पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टम भाग.djvu/५६०

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जैनधर्म ५०७ करें। __ मनचारीके लिये नित्य मान करनेका नियम नहीं है। में कूटना इत्यादि। इन दोनों प्रकारके पारम्भोंको जो यदि जिनेन्द्रकी पूजा करे तो सान अवश्य ही करना नहीं करता, यह निरारम्भ कहलाता है। किन्तु धर्म पड़ता है, अन्यथा उसको इच्छा। परन्त शरीरको मन ! कायाँके निमित्त जो प्रारम्भ किया जाता है वह पारम्भ- मल कर मान नहीं कर सकता, थोड़े जलमे धारामान में शामिल नहीं है। कर मकता है। धर्म ग्रह श्रावकाचारमें लिखा है ____इस श्रेणीका यावक अपना व्यापार भादि पुय पादि 'सुखासनं च ताम्बूलं सूक्ष्मवत्रमलंकृतं । पर मौंप देता है और अपने सर्व परिग्रहका विभाग कर मंजन दन्त ; च मोकव्यं ब्रह्मचारिणा ॥" १४ ॥ देता है। जिसको जो देना होता है, दे देता है। अपने वृह्मचारी गहे पादि सुखमय बामनों पर, जिनसे लिए सिर्फ वस्त्रादि थोडासा साधन रख लेता है। किन्तु शरीरको नहुत पाराम और बालस्य या जाये, न मोवे उस धनको व्याज पर नहीं लगा सकता; समय समय पर धर्म कार्यो में व्यय कर सकता है। और न बैठे। कभी ताम्य ल न खावे, मदीन कपडे निरारम्भी धावक विशेष उदासोनसाको हिके लिए और गहने न पहने तथा शरीर-मञ्जन और दन्तवन न एकान्त स्थानमें रहता है, अपने पुत्रादि वा अन्य सहधर्मी ____ ब्रह्मचर्य प्रतिमा तक प्रवृत्तिमा है, उसके बाद यदि निमन्त्रण दे जाय तो वहां जा कर भोजन कर पाता नित्तिमार्ग प्रारम्भ होता है। अतएव अच्छी तरह है । जिस चोजके खाने का त्याग हो, यह बतला देता है। 'उद्योग करके यहां तक स्वपर कल्याण कर सकता है। यदि घरके लोग भोजनके सम्बन्धमें कुछ पूछे तो सिर्फ किन्तु धागे कुछ परतन्त्रता है। उन पदार्थोके वारेमें मनाकर सकता है जो उमके लिए हानिकर हो। किन्तु अपनो रमना इन्दियके वयवर्ती हो म पारम्भन्याग-प्रतिमा-जब अवाचारो श्रावक यह निथय कर लेता है कि अब मैंने अपने पुवादिको मर्य किसी अभीर पदार्थ के धनाने के लिए प्रान्चा नहीं दे व्यापार सौंप दिया है, वे मुझे हर्षपूर्वक भोजन दे दिया। मकता । घोड़े और पाएक जन्तमे पावश्यक काम करे । करेंगे अथवा सहधर्मी लोग मेरे भोजनपानके लिए साय. मनमूत्र प्रादि सूग्वो जमीन पर क्षेपण करे। मवारोका धान रहेंगे तब वह आठवीं श्रेणोके नियमोंको धारण त्याग करे; म्न गाड़ी, घोड़ागाड़ी, पालको प्रादि पर करता है। रबकासश्रावकाचारमें लिखा है- न चढ़े। रात्रिको प्राशक भूमि पर धर्म कार्य के निमिन "सेवारिवागिज्यप्रमुखादारम्मती युगरमति । ही घने। अपने हाथमे दोपक न जलाये, किन्तु शास्त्र प्राणतिपातहेतोर्योदयापारम्भविनिवृत:" १. पढ़ने के लिए जला मकता है। कपड़े न धोवे और न जो श्रावक जोयोंकि घातम कारण सेवा, सेतो, धोने के लिए किसीसे कहे। पपने पाप कोई धो दे सो उमे ग्रहण करे ध्यापार चादि प्रारंभ कार्यासे विरक्त होता है, वह पारंभ. ___ पारम्भत्यागी रहस्य घरको मय था नहीं छोड़ता, त्यांगो यावक । यीमदमिनगति प्राचार्य कहते हैं - केवल पारम्भका त्याग करना है। पतः घरमें रह कर "निगम्भः स विप्रेयो मुनी ईतकल्मषैः। भी धर्म माधन कर सकता है। कृपाल: जीवानां नारम्भ विदधाति य: " ८४०॥ म परिग्रहत्याग-प्रतिमा-दम प्रतिमाका क्षण ' जो यावक सब लीवों पर करुणा कर पारम्भ नहों' योनमन्तभट्राचार्य ने इस प्रकार कहा है- • करता, यह निरारम्भी हैं; ऐमा निदोष म नीन्द्रोंका " वापु दापु वस्तुपु ममलमुत्सृज्य निर्ममतरतः। कहना है। स्वस्थ: सन्तोषपर: परिचित्तपरिप्रहाद विरत: १४॥ पारम्भ दो प्रकारका है- एक व्यापारका पारम्भ, जैसे सो बाहरके दम प्रकार परिणाम ममता नहीं रोजगारके लिए ऐमो क्रियाए करना जिनसे बचाने पर करता पोर मोहरहित को पासम्बलपमें मौन रहता है- भी हिंसा को हो जाय, दूसरा घरकै कामका प्रारम्भा मन्तोपत्ति धारण करता है, वह परिचित्तपरियहसे में पानी भरना, हा जलाना, चको चलाना, जलो विरत परिप्रइत्यागो यावक है।