पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५४

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जैनधर्म का, वृक्ष काटनेका, पृथिवी खोदने अादिका उपदेश देना पापयोग क्रियाओं मे विरक्त हो संबसे रागाईप छोड़ पापोपदेश कहलाता है। (२) हिंमादान-तलवार, मान्यभाव धारण कर शुद्ध पात्मस्वरूपमें लीन होनेको फरसा, कुदालो, बन्दूक, छुरा, विप आदि पदार्थोंका क्रियाको सामायिकवन कहते हैं। सामायिक नाम, स्थापना, ।' जिनमे अन्य प्राणियोंका वध हो सकता है, दान करना, द्रव्य, क्षेत्र, कान और मायके भेदमे छ प्रकार है। यया, हिंसादान है। इसलिए ऐसो चीजें किसी को भी नहीं (१) नामसामायिक-सामायिक लोन प्रात्मा ध्यान देनी चाहिए। (३) अपध्यान-अन्य जीवों के दोष में अच्छे या बुरे नाम पा जाय तो उनसे गग-प न ग्रहण करनेके भाव, अन्चके धन पानिको इच्छा, अयको | कर समभाव रखना वा निययनयको अपेक्षा उन्हें इय स्वीके देखनेकी पाकाक्षा. मनुष्य वा तियं चोंके कलह | समझना । (२) स्थापना-सामायिक-सुन्दर वा मसुन्दर - देखनको इच्छा. अन्यको स्त्रो, पुत्र, धन, भाजीविका | स्त्री-पुरुप प्रादिको मूर्ति वा चित्रका स्मरण होने पर पादिके नष्ट करनेको चिन्ता, परका अपवाद, अवज्ञा वा उनमे राग हेप न कर सबको पुरनमय समझना। (३) । अपमान चाहना आदि भावोंका निरन्तर हृदय में उदय द्रव्य मामायिक-इट या अनिष्ट, चेतन वा अधेतन पादि • होना अपध्यान कहलाता है। (४) दुःति अनर्थ दण्ड-- द्र्यो में राग-हवन कर अपने स्वरूप में उपयोग रखना। जिन कथामों वा पुराणादि शास्त्रों के सुनने वा पढ़नेमे मन (४) क्षेत्रसामायिक-सुहावने वा प्रसुहावने ग्राम, नगर, • कलुषित हो, ऐसे प्रारम्भपरिग्रह बढ़ानवान्ने पापकों में वन, मकान आदि किसो स्थानका स्मरण होने पर उम. .' साहस देनेवाले, तथा मिय्याभाव, राग द्वेष अभिमान | में राम-हेपन का, सह क्षेत्रों को एकरूप जान कर अथवा कामको प्रगट करनेवाले शाब एवं कथाओंका खक्षेत्रमें तन्मय होना । (५) काल-सामायिक-अच्छी पढ़ना वा सुनना टुःयुति अनर्थदण्ड कहलाता है। या बुरी ऋतु, रुण वा शक्रपक्ष, शभ वा अशुभ दिन, '. अमे, कामोत्पादक उपन्यास, नाटक आदिका पढ़ना नचव भादिका खयाल पाने पर किमी राग यापन वा अनील किम्माका सुनना आदि । (५) प्रमादचर्या कर सर्व काल को एक व्यवहारकानरूप मान अपने धमतलम पानो गिराना, जमीन खोदना. भाग जलाना ! स्वरूप में स्थिर रहना । (३) भावसामायिक-विपय, वक्षादि छेदना.प्रादि,प्रमादचर्या नामक अनर्थदण्ड है। कपाय प्रादि विभाव भावों को पुहन्तकम जनित विकार इन पांच प्रकारके अनर्थदण्डोंके त्याग कर देनका नाम | मान कर उनमे प्रोत वा हेप न करना और अपने भाव -अनर्थ टण्डत्यागवत है। इसके पाँच :अतीचार है, को निजानन्ट ममता RTI ANI ___.. यथा-..कन्दर्प (नोचीको तरह इसो व ममखरोमें - मामायिक करनेवालों को सात प्रकारकी शहि वा , पोलतापूर्ण पचन बोलना), २ कोत्कुच (पझोल वचन | योग्यता रखनी चाहिए। यथा-(१)क्षेत्रादि-सामा. .: बोसने के साथ साथ भरीरसे भी कुचेष्टा करना), २ मौनये | यिक करने के लिए उपद्रव रहित वन, चैत्यालय, धर्म- - (निरर्थक बहुत प्रलाप वा बकवाद करना), ४ असमो. शाला वा अपने मकान किमी निर्जन स्थानमें बैठना .:क्ष्याधिकरण (विना प्रयोजन बहुतमे मकानात, : हायो, चाहिए। स्याग समतल और पवित्र होना चाहिए । घोड़ा, गाड़ी प्रादि एकत्र करना) मोर ५ भोगोपभोगान- (२) कानशहि-मामायिक करने के उपयुक्त काल तीन र्थक्य (भोग और उपभोगको वस्तयों को अधिक परिमाण , प्रात:काल, मायकाल पोर मध्याकाल। ये ---में ले कर पीछे उन्हें फेंक देना, नेमे यालोम बहुतसा | तीन काल शुद्ध वा पवित्र है, इन कालमि मामायिक परसा कर पीछे उसे छोड़ देना वा फेक देना इत्यादि), करना कालगदि कहलाती है। (३) पामनराहि- • इन प्रतीपारीका खयान रयते हुए. पनय दण्डत्यागवत मामायिक करने के लिए जहां बैठे या खड़े होये, यक्षा का पालन करना उचित है। प्रब चार शिक्षा व्रतीका कोई दमासन वा चटाई प्रयवा पीना सफेद वा मान वर्णन किया जाता है- ' - धामन विधा सेना चाहिए। उस पर वायोत्सर्ग, पना. (8) मामायिकग्रत-तोनों सन्ध्याभों के समय समम्त । मन वा पाईपमासनमे पवस्वानपूर्वक सामायिक करमा ___Vol. VIII. 126