पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५३

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बनधर्म करणा-टूमरों का विवाह कगना, (२) इत्वरिका- नहीं। धर्म-कार्यके लिए किमी प्रकारका त्याग नही। अपरिग्टहोतागमन-जिमका कोई खामी नहीं है ऐमो Smजिसका कोई स्वामी नहीं है ऐसो इम ब्रतके पांच प्रतीचार है, यथा-(१) जातिकम (परि. घेण्या प्रादिके पास जाना, (३) त्वंरिका-परियहोता | माणसे अधिक जबाइक वृक्ष पर्वतादि पर चढ़ना), (२) गमन-जिमका कोई एक पुरुष पति हो, ऐसो अधोऽतिक्रम (परिमाणसे अधिक कूप, बावड़ी, समिधादिम व्यभिचारिणी स्त्रोमे रति करना,'(४) अनङ्ग कोड़ा नीचे उतरना); (३) तियग्वातिकम (पर्वतादिकी गुफाम काम सेवनके माके सिवा अन्य स्थानमें कामकोड़ा तथा सुरङ्ग आदिमें टेढ़ा जाना), (४) क्षेत्राधि (परिमाण करना पौर (५) कामतीवाभिनिवेग-काम मेवनमे को हुई दिगायोंके क्षेत्रमे अधिक क्षेत्र बढ़ा लेना) और टप्त न होना, सवंदा उमोमें लगे रहना ! स्वदारमन्तोष (५) स्म त्यन्तराधान (दिशाओंकी की हुई मर्यादाको . व्रतोको इन पांच प्रतो चारों का मरण रखना चाहिये। भूल जाना)। इन प्रतीचारों {दोयों से बचना (५) परिग्रह परिमाण अणुव्रत-भूमि, यान, चाहिए। . . :: बाहन, धन, धान्य, टह, भाजन, कुप्य, (वस्त्र, (२) देशात यावन्नीवके लिये किये हुए दिख तमिस कार्पास, चन्दन यादि ) शयनासन चोपद, दुपद, इन और भी सोच कर किसो ग्राम, नगर, गृह. मुहमा दश प्रकार के परियहो के परिमाप करनेको परिग्रह परि श्रादि पर्यन्त गमनागमनकी मर्यादा करके उसमे पागे . माप प्रणवत कहते हैं। विना आवश्यकता बहुतसो माम, पक्ष, दिन, दो दिन, चार दिन . भादि कार की घोजे संग्रह करना, टूमरे का ऐश्वयं देख कर पाथर्य मर्यादासे गमनागमन त्याग करनेका नाम देशात है। करना; अतिलोम करना और पशुओं पर इदसे ज्यादा | इसे देशावकाशिक व्रत कहते हैं। किसी किसी अन्य बोझ लादना ये पांच इस व्रतके प्रतीचार है। . . कारन मे शिक्षाप्रतमें शामिल किया है और भौगोप: व्रतपतिमा-धारक उपर्युक्ता व्रतोंको प्रतीचाररहित भोग परिमाण शिक्षाबतको गुणवतमें मिला दिया है। पालता है। यदि कोई प्रतीचार लगे तो प्रतिक्रमण पोर । इसमें पांच प्रतीचार हैं, यथा १ पानयन (मर्यादाने . प्रायश्चित्त करना चाहिए। उपयुक्त पांच अणुगोंके । बाहरकी वस्तुओंका मगाना या किसी को बुलाना), २ सिवा व्रतो श्रावकको तीन गुणप्रत और चार शिक्षावत, प्रेथप्रयोग ( मर्यादामे बाहर क्षेत्रमें स्वयं तो न जाना । इन संशोलवतो का भो पालन करना चाहिए। सहा किन्तु मेवक पादिके द्वारा अपना काम निकाल लेना), गोलनत, यथा-(१) दिग्विरति, (२) देशविति, (३. ' शब्दांनुपात ( मर्यादासे बाहरके क्षेत्र में स्थित मनुष्यको अनयेदेगडविरति, (४) मामायिकवत; (५) प्रोषधोपवाम- खांसी आदिके शब्दमे अपना अभिप्राय ममझा देना), प्रत (६) उपभोगपरिभोग परिमाणवत और (७) अतिथि- 1 8 रूपानुपातं ( मर्यादामे बाहर क्षेत्रमें स्थितं मन को मंयिभागवत : . ...... अपना रूप दिखा कर वा हाथ के ' प्रणा से समझा कर । (१) हिंगवन-पूर्व, पशिम, उत्तर, दक्षिण, ऊई, अध, · अपना काम करा लेना) और ५ पुरन्तक्षेप (मर्यादासे गान, प्राग्ने यनत्यं ओर वायव्य इन दो दिशामी बाहर कार्ड, पल्यर यादि फेंक कर इशारा करना)। में जानका परिमाण करके उसके बाहर गमन न करने को इन प्रतीचारों (दोपों में व्रतकी रक्षा करनी चाहिए। दिग्धत करते हैं। यह व्रत मरण पर्यन्त त्वक्त क्षेत्रों के । (३) अनर्थ दण्इत्यागात विना प्रयोजन हो जिन | यार पापोंके छोड़ने के लिए भर्यात् सांसारिक, व्यापारिक कार्यों के करनेसे पापारम्भ हो, उन कार्याको त्याग देनेका और वारिफ कार्य-जनि पामे वचनके लिए ग्रहण। नाम अनर्थदण्डत्यागत है। जिनमे व्यर्थ ही पापमन्य किया जाता है। फिन्त तीर्थ यांवों और धर्ममम्बन्धी होता है, ऐसे अमर्यदएई के पांच भेद है, यथा-१ पापोप- कार्य के लिए मर्यादा नहीं होती ; मा कि नानानन्द देश, २ हिंमादान. ३ अपध्यान, ४ : दुःवति और ५ धामयाचा तिस-क्षेत्रका परिमाण मायदा योग-प्रमादचर्या । (१) पापोपदेश अनर्थ दगड-दूमरेको घमझे (oil) लिए किया जाता है; धर्म चाय के लिए "दाई करनेका, पाक पाणिज्यझा गावादिके व्यापार