पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५४२

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जैनधर्म ४६१ वे "थेगोवद" कहलाते हैं और थेग्गियोंके बीच जो है। समस्त विमानों की संख्याममे इन्ट्रक और थेणी- फुटकर विमान होते हैं, इन्हें. "प्रकोण क" कहते हैं। यद विमानोंको संख्या निकाल देनेमे प्रकीर्णक विमानों प्रथम युगलमें ३१ पटल हैं, दूसरे युगलमें ७, तीसरेमें ४, को संख्या निकल आती है। योथैमें २, पचिमे १, छठेमें १. वें और प्वमें ६. नव प्रयम युगल के प्रत्येक पटलमें उत्तर दियाके गो- वेयर में , नव-अनुदिश १ और पञ्चानुत्तरमें १ पटल | वह तथा वायव्य भोर ईशान दिशाके प्रकीर्णक विमानों- है। इन पटलोंमें असख्यात योजनका अन्तर है और में उत्तर-इन्द्र ईशानको प्राज्ञा प्रवर्तित है। अपशिष्ट ६३ पटलों में ६२ हो इन्द्रक विमान हैं। नीचे पटनोंके समस्त विमामि दक्षिणेन्द्र मोधर्म को प्राजाका पालन नाम लिखे जाते हैं। होता है। जिन विमानोंमें मोधर्मन्द्रकी प्राज्ञा जारी है, - रम युगलके ३१ पटल, यथा-ऋनु, निमल, चन्द्र, , उनके समूहको मौधर्म वर्ग कहते और जिनमें ईशा- बल्गु, वीर, अरुण, नन्दन, नलिन, कांचन, रोहित, नेन्द्रकी आज्ञा प्रवर्तित है, उनके ममूहको ईशानखग। चच्चत्. मारुत, ऋडीश, वैड्य, रुचक, रुचिर, अङ, इसी प्रकार दूमरे और अन्तके दो युगलों में समझना स्फटिक. तपनीय, मेघ, अब हारिद्र, पद्म, लोहिताक्ष, | चाहिये। किन्तु मध्यके चार युगौम एक एक इन्द्रकी वच, नन्दावर्त, प्रभङ्गर, पृष्टकर, गज, मित्र और प्रभ। ही आज्ञा चलती है। पटनके ऊई अन्तरालमें तथा त्य युगलके ७ पटल, यथा-अनन, वनमाल, नाग, विमानोंके तिर्यक् अन्तरालमै अाकाश है : नरकको तरह गरुड़, लाल, बन्नभद्र और चक्र । ३य पटलके ४पटत. बोच में पृथिवी नहीं है। ममम्त इन्द्रक विमान संख्यात यथा-अरिष्ट, सुरम, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर। ४ युगलके योजन चौड़े हैं और श्रेणीवड विमान असण्यात २ पटल, यथा-ब्रह्महृदय और लान्तव। ५म युगलका योजन। किन्तु प्रकीर्णकोंमें कोई मख्यात और कोई १ पटल यथा-शुक्र । ६ष्ठ युगलका १ पटल, यथा असग्ल्यात योजन चौड़े हैं। प्रथम युगतर्क विमानाको मसार। ७म और प्म युगलमें ६ पटल, यथा-आनन, मोटाई ११२१ योजन है। दूसरेको १०२२ योजन, प्राणत, पुप्यक, मातक, पारण और अच्युत। अधो तोमरेकी ८२३, चौथैकी ८२४, पांचवेंकी ०२५, छठेको ग्रेवेकके ३ पटन, यया सुदर्शन अमोघ और सुप्र• ६२६, मातवें और पाठवेंकी ५२७. तोन अधोग्रे वेयकाको 'बुद्ध। मध्य वेयकके ३ पटल, यथा-यशोधर.ममुद्र ४२८, तीन मध्यम वेयकोंकी ३२६, तीन उपरिमध्यग्रेवे और विशाल । उई - वैयकके ३ पटल, यथा--सुमन, यकोंकी :२३० और नव अनु दिग और पांच अन तर सोमन और प्रीतिकर। ६ अनुदिश विमानोंका १ पटल, | विमानों की मोटाई १२१ योजन है। .. क्या-प्रादित्य । और ५ अनुत्तर विमानोका १ पटल, प्रथम युगल के अन्तिम पटलमें उत्तर दिशाके पठार • यथा-मसिदि। सर्वार्थ सिद्धि विमान लोक अन्तसे | येणीव विमानमें सौधर्मेन्द्र निवास करते हैं और दक्षिणा १२ योजन नोचा है। दिशाके पठारह येयीय विमानमें ईशानेन्ट्रका यास ____ऋजुविमान प्रथम 'इन्ट्रक विमान है। उसकी है। द्वितीय युगलले अन्तिम पटसमें दक्षिण दिशाके १६ये चौड़ाई ४५ लाख योजन है। द्वितीय आदि इन्द्रकवि विमानमें मनत्क मारेन्द्र और उत्तर दिया १६वे विमान 'मानोंको चौड़ाई क्रमशः घटती हुई अन्त मर्वार्थमिति में माहेन्द्र निवास करते हैं। तोय युगल के अन्तिम नामक इन्द्रक विमानको चोड़ाई १ लाख योजनको रह| पटनमें दक्षिणदिशाके १४वे विमानमें ग्रामेन्द्र, चतुथ गई है। प्रथम पटलकी प्रत्येक यगोम येणीवद | युगल के अन्तिम पटलमें उत्तर दिगादी १२वै विमानमें 'विमानौको संख्या ६२ है । द्वितीय आदि पटनांक थेगी- लान्तवेन्द्र, पञ्चम युगल के अन्तिम पटल में दक्षिणदिमाके वह विमानोंको संख्या में कमसे एक एक घटती गई। १०३गणीवह विमानमें शुक्रन्द्र, पष्ठ युगल अन्तिम है।' ६२वें अनुदिग पटतमें एक गोवा विमान है। पटलमें उत्तर. दिमाके व गोवद विमानमें सहारन्द्र - भोर पन्तके मनुत्तर पटलम भो एक पीवद विमान तथा म और पम युग के अन्तिम पटचोंमें अरिए