पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५४४

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जैनधर्म ४६३ पुवादिक माघ घरमें रह कर अथवा मम्म परिग्रहका जनेतरके लिए थायक होनेको पावता- जिम व्यक्ति त्याग न करके जो धर्माचरण (अर्थात् अहिंमा पाटि मतों ने यावकके घर जना न ले कर अन्यधर्मावलम्पीके घर का एकदेश पालन करना) किया जाता है, उसे या जन्म लिया है, वह अजैन कहलाता है। अजनको काचार कहते हैं। और मम्प गण व्रतका पूर्ण तया | शुद्ध करनेको ४८ कियाए ई ना दोक्षान्चय क्रियाएं पालन करनको अर्थात् सर्व प्रकारका परिग्रह त्याग कर कहलाती हैं। यहां मम्प पं. क्रिया त्रोंका वर्णन न वनमें तपथरगा श्रादि करनेको मुनि प्राचार कहते हैं। कर आवश्यकीय क्रियाओंका वर न किया जाता है। पहने थावकाचारका वर्णन किया जाता है। जैन महापुराणान्तर्गत ग्रादिपुराणके ३८ पर्य में .. श्रावकाचार या गृहस्थधर्म-स्थावकाधम पालन करनेके । लिखा है- अधिकारी दो प्रकार के होते हैं। एक तो वे जो जैन | ___तत्रावतारसंज्ञास्यादाद्यादीक्षान्ययक्रिया । वा यावकके घर उन्म लेनके कारण उनाने ही थावका मिथ्यात्वपिते मध्ये सन्मार्गप्रहगोन्मुसे ॥४॥ चारका पालन करते हैं और टूमरे जो थावकर घर प्रतु संयत्य योगीन्दं युक्ताचा रंमहाधियम् । उत्पन्न तो नहीं हुये किन्तु जैनधर्म पर दृढ़ विनाम गृहस्थाचार्यमा प्रच्छतोत विचक्षणः ॥८॥" होने के कारण यावकाचारका पालन करते हैं। ऐसे १ अवतार किया-जो भव्य पहले अविधि अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यको जैनधर्म सुननेका अ!ि मिथ्यामार्गमे दृषित है, वह सम्माग ग्रहण करनेको कार है। शास्वमि कहा जाता है, "योवर्णा डिजा इछासे पहले किसी मुनि अथवा गृहस्थाचार्य के पाम नया,. तीनों वर्ण जिज हैं। किन्तु जिमके प्रसन, जा कर प्रार्थना करे कि, "मुझ निर्दोष धर्म का स्वरूप वसन आदि उपकरण तथा आचरण शुद्ध है, ऐमा शूद। काहिये। क्योंकि मसारदुःखकी दि करनेयाले मार्ग भी जैनधर्म के सुननके योग्य हो सकता है। अभिप्राय मुझे दूषित मालूम पड़ते हैं।" इस पर प्राचार्य उमे यह है कि जिम प्रकार ब्राह्मण अादि उत्तम वर्ण वाले। देवगुरु और धर्म का यथार्थ स्वरूप ममझा । पाचार्य- पुरुष काललब्धि श्रादि धर्म माधन करनेकी मामग्री का उपदेश सुन कर वह भव्य दुर्मागसे बुदि हटा कर मिलने पर ही धावकधर्म धारण कर मकते हैं, उसी | मचे मार्ग में अपना प्रेम प्रगट करे और प्राचार्य को प्रकार शूद्र भी आचरण आदिमे शुष्ध होने पर भोर काल धर्मरुप जन्म का दाता पिता मम। यह 'पवतार लब्धि श्रादि धर्म माधन करनेकी सामग्री मिलने पर क्रिया नामक पहनो क्रिया है। यावकधर्म का पालन कर सकता है। इससे यह भी ___२ व्रतलाभक्रिया-पद्यात् वह शिष्य अपनी यहा ममझ लेना चाहिये कि शूद्रोंको विवर्ण के ममान वन्न व्रत ग्रहण कर । अर्थात् तीन मकार (यथा-मद्य, माम आवकधर्म के पालन करने का नया जनधर्म यषण करने ओर मधु). पांच उटुम्बर (पोपन, गूगर, पाकर, बड़ और का अधिकार दिया है। किन्तु ब्राह्मणादिक ममान उनके कठूमर इन पांच चोंके फन) का एवं म्यूल रूपम संस्कार न होने के कारण वे हिजीक माघ पनि भोजन (अर्थात् जिमके करनेमे राज-दण्ड हो) हिमा अमत्य, चार कन्यादान अादिका व्यवहार नहीं कर मकते। चोरीपरस्त्रो और परिग्रहका त्याग कर दे। इस अभ्या. धर्म साधारणके लिये है, उसे प्रत्येक नोव धारण कर मके उपरान्त तोसरो किया सम्पन्न करे। मझता है, चाहे वह ब्राह्मण हो, चाहे चारहाल और चाहे पशु-पचो हो। परन्तु कन्यादान, चौर पति-भोजन ____स्थानलाभक्रिया-यह मिया शिसो शुभ मुह पादिका सम्बन्ध जातिके माथ है। इसलिए जिन जिन तौ को जाती है। जिस दिन यह क्रिया करनो हो, जातियोकि माय पति-भोजन पाटिका व्यवहार है, उसमे एक दिन पहले उपवास करना चाहिए। पारपार्क उन्हींके माय हो सकता है, अन्य के माय नहीं। कोंकि दिन इस्या चाय दिन गृहस्थाचार्य की उचित है कि योजन-मन्दिरमै खुव 'वर धर्म की तरह साधारण नहीं है और न उसके साथ वारोक पोसे हुए चूनमे या चन्दनादि मुगन्ध द्रोंमे धर्म का कोई सम्बन्ध है। अदलयुक्त कमन पौर समवशरपका माइला बनावें एवं Vol. VIII, 124