ला- - - -


का.

गलियां हैं। इन सबमे ममान अन्तर है। दो दो बर्य शुरू---...--८, १०- मा चन्द्र प्रतिदिन एका एका गलीको छोड़ कर दूमरो | .म.- --११, १२------- -मह. — दूसरी गली में गमन करते हैं। जिस दिन सूर्य भीतरी [.पा. -------------१३, १४ --- गनीमें गमन करता है, उस दिन १८ मुहतका दिन और भार०- १५, १६,-- Vol. Vill. 123