पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५५९

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लेनम मरी था. कि दम थेगोके यावकको मस्ती भो त्याज्य | पोर मनगिन्ता (मनमें मेध नको चिन्ता करना ) ये दश । रयकरण यायकाचारम निना है- | मस्कार कामोत्पादक हैं, इमलिये इन्हें भी शामिन ____ गयो मनयोनि गसम्मलं पुतगन्धि वीभत्स 1 . किया। . इन मयके वशीभूत होने के कारण कामोडी पश्यनंगमनंगाद्विग्मति यो ब्रह्मचारी सः ॥१३॥" १० तरहको घेटाए हो जाती है। यया-पिता (खो. मन बीजभून, मनको उत्पन्न करनेवान्ने मतप्रवासी को फिकर ), दौनेच्छा (मोके देवनेको घाइ), दुर्गन्धयुत पोर नन्नास्पद या ग्तानियत अङ्गको ममझ दीर्घोकास (पार करना), शरीरपोड़ा, गोरखा कर जो काममेयनमे मर्म था विरक्त होता है, वह वन मन्दाग्नि, मू, मदोन्मत्तता, माणस'देस और एक भयं नामक ७म प्रतिमाका धारक वाचारोयावक है। मोचन। . . . . श्रीकार्तिकेयस्वामी कहते हैं-जो भानो मन, वचन पोर बाह्मचर्यपतको रक्षाके लिये निम्नलिखित विषयो. कायम ममस्त स्तियों को अभिलापाका त्याग कर देता है। को छोड़ देना चाहिये। यथा-१ म्पियो ग्यान में नया जो कृत, फारित, अनुमोटना और मन, यवन, काय- रहना, २ नचि पौर प्रेममे स्त्रियों को देखना, ३ मोठे मे नव प्रकार मथ नको छोड़ देता है एवं ब्रह्मचर्य की वचनों से परस्पर भाषण करना, ४ पूर्व भोगोंका चितवन दीसाम पारद होता है, वह ही बानमतो वा ब्रह्मचारी करमा, ५ गरिटभोजन जो भरके खाना. गरीरको धायक है। माफ-सुथरा रख कर गृङ्गार करना, ७ लोके पन्ना या स्वामिकातिशयानुप्रेक्षा नामक जैनग्रन्ययो महत | प्रामन पर मोना, ८ कामवासनाको कथाएं कहना या टोकामें निग्वा है-"अटादशमहसमकारेण शोल पाल सुमना और भर पेट भोजन करना। इन नो बातों यति ।" अर्थात् ब्रह्मचारी थावक १८ जार भेदों। को मर्यया छोड़ देना ही उचित है। . सहित गोम्नवतका पालन करता है। यहां शीलयतमे इसके अतिरिमा ब्रह्मचारी न्यायकका यह भी कत्तंय. तात्पर्य ब्रह्मचर्य य तका है। . . कर्म है कि, वह उदामीनता सूचक वस्त पाने । मो. ' जैन ग्रन्थों में शील वा ब्रह्मचर्य के अठार मजार | महित अवस्था में जिन कपड़ीको पहनता था, उनमें न भेदीका वर्णन म प्रकार किया गया है-४ प्रकारको पहने। जिन वस्त्रों के पहमनमे अपनेको सया टूमरों म्तियां होती है जगे देवो, मानुषी, तिरची (पशु) और को वशग्य उत्पन्न हो, ऐसे सफेद या गैरिक मतो पम्न पधेतन (काष्ठचित्रादि निर्मित), इन चारों प्रकारको पहने । सिर पर कनटोप वा छोटा टुपहा या निमको स्तियोका मन, पवन, कायमे गुणा करनेमें १२ भेद | देखते ही अन्य लोग समझ जाय कि वह स्त्रीका त्याग हुए। इनको शत, कारित और अनुमोदना इन तीनोंमे । या वाद्यचारी है। इसी प्रकार पाभूपण पादि भी न गुप्पा करने पर २६ भेद.इये। ३६को पांचौ इन्द्रियों में पहने। यदि घरमें हो रई तो किमो एकात कमरे में • गुणा करने पर १८. भेट हुए। इनको १०. प्रकारके - पथवा मन्दिर के . निकट धर्म गाना भादिम गयन करें मस्कारोंमे गुमा, करने पर .१८०० मेद हुए। पोर जहां स्त्रियोको पच न हो। परम सिफ भोजन करने - १८०० को १० प्रकारको काम चेष्टापोंमे गुणा करने पर जाये और व्यापार करना हो तो व्यापार कर चुकर्न १८०० मेट हुए। मेघनके कारण पांचौ इन्ध्यिामा. बाद पर्यागट समय धर्म स्थानमें विसावे। अपना कार्य । '. पचलता होती है, इसलिए पाँच इन्द्रिए शामिन को | : पुवादिको मोपना जाये पीर स्वयं निराकुन हो मनपर्य: , गई। गरम फार. .द्वारमस्कार,.. हास्यकोड़ा, - का पालन करे। ममर्गवास, विषयमकरूप, गरीर निरोक्षण, गोर- .. अनचारी यायक पनि निर्वाह के लिए प्रयोजनके . मन ( देशको माभूपणादिसे मुमजित करना) दाम | पनुमार पुछ रुपये भी रख मकता है। सब या पन्यमे ( मी डिके लिये नोको प्रिय वन देना). पूर्वरता: रमोई धनया मफता है एवं फिमौके पादरपूर्वक निम . नम्मरण (पहले किये हुए कामयाको याद करमा)| बप करने पर गह प्रांहारको प्रप कर सकता है।