पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५५

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जैनधर्म चाहिये।(8) मनाएहि-मनमें पातध्यान वा रोद्रध्यान के कारण पाठ, क्रिया वा मन्याटि भून जामा। इन न कर मुक्तिको सचिसे धर्म ध्यानमें पासक्त रहना प्रतीचारों को न होने देना चाहिए। पाहिए। (५) वचनाहि-सामायिक करते समय परम | -- (५) प्रोषधोपवासयत-प्रचेक पटमो चोर पतको पापण्यकोय कार्य होने पर भो किमोमे वार्तालाप नहीं के दिन समस्त पारम्भ ( सांसारिक कार्य ) एक विषय करना चाहिए । केवल पाठ पढ़ने और शुद मन्त्रोच्चारण कपाय ओर चार प्रकारके पाहारीका त्याग कर म.. करने में ही वचनका उपयोग करना चाहिये। (६) काय | कथा ययगा करते हुए सोलह महर व्यतीत करने को प्रोप. शाहि-गरीर मलमूवको वाधा न रखनी चाहिए भीर धोपवासव्रत कहते हैं। पांची इन्द्रियों के विषयों को त्याग न स्त्री-समर्ग किये हुए शरीरमे मामायिक हो करना कर सर्व इन्द्रियोंको उपवासमें स्थिर रखना चाहिए। चाहिए। (७) विनयशहि-मामायिक करते ममय देव, उपवास के दिन चारों प्रकारका पाहार (खाध, वाद्य, गुरु, धौ पोर शास्त्रको विनय रख कर उनके गुणों में | लेध, पेय) तथा उबटन करना, मिर मल कर नहामा, भक्ति करनी चाहिए ; अपनेमें ध्यान और तप आदिका गन्ध सूचना, माला पहनना प्रादि त्याग देना चाहिए। पाहार न पाने देना चाहिए । केवल पूजाके लिए धारा नाममान किया सा-मझता ___ अंनगाम्म सामायिक करने की विधि इस प्रकार | है। नतो श्रावक इसे अभ्यासरूपसे पालते हैं ; किन्तु लिखो है- सामायिक करनेवाले यायकोंको उचित है। ४ मोषधोपवासप्रतिमाके धारक , इसका नियमरूपम .कि, उपर्यु त सातों शुहियोंका विचार रखते हुए मामा- पालन करते हैं। अतएव इसके पतोचार प्रादि मोषधोप. यिक प्रारम्भ करने के पहले कास्तका परिमाण और समयः । वासमतिमाके विवरण में लिखेंगे, ... का नियम कर ले। अन्तर्मुहूर्त काल तक धर्मध्यान ___(E) भोगीपभोगपरिमाणवत-कुछ भोग उपभोगको करनेको प्रतिज्ञा करनी चाहिये। सामायिकके काल- सामग्रोको रख कर वाकोका : यमनियमरूप त्याग को मर्यादा करने के बाद इस बातका भो प्रमाण कर कर देना भोगोपभोगपरिमाण कहलाता है। बहुममे ... लेना उचित है कि "इतने ममय तक में इस स्थानके | पदाथ ऐसे है जिनमे लाम तो घोड़ा होता है पोर चारी मोर १ गज वा २ गज क्षेत्र तक आऊंगा, अधिक पाप अधिक, उनको जन्म भरके लिए छोड़ देना महीं अथवा मेरे. माथ जो परिग्रह है. उनके मिया मैने चाहिए। इस व्रतके पालनेवालेको प्रतिदिन निमः इसने काल पर्यन्त सर्व परिग्रहका त्याग लिया" इत्यादि लिखित विषयों का नियम करना उचित है। .. यथा- अनार खड़े हो कर नो नो बार गामोकार-मन्य पढ़ते प्राज में इतनी बार भोजन करूंगा, श्राज में दूध, दही, हुए चारों दिशामों में तोन पावत' पूर्वक माष्टांग नमस्कार| वो.तेल. नमक मोर मोठा.इन व रममि पमुक रम करें फिर मामायिक करने के लिए बैठ जावे । सामायिक | क करना लिए बैठ जावे । सामायिक | छोड़ता हा प्राज मोजमके सिवा रतनो बार पानो प्रातः, मया मायाद तीनों म'ध्यायाम करना चाहिए। पोगा. मान वधाचयं पालूंगा, पाच नाटक नदेगा इस सामायिक-गिचायतको राहताके लिए निम्न इत्यादि। इस ग्रतके पांच प्रतीचार है, यथा-१ मचित्ता . लिखित पांच पतोचारों को दूर करना चाहिए। (१) झार (जीवसहित पुष्पफलादिका 'पाहार करना ) २ मन:दुःमणिधान-मनको विषय कपाय भादि पापा | सचित्तप्रबन्धाहार ( सचित पर्यात् जीवसहित वनसे बन्धी कार्यामि चश्चत करना । (२) वाग्द :प्रणिधान- मर्म किये हुए पदार्योको भक्षण करना , ३ मषिप्तः घधनको पश्चल करना, प्रात् सामायिक करते ममय | ममिधाहार (मधित पदार्थ मे मिले हुए पदार्थाका । किमीमे दातालाप करना पादि। (३) कायदुःमणि भोजन करना), ४ पभिषय (पुष्टिकर पदार्थाका पाहार धान-गरोरको हिलाना । (४) पनाटर - उत्माहरहिम प्रमादरसे मागायिफ करना। (५) म्मृत्यनुपस्यान .यावरणीव त्याग करने यम और किसी नियत समय , मामायिक एकापता धारण न कर विज्ञको अप्रता• I - तो लिए साग करनेको नियम कहते हैं। .. .