पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५६

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जयदेव ये। (३) डा. हौन लीने भी फ्लीटके मतको माना है। लिखा है कि विक्रमादित्य ठाकुरीब शोय प्रथम राजा अतएव स्वीकार करना पड़ता है कि, जयदेवको बार अंशवर्माके ससुरके समयमै नेपालमै पाये थे और वे हो योधर्य देव, सम्माद इषयईनसे पृथक् थे। उक हप यहाँ वि० संवत् प्रचलित कर गये थे । (५) देव और जयदेवके ननिया ससुर दोनो हो प्राग् । गुप्त सम्राट के समय ही नेपालमें प्रवल पराकमो ज्योतिष राजवंशीय थे एव' नेपालके राजा जयदेव लिविवंशीय राजा राज्य करते थे । गुप्तसंवत्-प्रवर्तक सम्राट हर्षवईनसे १५३ वर्ष पोछ हुए है। महाराजाधिराज १म चन्द्रगुप्त (विक्रमादित्य ने लिम्झवि ___ हम पहले ही प्रमाणित कर चुके हैं कि, गुप्तराजवंश राजकन्याका पाणिग्रहण किया था, और उन्होंके गर्भ से दाद देखो । २य जयदेव लिच्छविध शीय थे 11 महावोर समुद्रगुपका जन्म हुआ था। जिस तरह सम्राट लिच्छविवशीय राजाओंके शिलालेखाम शक सं. और हवईनके पितामह श्रादित्यवई भने महासेनगुप्तको गुप्त सं लिखा है । डा. बुहर प्रादिके मतमे, सम्राट । मगिनी महासेनगुका पाणिग्रहण किया था (६) और हर्षवर्दने हो नेपाल लोत कर वहां अपना संवत् चलाया जैसे मौखरिराम आदित्यवर्माने इर्षगुनको भगिनी इर्ष- था। परन्तु हमें इसका विशेष प्रमाण नहीं मिलता गुप्ताके साथ विवाह किया था, उसो तर महाराजाधि. जिससे उक्त मतको अमानस कह सके। अल बिरुनीने | राज समुद्रगुप्तके पुत्र विक्रमादित्य उपाधिधारो रय चन्द्र. दो हर्ष सवतीका उलेख किया है, उनमसे एक तो गुमने न पालके लिच्छविराज 5 वदेवको भगिनो ध्रुव ईसासे ४५७ वर्ष पहलेका था और दूसरा ६०० ई० मे | देवोका पाणिग्रहण किया था । महाराज ध वदव पोर प्रारम्भ हुमा था। उनके मतसे शिलादित्य पंवईनको कुरोवंशीय महाशवर्मा दोनों एक हो समयमें हुए मृत्यु के बाद जो गड़बड़ो हुई थो, उसो समयसे हर्ष हैं। नेपालसे पावित ४८ संवत् भापक शिलालेखमें संवत्का प्रारंभ हुपा था। (४) परन्तु चीन-परिव्राजक | । महाराजाधिराज ध्रुदेवके राजत्वकालमें महाराज युएनचुभोगको जीवनीमें लिखा है कि शिलादित्य अंशवर्मा द्वारा 'तिलमक' निर्माणका प्रसङ्ग है। डा. हर्ष वन ६४८ ई. तक जीवित थे। इसलिए | बुदर प्रादि प्रनतत्वविदों ने एक स्वरसे उस ४८के उनको मृत्य से हर्ष सयका प्रारम्भ बिल्कुल असम्भव | पहको इर्ष मवत्धापक कहा है। परन्तु हम पइसे १। विशेषतः ईसा ४५७ वर्ष पहले जो हयं । ही कह चुके हैं कि, नेपालमें कभी सवत् प्रचलित संवतका उलेख है, उसका कोई प्रमाण नहीं हुआ था, इसका कोई विशेष प्रमाण नहीं मिलता। मिलता। यह भी कह चुके हैं कि नेपालमें विक्रमादित्यके धारा पाजतक माचीन ग्रन्यो वा शिलालेखोंमें ऐसा कोई । गुप्तम'वर प्रचलित हुअा था। ऐसो दशामें नेपालके राजा स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता है कि काश्मोरके सिया और भुवदेवको भगिनी ध्र वदेवोके साथ २य चन्द्रगुप्तके भी कहो इपसवत् प्रचलित था । वाग्भट और युएन । विवाह होनेसे पहले और सम्भवतः विक्रमादित्य उपाधि- चांगने हर्ष वईनके विषयमें बहुतसी बातें लिखी हैं, धारो गुप्त संवत् प्रवर्तक १म चन्द्रगुप्त के साथ लिच्छवि परन्तु संवत् प्रचलनके विषय में उन्होंने कहीं भी कुछ नहीं राजकन्या क मारदे वोके विवाह के समय समागत १म लिखा। : ऐसी दशा में हर्ष वईनके साथ वर्ष-संवत्का | चन्द्रगुप्तके द्वारा नेपालमें गुस-सवत्का प्रचार हुपा सम्बन्ध है या नहीं, इसमें सन्देही है। अतएव जय होगा। ऐसी हालत अंशवर्मा और ध्र वदेव गिला. देव भादिक शिलालेखम उत्कीर्थ सवतके अडझेको इम | सेखके अह गुप्त-सम्बतचापक ठहरते हैं, इसमें सन्देश निःसन्देर हर्ष सवत नहीं कह सकते। हर्ष-शब्दमें नहीं'।... विस्तृत विवरण देखे । नेपालको पातीय बसायलीमें पद रय जयदेवके शिलालेखमें उयो २८८ के TO Eleet's Corp, Ineriptionnm Indicarum,p.189. (Inscriptions from Nepal, p. 88. (0) Journal Roy. As. Soe. Vol.XII, p.44,(0..) . . (OEpigrsphia Indica, .rol.I. Vol. VIII, 14