पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५८

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जैनधर्म 'मिनट या २ घड़ो तक सामायिक कर मकते हैं । योमदः यावक" है । प्रतीचार सादि पहले कह चुके हैं। ममन्तभद्राचार्य कहते हैं- ५म सचित्तत्याग प्रतिमा--जो कञ्च, अप्रामुक वा . . "चतुरावर्तत्रितपश्चतुःप्रणामस्थितो यथानात:। अपक्क फल, मूल, याक, शाखा, गांठ, कन्द, फन पौर 'मामायिको द्विनिषारत्रयोगशुद्धस्त्रिमण्यमभिवन्दी : बोज नहीं खाता, वह दयावान् “सचित्तत्वामी यावक" __'जो चारों दियामि तो तोन वार अायत और कहलाता है। इस येणोका थावक सचित्त वा जोय. चार चार बार प्रणाम करता है, जो कायोत्सर्ग में स्थित | सहित कोई भी चोज मुखमें नहीं देता। कच्चा पानो नहीं रहता है, जो अन्तरङ्ग पोर पहिरङ्ग परियहको चिन्तासे पीता, फल मादिको एकाएक महमें दे तोड़ता नहीं। पृथक् है, जो खद्रामन और पद्मासन इन दो बामनों में प्राशक वा प्रचित्त वस्तुत्रों का हो व्यवहार करता है। में किसी एक प्रासनको धारण करता और विकाल । योनिभूत पत्र (जिसमें अंकुर उत्पय हो गये हो) चाहे वन्दना करता है, वह मामायिक प्रतिमाका धारक | वह सूखा भो हो, नहीं खाता। मचित्तत्यागी यावक "मामायिको-यावक" है। पत्र पान, नोम, मरमों प्रादिके पत्ते ). फन ( वोरा, - मामायिकवतका वर्णन ऊपर बतप्रतिमा के प्रक फकड़ी कुष्मागड़, नोव्, अनार, कच्च प्राम, कसे केले. जगामें कर चुके हैं । व तो यावक और मामायिको | प्रादि ), छाल (चको वकाल), मूल (पदरख पादि थावक इन दोनों के मामायिक वनमें क्या अन्तर है, तथा नीम आदि वृक्षों को जड़), किगलय (छोटे पत्ते, इम विषयमें जानानन्दयावकाचारका यह मत है- बोज । कच्चे और मजे चने, मूग, तिल, बाजरा, ममूर, दूमी प्रतिमावालेको प्रष्टमी और चतुर्द धोके दिन जीरा, गेह, जो धान प्रादि) इन पदार्थों को नहीं खाता। सामायिक करनी ही चाहिए। किन्तु पम्य दिन के लिए जो वयु पग्निसे तम पर्यात् खूब गरम कर ली जाय, वह वाधा नहीं है। परन्तु मामायिकी यापक प्रत्येक पक जाय, धूपमे या अग्निमें पक जाय, भूख जाय और दिन विकाल सामायिक करने के लिए वाधा है। । जिसमें नमक पावला आदि कपाय पदार्थ मिला दिये इसके प्रतीचार धादि य नप्रतिमा-प्रकरण के अन्तर्गत जाय, यह वस्तु 'माशुक' हो जाती है। जैसे-जन गरम मामायिक व तके वर्णनमें देखने चाहिए। करनेसे वा नयन भादि बारा उसके स्पा, रस, गन्ध, • ४थे पोषधोपयासपनिमा-जो प्रत्येक मामके पार वर्णको बदल देनसे अन्न पकानेमे पोर फल सुखाने वा • पर्मि, अर्थात् दो अष्टमी और दो चतुदर्णीम अपनो लिव-भिव करनेसे प्रारक होता है। गतिथी न छिपा र शुभ धानमें तत्पर रहता हुमा ६ दिनमै युनत्याग-प्रतिमा-पमितगति पाचार्य का प्रोपधके नियमका पालन करता है, वह प्रोषधोपवास मत है कि जो मन्दरागो धर्मामा दिन में स्वनो भवन 'प्रतिमाका धारक "प्रोषधो थावक" कहलाता है। नहीं करता ( वा उसका त्याग करता है); उस दिन • प्रोपधोपवास करने का नियम जन शास्त्रों में रम | मध्नत्याग प्रतिमाके धारकको "दिनमथ नत्यागी प्रकार लिखा है-७मी और १३शोके दिन (दोपहर थावक कहते हैं। किन्तु पाचार्य प्रयर योममन्तभद्र को) एक समय भोजन करना चाहिए, फिर ८मी और खामोने इस प्रतिमाका नाम "गविभुशियागप्रतिमा १४शोको निजल उपनाम करकमी और पूर्णिमा वा बतलाया है। जिसका स्वरूप इस प्रकार है- . . . पमावस्याको एक ममय जोमना चाहिए। अर्यात् ४८ जो गतिको दयादचित्त को पत्र (चायन, गह धएम तक निराहार रहना प्रोषधोपवार है। किन्तु| आदि). पान ( दूध, जन धादि), राय (बरफी. पेड़ा वह ममय धर्म ध्यानमें ही बिताना चाहिए। उपवास धादि) और संघ ( रबड़ो, घटनो पादि) इन चारों दिन अन्य नांसारिक कार्य या प्रारम्भ करनेमे उपवास-1 प्रकारचे पदार्थोंको नहीं खाता, यह राविभुति-त्यागो का फन नहीं होता। जो इस प्रकार प्रोषधोपवामका | बावक है। • यावनीय पालन करता है, वही यथार्थ में "प्रोपधी : ७म ग्रनचर्य प्रतिमा-इसके पहले नसोका त्याग Vol. v. 127