पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५६

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लेनधर्म करना) और दु:पकाहार भले प्रकार नहीं पके हुए। समय न लगाना चाहिए, क्योंकि पाहारका समय पदार्थ वा जो पदार्थ काष्ट से वा देरमे इजम हो, ऐसे निकल जानसे वे बिना भोजन किये ही वनको चल ‘पदार्थीका भोजन करना)। ये अतीचार सर्वया | देते हैं । ५वों विधि प्रणाम करना है अर्थात् भलिभावमे स्याज्य है। | नमस्कार करना चाहिए । हठो विधिका नाम .वाक्यहि i (७) पतिथिस विभागनत - अतिथि पुरुषोको अर्थात् / है। मुनिके पड़गाहे जाने के बाद से उनके गमन पर्यन्त जो मोक्षके लिए उद्यमी, मयमो और अन्तराष्ट्र एवं | स्वयं एवं घर के अन्य मनुष्यों को ही वचन कहने यहिरनमें शुद्ध हैं, ऐसे व्रतो पुरुपोंको शुद्ध मनमे आहार• चाहिए जो अत्यन्त आवश्यकोय हो और जिमसे शान्ति औषध उपकरण तथा वसतिकाका दान करना, अतिथिः | भङ्ग न हो। ७वों विधि कायशदि है। दान देनेवालेका मंघिभाग कहलाता है। अथवा मम्यग्दर्शन-धान चारित शरीर शुद्ध होना चाहिए। मलमूत्रको वाधा, किसो के धारक ग्रहरहित तपखोको विधिके अनुसार धर्म के प्रकारका व्याधि, फोड़ा, कुठ आदि न होना चाहिए । लिए प्रत्य पकारकी इच्छा न रख कर जो दान दिया हाथो से कमरसे नाचेका भाग न छूना चाहिए। अपने जाता है, वह अतिथिस विभाग या वैयावत्य है। इस हाथ मुनके हाथोंसे ऊ'चे रखने चाहिए। यदि.मुनिक 'पावदानके लिए (१) विधि, (२) द्रय. (३. दाता और हाथमे छ गये, तो वे पाहार न लेगे। अतएव खूब (४) पाव इन चार विषयों का ज्ञान होना यावश्यक है। सावधानो रखना उचित है। घर के अन्य पुरुष, स्त्री वा इन चारों विषयों की जितनो उत्तमता होगी, उतना ही 'बालकको मुनिके सामने शव वस्त्र पहन कर ही पाना फन्न होगा। चाहिए। ८वीं विधिका नाम है मनायादि । पात्रदान

(१) विधिविग्रेप-अतिथिम विभाग वा पात्र दान | देते ममय मनमें क्रोध, कपट, लोभ, ईर्ष्यापादि न पाने

देनेवाले के लिए नव प्रकारको विधि वतन्नाई गई है। देना चाहिए । प्रत्युत शुभ विचारों को स्थान देना उचित । ' म संग्रहविधि-पहले मुनिराजको 'पड़गाहना' करे। है। वीं विधि एपणाशधि है अर्थात् भोजनको पूर्ण अर्थात् शुद्ध वस्त्र पहन कर एवं प्रायक शुद्ध जलका | दि रखनो चाहिए । कारण, पवित्र भोजन हो मुनियों- कलय ले कर अपने द्वार पर पमोकार मन्त्र जपता हुआ लिए भक्षा है। एपणारादि चार प्रकारको है। यथा- पान (मुनि) को बाटमें खड़ा रहे। उम ममय घरमै (8) द्रव्यश-जो प्रव, ध, मोठा आदि रस और जरा भोजन तैयार रहना चाहिए और चको बलाना, उवलो. रमोईके काममें लिया. लाय, वह शुद्ध मर्यादाका हो में कूटना, बुहारो देना. चुन्हा जन्लामा प्रादि प्रारम्भ न और लकड़ी घुन वा कोटरहित हो तथा जो रसोई करना चाहिए। क्योकि यार'भ होते देख मुनि लौट, बनावे उसका भी शऔर पवित्र होना प्रादायकोय । जाते हैं।.. बाट देखते हुए जब मुनिके दर्शन हों, तव | (२)वधि-रसोई बनानेका स्थान गड होमा नमोस्तु कह कर उन्हें नमस्कार करे चोर कहे -पाहार | चाहिए पर्थात् वह चौका कोमल .झाड़ से साफ किया जम्न सहवते , म नि तिष्ठतिष्ठ" दुपा, राह पानोमे धोया दुपा और केवन मिट्टीसे पता "री विधिका नाम है-उच्चस्थान।' अर्थात् मुनिको | हुआ होना चाहिए। गोवर पादिमे, नहीं,। .चौकमें घर के भीतर से लाकर किमो क'चे स्थान पर या प्रशद वस्त्रादि.पहने हुए वा बालकों का प्रवेश न होना काष्ठकी चौकी प्रादि पर विनयमति विगजमान करना चाहिए तथा शब.जलसे पैर धो कर उममें प्रयोग करना चाहिए। ... .. . . .. . चाहिए। धावकको पचिस अस हो व्यवहार करणा - री पादोदक विधि है; इसमें यह प्राशुक जलमे पाद| उचित है। क्योंकि मुनि मचित्तका व्यवहार देख कर प्रक्षालन किया जाता है । यो विधि अर्चन करना है। भोजन नहीं करते। (३) कालगति-ठोक समय पर अर्थात् घट ट्रम्यसे महिपूर्वक उनको पूजा करनी | भोजन तैयार कर रखना और ठोक समय पर से पर्यात् पाहिए। परन्तु इस पूजनमें ५० मिनटमे अधिक 1 .१५ बजेमे पहले हो मुगिको दान करना चाहिए ।