पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५७

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५०४ नैनधर्म. (8) भायराधि-दाताको खाम मुनिके लिए रसोई म | प्रकार के है, उत्तम, मध्यम और जधन्य।' म परिया बनानी चाहिए , बल्कि अपनी हो रमोदममे दान करना त्यागी महायतधारक मुनि उत्तम-पाव है. पणवत-धारक उचित है। फारण मुनि उहिट भोजनके त्यागो हैं, सम्यग्द,टि यावक मध्यम-पान और 'व्रतरहिन पर सन्हें यदि यह यात मालूम हो जाय तो ये भोजन थहामहित जैन नवन्य-पाव है। . . . , ... नहीं करते। ___ इस बयाहत्य शिक्षाव्रतमें घीपरहन्तदेवकी पूजा (२) ट्रम्यविशेष-भोजन ऐमा होना चाहिए जो भो गर्मित है । व्रती श्रावकको उचित है कि पटद्रव्यमे मुनिके राग, हेप, भमयम, मद, दुःख, भय, रोग आदि शुदमनसे नित्य भगवानको पूजा करे। इसपकार इन उत्पन न करे पोर शोध परनेवाला हो । मुनिको प्रमद्र दादा व्रताका व्रतमतिमा नामक नीष्टिक श्रायकको २य . करके अभिप्रायसे व्यञ्जन, मिष्टान वा गरिष्ट भोजन दान धेपोमें पालन करना चाहिए । यतो धावक १२ समि- करनेमे मुनिकी तपयर्या में बाधा होती है। अतएव ऐसा मे ५ घणवतोंके पतोचारोको नहीं होने देता, किन्तु भोजन उन्हें कदापि न देना चाहिए । इममें पुण्य नहीं। ७ शीलवतों के दोपोंको शक्तिके भनुसार ही बचाता है। होता, वरिक पापबन्ध होता है। यदि पांच पणयों में कोई दोष वा प्रतोचार लगाय, (३) टारविशेष-दान देनेवाला यदुत विचारवान् तो उसका दगड़ या प्रायश्चित्त लेना पड़ता है, किन्तु होना चाहिए। छोटे बालक वा नादान म्वी प्रथया | शोलवोंके लिए ऐसा नियम नहीं।.. निम्न रोगो मनुष्यको दान के लिए नहीं उठना चाहिए। सागरधर्मामृतकार पण्डित भागाधरजी लिखते हैं - ऐमे व्यक्तियोंको केयल दानको देख कर उमको पमु. पहिं माव्रतको रक्षा और मूलव नको उज्वलता के लिए मोदना करनी चाहिए, इसीसे उनको दानका फल मिलता धीरपुरुप रात्रिको चारों हो प्रकारका भोजन त्याग दे। .. है। दातामें मुख्यतः ७ गुण होने चाहिए । जैनाचार्य य ती श्रापकको उचित है कि, भोजन करते समय .. योपमतचन्द्रखामो कहते है- मुख से कुछ न फाई घोर न किसी अङ्गमे कुछ प्रशारा हो "ऐहिकफलानपेक्षा क्षानितनिष्कपटतानसूयत्वम् । . . . फी पोंकि इष्ट भोग्य वस्तुके मांगनेमे भोजनमें टिकता अधिपादित्यमुदित्य निरहंकारितमिति हि दातगुणाः ॥१६९॥" बढ़ती है। किन्तु,यदि कोई थालीमें कुछ देता ही भोग - ( पुरुषापंसिद्प्युपायः) 8मको मावश्यकता न हो, तो प्रचारमे उसे मना कर १ऐहिकफलानपेक्षा-टाता ऐहिक इसलोक मम्बन्धी सकते हैं। भोजन करते समय यदि गोला चमड़ा, गोलो फलको इच्छा न करे । २ धान्ति:-क्षमाभाय धारण | इडा, भाव, मास, माइ, पान पादि टिवाइ ६ वा को। ३ निष्कपटता-कपट या छतभाव न करे और न छू जाय, रजस्वला,म्बी, कुत्ता, मिनी, चागडास्त प्रादिका कलमे पशड वस्तुका दान करे ।. ४ धनध्यत्व-दान . क्या हो जाय, कठोर (से, अमुकको काट डालो, करते हुए अन्य दातापमि ईर्या न करे कि, 'मेरा अमुक घर पागजनगर इत्यादि) भग्द सुनाई पड़े तथा टान पमुकसे उत्तम हो' । ५ विषादित्व-दानझे | त्या पदार्थ रवाने में पानाय, यालोम कोई कोट पसनादि ममय किमी प्रकारका दुःख या गोक न करे। ६ मदिल पड़ कर वह मर जाय, तो मोजम छोड़ देना चाहिए। -दानके ममय पंचित रहे।.. दाताको या अभिः : ३य मामायिक प्रतिमा--प्रतासिक नियों का मान न करना चाहिए कि, मैं दामी ६, पायदान देता। अभ्याम करके अधिक ध्यान करनेके पभिप्रायमे तीसरी इंपतः पुवामा. दाताको मास्तका माता भो । श्रेणी (सामायिक प्रतिमा) में प्रा कर पूर्वोहाविधिक . होना चाहिए। ', . . . . . . . अनुमार दिनमें तीन बार मामायिकको क्रियाका पालन .

- ४। पावविशेष-जो दान लेने के उपयुस हो पर्यात् करना चाहिए। इस अभ्याम मामायिकका कान पन्न

जो मोक्षप्राशिय साधन सम्यग्दर्शन-मान पारिव पादि! मुंह (४८ मिनट) हैं, पर्यात् १ ममयमे ने कर ४८ गुमि विमिट ने उन्हें पान कहते हैं। पाव तीन ! . ' विधि हम सामायिक मतके प्रकरण करमुके है।