पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५२

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जैनधर्म ४६८ अर्थात् प्रथम पहिमाणुव्रतके पालन करनेवालेको रहोभ्याख्यान कहलाता है। (३) कूटलेखनिया-जोधात उचित है कि, वह ओषध, अतिथिमस्कार और मन्च , किसी दूसरेने नहीं कहो हो. उसी वातको किसीको पादिके लिए भी बम प्राणियो का घात कभी न करे। मेरगामे 'उसने यह बात कही है वा उसने अमुक कार्य माराय यह है कि अहिमाणप्रतीके हदयमें करुणा- किया है' इस प्रकार ठगनेके लिए झूठे लेख लिखना, • बुद्धि ऐमो होना चाहिए कि वह स्थावर (एद्रिय ।। कूटलेखक्रिया है। (४) न्यासापहार-कोई व्यक्ति सोना, - पोर बम (होंद्रियादि) जोवी को रक्षा हो करना चाहे | चांदो प्रादि ट्रव्य किसोके पाम धरोहर रख गया हो तया प्रतिमें खान-पान आदि व्यवहार के लिए पाय । और फिर वह अपनो रकडी हुई चीनीको संख्या भूल • श्यकताके अनुमार ही स्थावर कार्यको विराधना (हिं )! का कम मांगने लगे, तो उस समय धरोहर रखनेवालका करे। .जरूरतमे ज्यादा व्ययं पृथिवी. जन, अग्नि, वायु । ऐसा कहना कि 'अच्छा ठीक है, इतना ही ले जापो' पौर वनस्पतिकायिक जीवों की हिंमा न करे इम अहि- अथवा यह न मांगे वा मांग भी तो न देना न्यासा. “साणव्रतको निर्दोष पालने के लिए दमके पांच प्रती पहार है। (५) माकारमन्त्रभेद-किमी अर्थ के चारों को भी त्याग देना चाहिए ! अदिसाणवत पांच . प्रकरण अथवा अनेके विकारमे दूसरेका अभिप्राय ज्ञान अतोचार ये हैं-१ बन्ध, २ वध, ३ छेद, ४ अतिभारा- कर ई और डाहर्क कारण उस अभिप्रायको प्रगट रोपण ओर ५ अवधाननिरोध । बन्ध-पशु आदि कोई । कर देना, माकारमन्त्रभेद भतीचार है। मव्याणुव्रत के भी जीव जो अपनी इच्छानुमार शिमो स्थानको जाना, पालकसे लिए ये पांच अतोचार त्याज्य हैं। कारण उक्त चाहता हो, उसे रोकने के लिए सटा, रस्मो, पोंजरा पांच प्रतीचारोंके होनेसे सत्याएव्रतका पूर्णतया पालन पादि द्वारा प्रावध रखना, बन्धातोचार कहलाता है। नहीं होता। वध-लकड़ी, कोड़ा, वेत प्रादिमे जोयों को मारना, (३) प्रचौर्याएनत-दूसरेकी गिरो हुई, पड़ो हुई रक्सी वधातिधार है। छेदन-कान, नाक मादि अवयवो को हुई वा भूली हुई वस्तु ( धन पादि) खय ग्रहण न कर काटना, वेदातिचार है। प्रतिमारारोपण-बैन, घोड़ा या दूमरेको उठा कर न देना अचोर्याणवत है। इसके . भादि प्राणो अपनो शक्ति के अनुसार जितना वोझ ले जा पांच प्रतोचार हैं, १ स्तनप्रयोग (दूमरेको चोरोका मकें, उममे ज्यादा बोझ लादना, अतिभारारोपप कह- - उपाय बताना), २ तदातादान (चोरोका माल खरो- .. लाता है। अनपाननिरोध-किसी भी कारणसे उन वैल, दना), ३ विरुहराज्यातिक्रमराज्यको प्रामा विगह न. घोड़ा आदि जानवरों को मुंखा वा प्यासा रखना, अन्न-देन करना), ४ होनाधिक मानोमान (नाप-तोलमें कमती • -पाननिरोधातीचार है। . . . . देना या बढ़ती लेना प्रयवा गज, यूट प्रादि कमतो- ___.(२) सत्याणवत-संह, मो भोर हे पके उद्देगमे | बढ़ती रखना) पौर ५ प्रतिरूप कष्यवहार (अधिक मूल्य असत्य भाषण किया जाता है, उस धमत्यके त्याग करने में | को वस्तु में घस्पमूल्यको वस्तु मिला कर चला देना)। • पादर रखने या मत्य बोलनको सत्यारएनत कहते हैं। ये पांच प्रचौर्याणमतके प्रतीचार त्याग देने योग्य है । तात्पर्य यह है कि ग्टहस्यको ऐसे हित-मित वचन | क्योंकि इनके बिना दूर हुए पचौर्याएनतमें उत्तमता नहीं

कहने चाहिये जिससे अपना मोर दूसरेका अहित न हो 'पाती। , . ..

या किसीको कट न पहुंचे। इसके भी पांच प्रतीचार (४) ब्रह्मचर्याणवत-उपात्त विवाहित) ओर अनुपात है। (१) मिष्योपदेश- अभ्य दय मौर मोच सिद्ध करने । (अविवाहित) परस्तियों वा परपुरुषों के ममागममें विरत वाली विशेष क्रियापॉम किसी भी अन्य पुरुषको विप रहना, प्रयोत् परो वा परपुरुषमे रमण न करके खन्नो -रीतरूप प्रवृत्ति कराना या विपरीत अभिप्राय बतलाना, वा खपतिले मन्तोष रखनेका नाम ब्रह्मचर्या एवत है। . मिष्योपदेश है। (२) रहीम्यायाम-स्तो-पुरुयों द्वारा इस व्रतका पतोचाररहिय पालन करना हो प्रगस्त है। एकान्तमें की हुई विशेष क्रियाको. प्रगट : कर देना, प्रधचर्याणवतके पांच पतोचार है। (१) परविवार-