पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५

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जयदेव भारतीय नामा भाषामि अनुवाद हो कर प्रकाशित) मण्यालोक हो बड़ा और पादरपोय ।। ... हुआ है। गीतगोविन्द देखो।

. . रघुनाथ शिरोमणि देखे! .

___२ प्रमनराधष और चन्द्रालोकके रचयिता । ये मैया ७ एक छन्दःशास्त्रकार। यिक भी थे इन्होंने अपने "प्रसन्नराध" की प्रस्तावनामें ८ गङ्गाष्टपदो मामक संस्थत काय के रचयिता। एक शरा उठाई है कि सकषि कैसे नैयायिक हो सकता . ईशतन्त्र नामक व्याकरणके कर्ता। . . है ? इसका समाधान अपने विपक्षण रीतिमे किया है। १. एक मैथिल कवि। ये कति विद्यापति के नीचे ये श्लोक उहत किये जाते हैं- समसामयिक थे भोर सुगौनाके राजा शिवसिंहको समा. "येषां कोमल काव्यकौशलकलालीलावती भारती में रहते थे। तेषां कर शतर्कककवननोद्गारेपि कि हीयते । जयदेव-इस नामके ने पालके दो राजा हो गये हैं। येः कान्ताचारले करमहः सानन्दमारोपिता एक तो पति प्राचीन सनका यह भी पता नहीं कि है कि मतकरीन्द्रकम्मशिखरे नारोपणीया: शरा..। उन्होंने किस समय राजत्व किया था। हां, २य जयदेवक श्लोकका तात्पर्य यह है कि जिन लोगोंको समयका शिलालेख पवश्य मिलता है। उसमें लिखा याणी कोमल काव्यरचनाके चातर्य की कलासे भरी है-महाराज गिषदेवने मोखरि-रान भोगवर्माको पौर चमत्कार उपजानेवाली है, क्या उनको वहो वाणो| कन्या और मगध गजे प्रादित्यसेनकी दौदिती वत्सदेवी। न्यायशास्त्रके कश और रुटिन शब्दों के उच्चारण का पाणिग्रहण किया था। रही बत्तदेवीके गर्भ से होम हो सकती है?मला जिन विलासियोन पानन्दमें | (२य ) जयदेवका जन्म दुपा जिनका दूमरा नाम परः । पा कर अपनी प्रियतमानोंके गोल गोल स्तनों पर नखोंक चनाकाम था । इन्होंने गौड़, उड़, कलिङ्ग पोर कोयला चिह्न किये हैं। क्या मदीग्मत्त हस्तीके समुच्च गगनः । धिपति श्रीपं देवको कन्या एवं भगदत्तीय राज स्थलों पर अपने वालों का पाप नहीं करते। दौहितो राज्यमतोके साथ विवार किया था (१)ये उन्होंने अपने पिताका नाम मादेष, माताका राजकुमार होने पर भी कवि थे। उस शिलालेख नान सुमित्रा और अपने पापको कुण्डिनपुरवासो पांच सोक राहोंने स्वयं बनाये थे। इन, २य जय. बसलाया है। रहोंने अपने अन्य घोर, मयूर, मास, देवके समय और निर्णय के विषय यक्षकि प्रधान कालिदास, इपभोर वाण कविका नामोशख किया प्रधान पुराविदोंने नया मत प्रकट किया है। ये कौनमे है। इमसे जात होता है कि ये सातवीं शताब्दी के पीछे हर्षदेवके जामाता... इस बासका कोई मो नियथ छुए हैं। 'प्रसन्माषके सिया' रहोंने 'चन्दालोक' नहीं कर सके हैं। प्रधान प्ररनतत्तषित डा. पुर नामका एक पालवारिक प्राय मोरचा है। ( Buhler) लिखा-3 भगदत्त पौर श्रीहर्षदेव पत्रिपुराउन्दरीस्तोतके कर्ता । ४ न्यायमन्नरोसारके । सम्भवतः प्रागन्योतिष राज गोय, जिस में हर्ष. का पौर नृसिंह पुत्र। ये नयायिक थे। ५रसा- यनके मममामयिक कुमारराजने जामग्रहण किया मत मामक वैधकमास्त्र के रचयिता। था। (२). मिथिलावासी एक मिा नयायिक, हरिमियके | - प्ररनतावपित् मि• फोटने वात विचारने के बाद शिष्य पौर भातुप। इनको पक्षधर उपाधि यो। ये| कहा है शि, जयदेव (२५) ठाकुरोय वंगर राजा नवदीप के प्रसिह ने यायिक रहनागिरोमणिके समसाम- थे, ये १५३ इयं सम्बत् अर्थात ७८ में राज्य करते यिक थेरनो में सवचिन्तामयामीक वा चिन्तामिय- पशुपति मन्दिर के शिवासी भार की पंकि.. प्रकाश, न्यायपदाय माना और न्यायमीलायतीविषेक में ऐसा लिया। माग सिम्याय पन्य पोर ट्रस्यपदार्थ नामक मो. ( sote s7 by Dr. Bahler in Treaty.three laserir- पिक अन्यकी रचना की राम प्रन्यों में सत्त्वचिन्ता tions from Nepal, P3..